Sunday, December 23, 2007
Wednesday, December 12, 2007
Monday, December 10, 2007
वर्क साईटिड:
आधुनिक शादी.” एन. दी.टी.वी। राजश्री.कॉम
बोक्सोफ्फिसरेपोर्ट्स.कॉम
“गट्सी यश राज लेडीज़” २७ अगस्त २००७। रेदिफ्फ़.कॉम
अमर अख़बार एन्थोनी। १९७७। निर्देशक: मनमोहन देसाई। अभिनेता: नीतू सिंह, परवीन बबी, अमिताभ बचन, ऋषि कपूर। कमालिस्तान स्टुडीओस।
चांदनी। १९८९। निर्देशक: यश छोपरा। अभिनेता: ऋषि कपूर, चांदनी, विनोद खन्ना, वहीदा रहमान। यश राज फिल्म्ज़।
दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगी। १९९४। निर्देशक: आदित्य छोपरा। अभिनेता: शाहरुख़ खान, काजल, अमरीश पूरी, फरीदा जलाल, अनुपम खेर। यश राज फिल्म्ज़.
हम आपके हैं कौन। १९९४। निर्देशक: सूरज बर्जतिया। अभिनेता: सलमान खान, माधुरी दिक्षित, अलोक नाथ, रीमा लागू, अनुपम खेर। राजश्री।
कभी कभी। १९७६. निर्देशक : यश छोपरा। अभिनेता: अमिताभ बचन, राखी, शशी कपूर, वहीदा रहमान, नीतू सिंह, ऋषि कपूर। यश राज फिल्म्ज़।
कल हो ना हो। २००३।निर्देशक: निखिल अडवानी। अभिनेता: शाह रुख खान, जाया बचन, प्रीती जिंटा, सैफ अली खान। धर्मा प्रोदुक्षंस
लम्हे। १९९१। निर्देशक: यश छोपरा। अभिनेता: अनिल कपूर, श्रीदेवी, वहीदा रहमान, अनुपम खेर। यश राज फिल्म्ज़।
राम लखन १९८९ निर्देशक: सुभाष घई। अभिनेता: अनिल कपूर, माधुरी दिक्षित, जैकी श्रोफ्फ़, डिम्पल कापडिया, राखी. मुक्त आर्टस
प्रेम रोग। १९८२। निर्देशक: राज कपूर। अभिनेता: ऋषि कपूर, पदमिनी कोह्लापुरी, शमी कपूर, नंदा, तनुजा। आर। के फिल्म्ज़।
रंग दे बसंती। २००६। निर्देशक: राकेश ॐ प्रकाश मेहरा। अभिनेता: आमिर खान, सोहा अली खान, सिद्धार्थ, शर्मन जोशी, किरोन खेर, अतुल कुलकर्णी।
Wednesday, December 5, 2007
लड़ाई और झगड़ा
और दोस्तों के बीच भी यह कहना कि कभी लड़ो मत, गलत है। क्योंकि बात को अंदर रखने से दूरियां पैदा हो जातीं हैं। परिवार मे भी। मेरे एक दोस्त और मैं दस साल से दोस्त हैं, और हम एक बार भी नहीं लड़े। इस साल हम लड़ने के नजदीक आए दो बार। पहली बार हम जिस बात पर लड़ने के लिए तैयार थे उससे दूर रहना शुरू किया। दूसरी बार मुझे उसका एक वाक्य बहुत बुरा लगा। मैं कुछ कहना चाहती हूँ लेकिन मुझे डर है की वह बुरा मान जाएगी। मेरे बहन और मे एक बार लड़े। एक दूसरी के ऊपर खूब चिलाए। लेकिन उस के बाद और भी नजदीक आए क्योंकि हमने क्रोध निकाल दिया और जो मैं गलत कर रही थी मैंने सुधारा और जो वह कर रही थी उसने। तो इस से हमारी लड़ाई का कुछ फैदा हुआ। और हम एक दूसरे से नाराज़ भी न हुए।
मेरा इस पोस्ट के बिल्कुल यह नहीं मतलब की लड़ना चाहिए। यह गलत है। लेकिन बात को अंदर भी नहीं रखना चाहिए। मैंने और अपनी बहन ने कभी गाली का इस्तिमाल नहीं किया लेकिन हमने यह कहा कि जो तुम यह कर रहे हो मुझे बहुत बुरा लग रहा है। और मैंने सब कुछ नही बताया, लेकिन इतना बता दिया कि मैं उससे कम नाराज़ होती हूँ। हमे एक सीमा के अंदर कहने और लड़ने का हक हे। यह सीमा है कि कम से कम लड़ें
और लड़ते समय सिर्फ कम से कम बात कहनी चाहिए और वह भी सोचके।
चुनाव के अभीलाशीयों को भी एक सीमा पार नहीं करना चाहिए लेकिन जब तक जनता ज़्यादा सोचने नहीं लगती हमे नेगातिव काम्पेनिंग का इस्थिमाल करना ही पडेगा।
Saturday, December 1, 2007
यह पहले नहीं होता था। अगर आप 'राम लखन' देखेंगे तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जया पति की गलतीयों को चुपचाप सहन करती हैं, गीता, डिम्पल, आगे बढ़ कर कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक कि जब राम और लखन लड़ रहे होते हैं वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी शामिल थे जो लड़ाई रोकते अगर गीता आगे न बढती। लेकिन गीता आगे बढ़ी। इस ही फिल्म मे माधुरी ने भी बाप के गलत फैसले का विरोध किया और "राम जी बढ़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णय लिया और कुछ किया। 'कभी कभी' मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णय लिया और चल पड़ीं माँ को ढ़ून्डने। 'प्रेम रोग' मे बड़ी माँ ने दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकराया. तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात नहीं है लेकिन यह रोक दिया गया था और सिर्फ अभ फिरसे आ रहा है। पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। 'कभी कभी' यह फिल्म के बारे मे सोचना उचित है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इसी ने 'कभी कभी' बनाया और इस फिल्म मे अमिताभ खलनायक है, वह अतीत को नहीं छोड़ सकता था और राखी छोड़ देती है और सफल बनती है। और अमिताभ को औरत की आवश्यकता होती है। 'चांदनी' मे भी ऋषी कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए होती है। और जहाँ 'कल हो न हो' में नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, 'लम्हे' मे विरेन रोता है घम मे डूबा रहता है, लेकिन कुछ नहीं करता।
यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि फिल्में लोगों पर बहुत असर करते हैं। एक वजह, यह है कि भारत मे अनपढ़ की संख्या ज़्यादा है। रामानंद सागर के 'रामायण' मे अरुण गोविल ने रामचंद्र को पेश किया। उन्होने कहा कि इस के बाद कई लोग उनको भगवान मानने लगे (फ्रॉम रील लाईफ टू रियल लाईफ )। गोविल भगवान नही है। लेकिन कई लोग जिनकी जानकारी कम है उनको फर्क पता नहीं चला कि क्या सचा है और क्या नकली. मैं यह कहानी इस लिए दोहरा रहीं हूँ ताकि आप को पता चले कि फिल्मों का क्या असर होता है। इस असर के कारण ही यह प्रोजेक्ट का कुछ माईना है। और असर कि वजह से हम आर्ट फिल्म, जो लोग बनाते है लेकिन ज़्यादा कमाती नहीं है क्योंकि कम दर्शकों होते हैं, के बारे मे बात नहीं कर रहे। उन फिल्मो मे बहुत ऐसे चीजों पर विचार होता है लेकिन यह जनता तक नहीं पहुँचता। इस लिए इन का असर कम होता है। हिन्दुस्तान मे बहुत लोग बॉलीवुड, जो मेनस्ट्रीम सिनेमा है, वह देखते हैं।
प्रोजेक्ट मे दिखाया गया है कि निर्देशक को सोचना चाहिए कि फिल्म मे क्या कर रहें हैं। सब ही को पता है कि फिल्म मे पहनाव समाज पर बहुत असर करता है। 2001 के देवदास के बाद "आइश्वरिया सेटें" बहुत बिकने लगीं , मेरे पापा ने मेरे लिए भी एक खरीद के दिया था। कभी बुरे चीज़ें भी फिल्म से सीखा जाता है और बहुत बार निर्देशक कहते हैं, जब लोग उन्हें कसूरवार मानते हैं, कि मैंने तो सिर्फ फिल्म बनाया था। इस तर्क मे भी बुनियाद है, लेकिन यह पूरी सफाई नहीं हो सकती। निर्देशक को सोचना चाहिए कि उनके फिल्म का क्या असर हो सकता है। और इस लिए मैं समस्या बताने मे इतना वक्त बिता रही हूँ।
यह पेपर बताता नहीं है कि महिलाओं को बुरी तरह पेश क्यों किया जा रहा है। आश्चर्य कि बात तो यह है कि औरतों को दुर्बल रोती हुई, और मर्दों पर निर्भर १९९४ के बाद ही दिखाया जा रहा है। एक बदलाव का कारण है 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' और 'हम आपके हैं कौन' की सफलता.इन दोनो फिल्मों ने रेकॉर्ड तोड़कर कमाया। तो इसके बाद निर्देशक ने सोचा कि बहुत लोगों यही चाहते हैं। लेकिन उनका भी कोई जिम्मेदारी है। उनके पता होना चाहिए कि औरतों को ऐसे पेश करने से लोगों सोचने लगेंगे कि औरतों इसी के काबिल हैं हमेशा रोती rahtee है । वह यह नहीं जान पाएँगे, कि जैसे अमर अकबर एन्थोनी मे नीतू के बहुत रंग थे, वैसे बहुत औरतों के हैं। वह घर चला सकती हैं, काम भी कर सकती हैं और लड़ भी सकती हैं kaash हम यह फिल्म मे भी देख सकते ।
नए बॉलीवुड और महिलाएं।
१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत दुर्बल होती हैं और मर्द की प्रतीक्षा करती हैं। 'कल हो ना हो' मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना की माँ, साहस क्यों न उठा पाई परिवार के जीवन मे ख़ुशी लाने के लिए? अमन ने क्या किया? हिम्मत करके दादी को उसके बेटे का सच बताया। उसने दिमाग लगा कर व्योपार मे का कुछ उपाय सोचा। 'राजा hइन्दुस्तानी', जो १९९८ की हिट पिक्चर है, उसमे राजा बच्चा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती है-कुछ नहीं, वह रोती है और उससे विनती करती है और पापा की मदद मांगती है। 'एक रिश्ते' मे भी लड़कियां लड़कों की प्रतीक्षा करतीं हैं जब भाई आता है तब ही कुछ बदलाव आता है। 'कभी ख़ुशी कभी ग़म' मे पूजा रोहन की मदद करती है लेकिन उसने जीजाजी के लिए
माँ-बाप का आदार
माँ बाप प्यार से हमे पालते हैं। इस कहानी मे माँ ने अपने सारे जेवर बेटे के पढाई के लिए बेच दिए थे। माँ इसका एक बार जिक्र करती है जब बेटा कहता है कि तुम कुछ चूड़ी-वूडी क्यों नहीं पहना। माँ का शुक्रियादर करने के बजाए वह झुन्झुला उठता है। आपने जो पैसा डाला उस का कुछ रिटर्न भी तो मिला! मैं दुगना खरीद के दे सकता हूँ। ऐसे बात करना उसको शोभा नहीं देता। माँ को वह इतना डराता है। कभी मुझे लगता है मुझे ऐसे माँ और बाप के लिए घर खोलना चाहिए। अगर आप को लगता है कि आप के माता-पिता आप के लिए बोज हैं उनपे ज़ुल्म मत करों, यहाँ छोड़ दो और मे उनका देख्बाल करूंगी। रवी चोपडा के बघ्बान मे भी यही कहानी दिखाया गया। राज ने सारा पैसा बच्चों पर खर्च दिया और सोचा फिर रिटायर करके बचे के साथ समय बिता लूँ। लेकीन बचों को लगा कि हाए कैसी आपाती आ गयी। उनको कुछ कहने के बजाए, यह ज़्यादा अच्छा होता, वह ज़ुल्म वरते हैं। चीफ की दावत मे भी माँ कहती है कि हरिद्वार भेज दो, यह भाई के पास, लेकिन न। नौकर चाहिए यह लोग क्या सोचेंगे। लोगों कि परवाह मत करों। पता ही चल जाता है कि ध्यान कौन रख रहा है और दिखावा कौन।
माँ और बाप के वापिस देना हमारा कर्तव्य है अगर उनको प्यार देकर इस कर्तव्य का पालन नहीं कर सकते तो झूट भी मत बोलो।
Friday, November 30, 2007
होटल मे खाना
मैं आज होटल मे खाना खाने के अनुभव के बारे मे बात करूंगी। एक जगह जो मुझे सब से अच्छा लगता है, मैं पहले अपने माता-पिता के साथ ही गयी हूँ। और जब गयी हूँ हमेशा जल्द खाना लाते हैं। लेकिन आज उनको तकरीबन घंटा लग गया। उस ने बहुत माफी मांगी लेकिन मुझे बुरा लगा मैं अपने माता-पिता के दोस्त के बेटी, जो अभी मेरे घर पर ठहरी हुई है, उसे वहाँ ले गयी थी। मैंने बहुत गर्व से कहा था कि यह जगह खास है। दाम कम हैं, खाना अच्छा है, और सर्विस बहुत अच्छी है। और आज ही यह हुआ। मैंने कुछ इस के बारे मे बात किया। उसने कहा अक्सर यह छोटों के साथ होता है। तुम पहले अपने माँ-बाप के साथ आए होगे। अगर ऐसे वक़्त लगा और माँ-बाप होता वह बहुत उतेजित होते। हमे थोडा बुरा लगा लेकिन हम बात करके समय बिता रहे थे। तो उन्होने सोचा होगा शुक्रवार है, बहुत लोग हैं, बडे दंतेंगे, यह लड़किया जाने देंगी। कईं लोगों यह भी मानते हैं कि बच्चे उधार कम देतें हैं। लेकिन मैं हमेशा १२ और पंद्रह प्रतीषद के बीच मे देती हूँ, और दीदी ने तकरीबन बीस प्रतीषद दीए। तो उनका यह मानना गलत है कि बच्चे हमेशा कम उधार देंगे यह मस्ती करेंगे।
Tuesday, November 27, 2007
ठंडक
ठंड बहुत कम लोग से बर्दाश्त होता है। खासकर जब बर्फ सड़क पर आधी पिघली हुई और आधी जमी हुई है। इससे चलने मे बहुत कठिनाए होती हैं। कल मेरे पैन्ट पूरी तरा भीग गया था। जुराब सुबह ही भीग गए थे और रात को इस के कारण बहुत तड़प हो रही थी। दिन मे एक दो बार मुझे लगा कि मैं वापस कमरे मे चली जाऊं। एक बार तो क्लास बंक करने मे तो कोई बुराई न है न? लेकिन मैंने साहस बडाकर क्लास मे कदम रखा। आज कल से भी ज़्यादा ठंडा होगा और आज बंक करना आसान होगा। एक ही क्लास है और वह मेरे लिए आसान है. लेकिन मैं नहीं करूंगी। क्यों? पहले- तीन महीनों के लिए ठंड होगी और तीन महीनों के लिए तो मैं क्लास नहीं बंक कर सकती। लेकिन सब से बड़ा कारण, मुझे लगता है कि ठंड हमारी परीक्षा है। इस से भगवान देख त है कि हमारा निश्चय कितना अटल हैं। हम क्या क्या पार करके दुनिया मे कुछ कमाएँ। हम इस दुनिया मे सिर्फ नाचने नहीं आए। हमे कुछ कमाना है कुछ कर दिखाना है।
ठंड हमे यह मौका देता है, दिखलाने के लिए कि हमारा निश्चय कितना द्रिड है।
Saturday, November 24, 2007
कृतज्ञता और inchanted
दूसरे विषय- मैं अपने भाई के बेटी के साथ इन्चान्टेड देखा। मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आया। एक कारण था कि यह एक नई किसम की परी कथा है। और वह भी डिज्नी से। जिनको नहीं पता, डिज्नी एक कम्पनी है जिसने सारे मशहूर परी कथा को सेलुलोईद पर डाला है। तो डिज्नी से एक ऐसी फिल्म जिसमे राजकुमारी लड़के को बचाती है। जो सब को संभालती है। यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इससे तमाम लड़का लड़कियों को पता चलेगा कि लड़कियाँ भी लड़ सकती है। सिर्फ दिमाक से ही नहीं बल्की बल के साथ भी।
यह एक अपवाद नहीं है। थोडे साल पहले एक और ऐसे ही परी कथा बनी थी- प्रिंस एंड मी। उस मे राजकुमार थोडा दुर्बल था। वह अंग्रेज़ी और भाषाओं के जानकारी रखता था और लडकी चिकित्सक बनना चाहती थी। यह 'उल्टा' है।
इससे अच्छा असर पड़ता है- लोगों को पता चलता है कि लडकी सिर्फ एक नहीं अनेक काम कर पाती हैं। काश आज के बोलीवुड मे भी कोइ ऐसी फिल्म कामियाब हो पाती--जब मैं यह फिल्म देखने गयी एक चोटी सिनेमा मे बहुत बड़ी क्यू थी। पहली शोविंग मे जा ही नहीं पाए। और मेरी बाबू को यह फिल्म अच्छी भी लगी। दो तीन मोड़ पर उसने मेरा हाथ जोर से पकडा हुआ था और वह बादमे बोली- कितनी अच्छी फिल्म थी! उसको नारीवाद के बारे मे कम पता है तो जब मैंने बड़ी ख़ुशी से कहा- "वह कितनी प्रगतिशील फिल्म है" उसने बोला क्यों?
जब मे किसी और से वाद-विवाद कर रही थी इस के ऊपर वह बोलली "आई डोंट गेट इट" मैंने उसके प्यार से कहा "कुछ नहीं, बेटा"
लेकिन उसके मन मे यह कहानी का अच्छा असर होगा। एक बार मेरी एक अध्यापिका ने बोला-लोग पूछते हैं कि बच्चे तो गीता का समकार्थ नहीं समझते तो क्यों उन्हें श्लोक सिखाएं? मेरा जवाब है कि अभी वह अर्थ नहीं समझते लेकिन श्लोक तो मन मे बसते है। और बडे होकर वह अर्थ समझ जाएँगे और श्लोक को जानकार उनको आसानी होगी" वैसे ही यह कहानियाँ हैं। यह हमे याद रहते हैं और बडे होकर जब हम निर्णय ले रहे होते हैं हमे कहानियाँ याद आतें है। चाहे वह दादी के बताए हुए कहानी यह गाए हुए लोरी हों यह परी कथा। तो, जैसे आप मेरे से सुनते सुनते थक गए हो, इस लिए यह सोचना कि फिल्मों और कहानियों मे क्या पेश किया जा रहा है यह अहम है।
एक और बात- यह समाज के बदलाव का एक संकेत है क्योंकि डिज्नी एक ऐसी कम्पनी है जो यह ध्यान मे रख कर चलती है। पहले जब अमरीकी मे रेसिस्म दिखा सकते थे तब उन्होने एक रेसिस्ट फिल्म बनाई थी। लेकिन अब उन्होने एलान किया है कि वह एक ऐसी परी कथा बनाएंगे जिसमे अलाप-संख्यक लोग कुमार और कुमारी का रुप धारण करेंगे।
Wednesday, November 21, 2007
Sunday, November 18, 2007
शूताऊt अट लोखंडवाला
देखा का एक क्लिप देखा। वह अंत का क्लिप था और उसमे पूछा गया कि आप क्या चाहते हैं? बाहर ए.टी.एस हो यह मोब। इस का जवाब देना मुश्किल है। इस फिल्म मे बहुत कोशिश कि गयी के दोनो तरफ के लोगों का जो तर्क था, जीवन था, वह दिखाया जाए।
मोब के लड़कों के भी परिवार वालों, उनके भी दुःख को दिखाया और पोलिस वालों के कुर्बानियां। और अंत मे बताते हैं कि ए.टी.एस ने क्या कर दिखाया और उसके बंद करे जाने के बाद ही मुम्बई बम ब्लास्ट हुए। कारणकार्य-सम्बन्ध लगाना मुस्खिल है-ए.टी.एस। रोक पाती यह नहीं? लेकिन यह सब फिजूल की बातें हैं। सच बात है कि किसी कारन भारतीय सरकार ने इसे रोक दिया था। क्यों? यह वो ही जाने।
लेकिन जब मैंने फिल्म पहली बार जब मैंने फिल्म देखी तो मेरे अंदर बहुत घबराहट उमड़ी थी। ऐसे सरकारी फैसले से मुझे हमेशा डर लगा है क्योंकि मुझे लगता है के ऐसे शक्ति का इस्थिमाल ज़्यादातर गलत ही होता है। लेकिन फिर उन लोगों का क्या जो मारे जाते। जो तड़प तड़प के जीते। इस सवाल का मेरे पास जवाब नहीं। आप लोग ही मुझे बताएं।
Saturday, November 17, 2007
मेरी थकान
और कल मुझे एक जगह जाना ही जान है। लेकिन वह २ घंटे के लिए। लेकिन तैयार होने मे भी एक घंटा लग जाएगा। यही है मेरी दुविधा। देखा अब से ही मुझे जम्हाई आ रही हैं। इस हालत मे मैं ३९१ के लिए काम कैसे करूंगी? करना ही पडेगा। क्योंकि अगर यह प्रोब्लेम्ज़ नहीं कर पाए तो मुझे सोमवार को मदद लेने जाना चाहिए। क्योंकि फिर परीक्षा के मार्क्स देने वालें है वह तो फिर बहुत लोग उसके बारे मे उनसे बात करने जाएँगे तो फिर उनके पास हमसे बात करने के लिए कम वक्त होगा।
Friday, November 16, 2007
आज के मौसम मे बहुत लोगों दूसरे पर ध्यान दे रहे हैं। यह गलत है। हमे अपने पर और अपने कार्यों के बारे मे सोचना चाहिए। आप ने उस औरत से ठीक से बात कि। आपने उसे बुरी नज़रों सो क्यों देखा? ऐसे चीजों पर विचार करना उचित है।
आज फिरसे सुनने मे आया था कि आल शार्पटन ने राज्धाने मे राली लगाई कि सरकार और क्यों नहीं कर रहीं है लोगो को बचाने के लिए। लेकिन ऐसे नेताओं पूरे देश के बारे मे क्यों नहीं सोचते? कल दबाते मे किसी ने सही पूछा रेशल प्रोफयालिंग क्यों नहीं रोकते। जब आतंकवादी हमले हुए ही थे मेरे पापा और बहुत से लोगों ने कहा था कि हमे रेशल प्रोफयालिंग के साथ थोडी देर जीना होगा क्योंकि समझ सकते हैं कि क्यों। लेकिन अब बहुत ज़्यादा ही वक्त हो गया है। रेशल प्रोफयालिंग से कुछ नहीं होता। बहुत कम लोगों को सिर्फ रेशल प्रोफय्लिंग से पकडा जा सकता है। हाँ, अगर रेशल प्रोफयालिंग को बहुत से चीजों मे से एक्स इस्थिमाल किया जाए वह ठीक है। फिर उसका इस्थिमाल ठीक है. उचित है।
Wednesday, November 14, 2007
हमरे अंदर खोट
रंग दे बसन्ती मे दिखातें है कि आज़ादी के लिए जान नौचावर करने वाले अश्फक़ल्लाह खान को रामप्रसाद बिस्मिल, एक और आज़ादी का सिपाही ने कहा "तुम अफ्घनिस्तान चले जाऊं। वह लोग तुम्हारे अपने है"
"तुम्हारे अपने? क्या मैं तेरा अपना नहीं?"
दो आज़ादी के सिपाही मे भी यह अंतर आ गया था। देश मे बहुत लोगों मे भी यह फरक आ जाता है-- मैं भारातीय हूँ, मेरा रंग ज़्यादा काला है इस लिए मैं औत्सोर्सिंग से परसन होंगी। नहीं मैं जानती हूँ कि इससे अमरीका को कितना और कैसे नुकसान पहुंच रहा है। बराक ओबामा काला है और उसका मध्य नाम हुसेन है तो वह भी कैसे सचा देश भक्त हो सकता है। गलत।
लेकीन इस क बारे मे बात करना आसान है। हम क्या करेंगे? मैंने भी यह भूल किया है कि मैं किसी के रंग यह पोशाक के कारण समझती हूँ कि वह भी एक तारा सोचता होगा। तो सुझाव हम से शुरू होता है। और मैं जानती हूँ कि मैं इस मे अकेली नहीं हूँ।
Tuesday, November 13, 2007
फ़ाइनल class
१९९४ मे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन कि सफलता ने इन्ड्स्त्री का हुलिया ही बदल दिया था। दोनो फिल्म ने रेकॉर्ड्स तोड़ दिए थे। और उनकी खास बात? जहाँ और निर्देशकों खून-खराबा, कम कपडे और रंगीली फिल्म बना रहे थे यह दोनो फिल्म परिवार के साथ देखने योग्य थे और हैं। दिलवाले मे एक खून-खराबा का सीन भी है लेकीन छोटा है। और इस के इलावा दोनो फिल्मो का असर ख़ुशी, संस्कृति और संस्कारों पर है। फिल्म मे लड़कियाँ हमेशा पूरे कपड़े पहनती हैं। एक और भिन्ता। दोनो लड़कियाँ दुर्बल हैं। सिमरन पापा के आज्ञा के खिलाफ नहीं जाती। जब पापा घोषित करते हैं कि वह उनके साथ पंजाब जाकर कुलजीत से शादी करेगी, वह भाग के राज के पास नही जाती। बल्की सिर्फ रोती है। राज का इंतिज़ार करती है कि सिर्फ वह मुझे इस शादी से बचा सकता है। हम आपके हैं कौन मे निशा कुछ नही कहती जब उसको पता चलता है कि उसके माता-पिता ने समझा कि वह राजेश से शादी के लिए राजी हो गयी है। उसने नहीं कहा कि गलती से मैंने हाँ कह दी, मे प्रेम से प्यार करती हूँ। और पे और इस फिल्म मे जो औरत मन की बात बोलती है, वह है मामी और वह खलनायक के रुप मे आती है। पूजा बौजी एक और आदरणीय औरत हैं और वह अपना त्याग करतीं है। तो यह दोनो फिल्मों मे एक समानता है जिसने आगे जाने पर फिल्मो पर बहुत असर डाला था। और मेरा मानना है कि इस लिए १९९४ के पहले और बाद फिल्मो मे इतनी असामनता है
१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत दुर्बल हैं और मर्द का इनित्ज़ार करती है। कल हो ना हो मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना कि माँ, सहस क्यों का पर पाए? अमन ने क्या किया, हिमत करके दादी को जेनी का सच बताया। उसने दिमाक लगा कर व्योपार का कुछ उपाए सोचा। राजा हिन्दुस्तानी, जो १९९८ की हिट पिक्चर है, उसमे राजा बचा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती हैं- कुछ नहीं, वह रोती है और उससे बिनती करती है और पापा कि सहित मांगती है। एक रिश्ते मे भी लड़कियाँ लड़कों का इंतिज़ार करती हैं भाई जब आता है फिर वह कुछ करती हैं। कभी ख़ुशी कभी घाम मे पूजा रोहन कि मदद करती है लेकिन, उसने जीजाजी के लिए रोहन को क्यों नहीं खोजा? जया बादमे पती को ठुकराती है लेकिन पहले वह जानती है कि बेटा अंजली से प्यार करता है पर वह नैना से सगाई के रस्मों को आगे बढ़ने देती है। यह सिर्फ मैं नहीं कह रही, रीडिफ़।कॉम ने कुछ दिन पहले लिखा था कि हीरोइन कितनी दुर्बल हो गईं हैं।
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ रहे होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णय लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पड़ी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म के बारे मे सोचना उचित है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस ही ने कभी कभी बनाया। और इस फिल्म मे अमिताभ खलनायक है, वह अथीथ को नहीं छोड़ सकता और राखी छोड़ देती है और सफल बंटी हैं । और उसको, अमिताभ, को औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है gham करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।
यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि फिल्म लोगों पर बहुत अससर करते हैं। एक वजह है भारत कि अनपढ़ कि संख्या ज़्यादा है। रामानंद सागर के रामायण मे अरुण गोविल ने रामचंद्र को पेश किया। उन्होने कहा कि इस के बाद कई लोग, खासकर गाव मे उनको सच मे भगवान मानने लगे। गोविल भगवान नहीं। लेकिन कई लोग जो ज्यादा जानते नहीं थे उनको फरक पता नहीं चला कि असली क्या है और नकली क्या । मैं यह कहानी इस लिए दोहरा रहीं हूँ ताके आप को पता चले कि फिल्मों का क्या असर होता हैं। इस असर के कारण ही यह प्रोजेक्ट का कुछ माईना है। और असार कि वजह से हम आर्ट फिल्म, जो लोग बनाते हैं लेकीन ज़्यादा कमाती नहीं है, के बारे मे नहीं बात कर रहें। उन फिल्मो मे बहुत ऐसी बातों पर विचार होता है लेकीन यह लोगों तक नहीं पौंच ती। इस लिए इन का असर कम होता है। हिन्दुस्तान मे बहुत लोग बोल्लीवुद, जो मेनस्ट्रीम सिनेमा है, वह देखते हैं।
प्रोजेक्ट मे दिखाया गया है कि निर्देशक को सोचना चाहिए कि वह क्या कह रहें हैं फिल्म मे। अभी हिन्दुस्तान मे बड़ी केस हुई थी, क्योंकि रेडिफ के मुताबिक धूम, यश राज की हिट फिल्म, के बाद चोरियाँ बड़ गयी और चोरों ने जॉन एब्राहम, जो फिल्म का एक हीरो है, उसके बालों कि नक़ल की। कई लोगों ने इस के लिए यश छोपड़ा को उत्तरदायी ठराया। उसने कहा कि मैंने सिर्फ फिल्म बनाई। इस तर्क मैं भी बुनियात है, लेकिन यह पूरा सफाई नहीं हो सकता। निर्देशक को सोचnaa चाहिए। और इस लिए मै समस्या बताने मे इतना वक्त बिता रहीं हूँ।
यह पेपर बताता नहीं है कि महिलाओं को बुरी तरा पेश क्यों किया जा रहा है। आश्चर्य कि बात तो यह है कि औरतों को दुर्बल, रोता हुआ', और मर्दों पर निर्भर १९९४ हे काड ही पेश किया जा रहा है। एक बदलाव का कारण है दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन। यह दोनो पिक्चरों ने रेकॉर्ड तोडके कमाया। तो शायद इसके बाद निर्देशकों ने सोचा कि darshakon यही चाहते है। लेकिन उनका भी कओई ज़िमिदारी है। उनके पता होना चाहिए कि auraton को ऐसे पेश करने से लोगों सोचने लगेंगे कि औरतों इसी के काबिल है। वह यह नहीं जान पाएँगे, कि जैसे अमर अख़बार एन्थोनी मे नीतू के बहुत रंग थे, वैसे बहुत औरतों के हैं। वह घर भी चला सकती हैं, काम भी कर सकती हैं और लड़ भी सकती हैं।
क्लास- २
क्लास
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ रहे होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णय लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पड़ी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म के बारे मे सोचना उचित है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस ही ने कभी कभी बनाया। और इस फिल्म मे अमिताभ खलनायक है, वह अथीथ को नहीं छोड़ सकता और राखी छोड़ देती है और सफल बंटी हैं । और उसको, अमिताभ, को औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है gham करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।
Sunday, November 11, 2007
खोसला का घोसला
मुझे लगता है कि यह फिल्म असल मे आधुनिक जीवन के अकेलेपन के बारे मे और उसको जीतने के बारे मे है। इस फिल्म मे आप देखेंगे कि हर मोड़ पर खोसला, पुराने खायालत का आदमी, जो अभ भी रिश्तों को भगवान् मानता है अपने बेटे से लड़ता है और नए खयालात से लड़ता है। पहले, हिन्दू धर्म के अनुसार, अछे लोग सत्यवादी होते थे। कभी झूट न बोलते। और इस फिल्म मे ब्रोकर लोग और सब खोसला को इतना बड़ा धोका देते हैं। इस फिल्म मे हर व्यक्ती अपने बारे मे सोचता है। चेरी बुरा आदमी नहीं है लेकिन वह अपने बारे मे सोचता रहा। उसने मेघना के जस्बातों के बारे मे नहीं सोचा जब उसने बाहर जाने का फैसला लिया । और खोसला के दोस्त ने क्या सलाह दी उसको? -- जितनी दोस्ती बना सको बेटे के साथ बनाओ। चाहे इसके लिए पुराने रस्मों को भी तोड़ना पड़े। यह नई बात है। बाप बेटे के लिए घर बना रहा है और बेटे घर छोड़ने कि सोच रहा था। यह आधुनिक जीवन कि कड़ी सचाई है और मैं भी इस मे शामिल हूँ-- सब आन्टीयां दर्तीं हैं की अकेली घर मे क्या करेगी और मुझे थोडे अकेलेपन से आनंद मिलता है । हम को अपने से और दूसरो से लड़ना पड़ता है। अपने बचाव के लिए और ताकी हम अपने को देख सकें कि हम यह गलती नहीं कर रहे।
Saturday, November 10, 2007
बोल्लीवुद और अलप-संखयक लोगों
१९९४ मे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन कि सफलता ने इन्ड्स्त्री का हुलिया ही बदल दिया था। दोनो फिल्म ने रेकॉर्ड्स तोड़ दिए थी। और उनकी खास बात? जहाँ और निर्देशकों खून-खराबा, कम कपडे और रंगीली फिल्म बना रहे थी यह दोनो फिल्म परिवार के साथ देखने योग्य थे। दिलवाले मे एक खून-खराबा का सीन है। इस के इलावा दोनो फिल्मो का असर ख़ुशी, संस्कृति और संस्कारों पर है। फिल्म मे लड़कीय हमेशा पूरे कपडे पहनती हैं। एक और भिन्ता। दोनो लड़कियाँ दुर्बल हैं। सिमरन पापा के आज्ञा के खिलाफ नहीं जाएंगी। जब पापा घोषित करते हैं कि वह उनके साथ पंजाब जाकर कुलजीत से शादी करेगी, वह भाग के राज पे पास नही जाते। बल्की सिर्फ रोती है। राज का इंतिज़ार करना परता है। हम आपके हैं कौन मे निशा कुछ नही कहती जब गलती से मैंने हाँ कह दी, मे प्रेम से प्यार करती हूँ। और पे और इस फिल्म मे जो औरत मन की बात बोलती है, वह है मामी और वह खलनायक के रुप मे आती है। पूजा बौजी एक और आदरणीय औरत हैं और वह अपना त्याग करतीं है। तो यह दोनो फिल्मों मे एक समानता है जो इनके बाद फिल्मो पे बहुत असर डालती हैं। और मेरा मानना है कि इस लिए १९९४ के पहले और बाद फिल्मो मे इतनी असामनता है।
१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत
दुर्बल हैं और मर्द का इनित्ज़ार करती हैं। कल हो ना हो मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना कि माँ, सहस क्यों का पर पाए? अमन ने क्या किया, हिमत करके दादी को जेनी का सच बताया। उसने दिमाक लगा कर व्योपार का कुछ उपाए सोचा। रजा हिन्दुस्तानी, जो १९९८ की हिट पिचर है, उसमे राजा बचा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती हैं। एक रिश्ते मे भी लड़कियाँ लड़कों का इंतिज़ार करती हैं। कभी ख़ुशी कभी घाम मे पूजा रोहन कि सहैता करती है लेकिन, उसने जीजाजी के लिए रोहन को क्यों नहीं खोजा? जाया बादमे पाती को ठुकराती है लेकिन पहले वह जानती है कि बेटा अंजली से प्यार करता है पर वह सगाई के रस्मों को आगे बढ़ने देती है। यह सिर्फ मैं नहीं कह रही, रीडिफ़.कॉम ने कुछ दिन पहले लिखा था कि हीरोइन कितनी दुर्बल हो गईं हैं।
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जाया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ते होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी अपे बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णे लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पडी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।
पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म सोचने योग्य है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस मे अमिताभ खलनायक है। वह बीता हुए कल को नही छोड़ पाटा और उसको औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है घाम करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।
अलप-संखयक लोगों को भी ठीक पेश किया जाता था। लेकिन एक चीज़ है- उन्हें कम दिखाया जाता था। यह ठीक है और बुरा भी। ठीक है क्योंकि इस का मतलब है बुरा तो नहीं दिखा रहे। और बुरा क्योंकि वह भी हिंदुस्तान का हिससा हैं। अगर हम कह सकते की इस के वजह है कि लोग धर्म के बारे मे सोचते ही नहीं थे इस लिए उन्हें दिखाया नहीं जाता। इस वाद-विवाद मे मैं कुछ नहीं कह सकती। लेकिन जो बाकी हिंदुस्तान मे हो रहा था, धर्म के नाम पर खून-खराबा हो रहा था, बोलीवुड उससे बेखबर नही था, इस से लगता है कि कोइ और ही कारन था। लेकिन जिन फिल्मो मे दिखाया है ठीक दिखाया है। अमर- अक्भर अन्थोनी मे तीन बडे मज़हब, इसाई, मुसलमानों और हिन्दुओं को दिखाया था। तीनों अछे थे। और तीनो के धर्म को छुपाया नहीं गया। एन्थोनी ईसाई धर्म का चिह्न लगाता है। और एक गाना मे तीनों अपने धर्म का एलान करते हैं। मुझे यह अच्छा लगा।
एक बात है जिससे लगता है कि अभी चीजे पूरी तरा बिगडी नहीं हुई। आज कल बहुत लोग कर्मण्यतावादी फिल्म बना रहें हैं जिसका मकसद है दिखाना कि क्या हिंदुस्तान मे बुराएया है जो सुलझाने चाहिए। और मे सिर्फ सफल निर्देशकों के फिल्मो के बारे मे बात करूंगी कारण बाद मे बताया जाएगा। राजकुमार संतोषी ने लज्जा बनाई। इस फिल्म मे साफ दिखातें हैं कि bhaarat मे औरतों पर क्या ज़ुल्म हो रहें हैं। चक दे मे दोनो, मुसलमानों पर क्या ज़ुल्म हो रहे हैं वह दिखाते हैं और महिलाओं के समस्याओं के बारे मे बात करती हैं।मिशन कश्मीर मे मुसलमानों पर क्या बीतती है इसके बारे मे बता ते हैं। असल मे मिशन कश्मीर मे बहुत बुरा हो सकता था। क्योंकि बहुत लोग सोचते हैं कि सब मुसलमान आतंकवादी हैं। लेकिन इस फिल्म मे साफ दिखाते हैं कि इस्लाम आतंकवाद की इजाज़त नही देता। और एक सीन, जहाँ पर खान, संजय दत्त, और एक आईएस वाला बात कर रहे होते हैं, खान पर आरोप लगाया जाता है कि वह आतंकवादी है। और वह गुस्सा हो जाता है और कहता है कि यह इस देश की बद्किस्माती है कि बहुत सालों से गोली खाते आदम पर आतंकवादी होने का इलजाम इस लिए गाया जा रहा है क्योंकि वह मुसलमानी हैं। तो यह बात अच्छी है। लेकिन ऐसी फिल्मों की पहुंच कम होती है। इस लिए दूसरे फिल्मो का सुधार आवश्यक हो जाता
हैं।
यह बहुत ज़रूरी क्योंकि फिल्म लोगों पर बहुत अससर करते हैं। एक वजह है भारत कि अनपढ़। रामानंद सागर के रामायण मे अरुण गोविल ने रामचंद्र को पेश किया। उन्होने कहा कि इस के बाद कई लोग, खासकर गाव मे उनको सच मे भगवान मानने लगे। गोविल भगवान नहीं। लेकिन कई लोग जो ज्यादा जानते नहीं थे उनको फरक पता नहीं चला। मैं यह कहानी इस लिए दोहरा रहीं हूँ ताके आप को पता चले कि फिल्मों का क्या असर होता हैं। इस असर के कारण ही यह प्रोजेक्ट का कुछ महत्त्व है। इस प्रोजेक्ट मे दिखाया गया है कि निर्देशक को सोचना चाहिए कि वह क्या कह रहें हैं फिल्म मे। अभी हिन्दुस्तान मे बड़ी केस हुई थी, क्योंकि रेडिफ के मुताबिक धूम, यश राज की हित फिल्म, के बाद चोरियाँ बड़ गयी और चोरों ने जॉन एब्राहम, जो फिल्म का एक हीरो है, उसके बालों कि नक़ल की। कई लोगों ने इस के लिए यश चोपडा को उत्तरदायी ठराया। उसने कहा कि मैंने सिर्फ फिल्म बनाई। इस तर्क कि सीमा है, लेकिन यह पूरा सफाई नहीं हो सकता। निर्देशक को सोचा चाहिए। और इस लिए मई समस्या बताने मे इतना वक्त बिता रहीं हूँ।
यह पेपर बताता नहीं है कि महिलाओं को बुरी
तरा पेश क्यों किया जा रहा है। आश्चर्य कि बात तो यह है कि औरतों को दुर्बल, रोता हुआ, और मर्दों पर निर्भर १९९४ हे काड ही पेश किया जा रहा है। एक बदलाव का कारण है दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन। यह दोनो पिक्चरों ने रेकॉर्ड तोडके कमाया। तो शायद इसके बाद निर्देशकों ने सोचा कि यही दर्शादोक चाहते है। लेकिन उनका भी कओई ज़िमिदारी है। उनके पता होना चाहिए कि औअर्तों को ऐसे पेश करने से लोगों सोचने लगेंगे कि औरतों इसी के काबिल है। वह यह नहीं जान पाएँगे, कि जैसे अमर अख़बार एन्थोनी मे नीतू के बहुत रंग थे, वैसे बहुत औरतों के हैं। वह घर भी चला सकती हैं, काम भी कर सकती हैं और लड़ भी सकती हैं।
परिवार के प्रती धर्म
यह करने से मुझे ख़ुशी मिलती है और मुझे लगता हैं कि मैं कर्तव्य का पालन कर रहीं हूँ। आख़िर बच्चे का भी तो कुछ कर्तव्य बंता है। हम छोटे हो यह बडे जितना कर सकते हैं उतना तो हमे करना ही चाहिए। मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूँ कि हमे सिर्फ अप्ना कैरियर सुधारना चाहिए। यह हमारे अंदर गलत सिद्धांत डालता हैं। हमे सिखाता है कि काम के इलावा हमे कुछ नहीं करना हैं। नहीं। इंसानियत, बच्चे होने के कारण, बेटे/बेटियाँ के नज़रिये से, और बहन/भाई का भी कर्तव्य निभाना है।
Friday, November 9, 2007
ओबामा और देश प्रेम
ओबामा का इतना उतावला होना इस बात को साबित करता हैं कि अमरीका मे देश प्रेम कि क्या एमियत हो गयी हैं कि ओबामा डर ने लगें हैं कि यह विषय उनको डुबो ले जब पहले से उनके चुनाव जीतने का सपना को पाना मुश्किल लग रहा था। अगर क्लिंटन ने, और वह कभी ऐसे गलती नहीं करेगी क्योंकि क्लिंटन ने यह पाठ जल्दी सीख लिया था कि कुछ चोत्ती बात यह तस्वीर आशाओं को डुबो सकती है, तो यह छोटी बात होती। लेकिन ओबामा का डरना अभी ठीक हैं।
इस माहौल मे किसी का कहना कि तुम देश प्रेमी नहीं हो, बहुत चिंता की बात हैं। लेकिन काश मेरे देश वासीयों इस देश प्रेम को कोइ अच्छा रुप दे सके और देश के मूल्यों कि रक्षा करें। वह नेताओं से कहते कि इस सीमा का आप उलंघन नहीं कर सकते। वह कहते कि आप इसको नहीं मार सकते क्योंकि यह भी हमारा है। आप इसको बेघर नही बना सकते, इस ने हमारे देश के लिए लड़ा है।
Wednesday, November 7, 2007
जैना- ६
यह जैना केस और इसके पीछे कर्वहात कि भूमिका है- यह असमानता।
Tuesday, November 6, 2007
लेकिन यह पोस्ट ख़ुशी और कृतज्ञता के बारे मी हैं। मुझे लगता हैं कि धन्यवाद करना बहुत ज़रूरी हैं। कई लोगों जो बहुत "हाई" करते हैं, उनके पास बहुत हैं। इन सब चीजों के लिए भगवान से आभार प्रकट करने का बजाए लोग शिक़ायत करते रहते हैं। घर मी दो गाड़ियाँ हैं लेकिन तीसरा नहीं हैं इस लिए शिक़ायत करेंगे। यह नहीं सोचेंगे कि बगल वाले के पास एक भी गाड़ी नहीं हैं और उसको पैदल जाना पड़ता हैं।
मैं भी यह भूल करती हूँ और शिक़ायत करूंगी - मैं तीन साल से हिंदुस्तान नहीं गयी लेकिन मेरे कई दोस्त दस साल से नहीं गए और माँ और पापा ने बोला हैं कि शायद इस साल यह अगले साल भेज पाएँगे।
राजश्री एक मुसलामानों को रखेंगे ही रखेंगे लेकीन ज्यादातर वह कुछ करेगा नहीं। अमर-अख़बार-अन्थोनी मे सब सम्मान हैं।
Monday, November 5, 2007
आताम्निर्भार्ता
तो यहाँ आकर भी मुझे अपना रास्ता ढूँढ ना आता हैं। कल मेरी लप्तोप टूट गया, मैं खुद दुकान पर गई। और हिन्दी प्रेजेंटेशन के लिए दूसरा खोजा। प्रेजेंटेशन के लिए भी मैंने किसी की सहिता नहीं मांगी। एक शब्द का हिन्दी शब्द माँ से पूछा। बस।
लेकिन जैसे मैंने कहा इस कि भी शिक्षा देनी पड़ती हैं। माँ कहती हैं कि जब वह बड़ी हो रही थी तो हमेशा कोई न कोई होता था और अकेलापन उनके लिए नई चीज़ थी। क्योंकि यहाँ पर पापा काम पर चले जाते। घर के बाहर शिक्षा पाने से यह भी आता हैं। क्योंकि, जैसे मैं अभ हॉस्टल मैं हूँ तो मेरी ज़िमेदारियां कम हैं। तो मैं थोडी देर के लिए सिर्फ यह सोच थी हूँ कि मुझे क्या करना हैं और करना चाहिए। इस से मुझे मालूम पड़ता हैं कि मुझे क्या अच्छा लगता हैं और यह कैसे कर सकती हूँ। जब मैं घर पर होती हूँ तो मैं पहले बेटी होती हूँ और उस नज़रिये सो सोच न पड़ता हैं। और बाहर रहने से अकेलेपन को कैसे झेलते हैं यह भी सीखने को मिलता हैं।
Sunday, November 4, 2007
डान राड्क्लिफ
अपने को वह अच्छे से संभालता हैं। वह ठीक से बात करता हैं। और यह इस सचाई के बाद- जिस से भी बात करो वह कहते हैं कि निजी ज़िंदगी मे राड्क्लिफ बहुत मजाकी हैं। एक सेट पर भी उसने थोडा बदमाशी किया था। लेकिन कभी हद से आगे नहीं गया। और मैं यह सब कहती हूँ और मैं उसकी "फंगिर्ल"= -अमारीकी भाषा मैं भी नहीं हूँ। लेकिन अगर और मशहूर लोग राड्क्लिफ जैसे वर्ताव करने लगे तो इस देश मे कितना और कैसे बदलाव आएगा। यह भारत मे भी सच हैं जहाँ पे सलमान खान जैसे स्तार्ज़ भी मौजूत हैं.
Saturday, November 3, 2007
मुशेरफ का भाषण
लेकिन उनके विरोध से सच मे क्या होगा? अमरीका अभी पाकिस्तान को बहुत रुपये दे रहा हैं। और कम से कम यह रुपए मुशेरफ के साथी को खुश रख रहा है। यह बहुत ज़रूरी हैं क्योंकि अगर साथी नाराज़ हो गए तो मुशेरफ को जल्दी भाग न पड़ेगा।
मुझे मुशेरफ के लिए कम चिंता हैं। मेरी चिंता तो उन आम आदमियों के लिए हैं जो लड़ाई के बीच मे फसें हैं. उनके लिए मैं प्रर्था कर रहीं हूँ. प्रभु उनकी रक्षा की जिए गा।
Friday, November 2, 2007
राष्ट्रवाद
मेरा भारत महान कहने मे कुछ गलत नहीं हैं। भारत मे बहुत से गुणे हैं। एक हजार सालों मे भारत ने किसी भी देश पे आक्रमण नहीं किया हैं। भारत ने दुनिया को दशमलव दिया हैं। लेकिन यह बुरी बात होगी अगर हम मे से किसी ने कहा कि भारत महान हैं और दूसरे सब देशों खराब यह बुरे।
राष्ट्रवादी होना बुरी बात नहीं हैं। यह कभी कभी देश प्रेम का लक्षण होता हैं। लेकिन राष्ट्रवाद और देशप्रेम दोनो कि भी एक सीमा होती हैं जिसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
Wednesday, October 31, 2007
पाकिस्तान मे हो रहे अस्थिरता
तो मैं पहले लोगो को ध्यान मे लाती हूँ। लेकिन अब मे काम कि बात करती हूँ। पाकिस्तान मे परिस्थिती ठीक नही हैं। दंगा फसाद रोज़ की बात हो रही हैं। और मसले का कोई असली हल नहीं दिख रहा। असल मे बात और गंभीर होने जा रही हैं। आज न्यायालय ने बोला हैं कि सरकार को नवाज़ शरीफ को देश से निकालने का कोई हक नही था। पाकिस्तानी हुक़ूमत अभी परवेज़ मुशर्फ के हाथ मे है। और वह नही चाहता कि शरीफ वापस आए। और न्यायालय के निर्णय के बाद शरीफ ने बोला वह फिर से वापस आने का कोशिश करेगा। और और भी अस्थिरता आएगी जब शरीफ वापिस आएगा। और बम फूटेंगे, और पठाके फूटेंगे. और लोग मरेंगे। यह काफी हैं। लेकिन एक और चीज़ होए गी। जब यह सब होगा तो हिंदुस्तान के आक्रमण के सम्भावना बढ़ेगा। और पाकिस्तान ने कहा हैं कि अगर हिंदुस्तान आक्रमण करेगी और उनको लगेगा कि वह पाकिस्तान पे राज्य जमाने कि कोशिश करेंगे फिर वह नाभिकीय अस्त्र का प्रयोग करेंगे। और यह दुनिया के लिए और इंसानियत के लिए बहुत बुरा होगा।
हिंदुस्तान यह जानती हैं लेकिन, अगर रिफ्यूजी कि समस्या बढ़ी यह उनको लगा कि अस्थिरता के कारन हिन्दुस्तान पर सरकारी यह आतंकवादी हमले बढेंगे तो शायद हिन्दुस्तानी सरकार आक्रमण का आदेश देदे। फिर हम सब सिर्फ प्रार्थना कर पाएँगे। इस ब्लोग मे मेरे पास कोई हल नही हैं। लेकिन मे यह समस्या सब के सामने पेश करना चाहती थी।
Saturday, October 27, 2007
महाभारत मे दिखाते हैं कि जीवन मे कितना संघर्ष करना पड़ता हैं। पांडवों ने कुछ गलत नही किया लेकिन उनको कितना कितना भुगत न पड़ता हैं। और इस के बाद भी, युधिष्टिर नातों का आदर करते हैं। लाक्षाग्रह के बाद भी वह जेष्ट पिताश्री के आदेशों का पालन करते हैं। इसके बाद भी वह दुर्योधन को अपना भाई मानते हैं। और एक मैं हूँ, जो एक यह दो अपराधों के बाद कई लोगों से क्रोधित हो गयी हूँ।
अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, बरे भाई का आदर करते हैं, द्यूत्कीड़ा के बाद भी बडे भाई के आज्ञा का पालन करते गाए। वह पहचानता गए कि उनको कितना अच्छा भाई, कितना धार्मिक जेष्ट भ्रात्ता मिल। हां यह ठीक हैं कि धर्म राज से एक गलत हुई। लेकिन उन्होने इसके बाद भी उनका आदर किया। थोड़ा सा, अगले दिन उन्होने उनको टोका, लेकिन इस के बाद कभी नहीं। सौभाग्य से मिलता हैं युद्धिश्तिर जैसा भाई। अगर मैं उसके स्थान पे होती तो शायद मैं बहुत पहले हस्तीनापुर के आक्रमण करती। लेकिन यह तो गलत होता।
द्रौपदी मे भी एक दोष के अलावा कितने गुण थे! इतनी आदरणीय बहु, बेटी, पटने, बहन। लेकिन फिर भी उसका एक अपना स्वाभिमान था। वह जानती थी कि उसको स्वयम भी अपना ख़याल रखना होगा। वह हार वक्त पाण्डवों पर निर्भर नही हो सकती।
क्लास असैग्न्मंत
अजीबो गरीब- वह एक अध्बुत किसम का आदमी हैं
अल्फाज़ -- गीत्काव्य मुझे अभी याद नहीं
हैरत से- यह तो बड़ी अस्चार्य की बात हैं!
करीब करीब - लग भाग तीन साल होगे भारत गए हुए।
कातिल - मैं खूनी नहीं हूँ।
जिस्म- उस का तन और शरीर पूरी तारा से ढाका नहीं हैं।
के मुताबिक - सह्पाटी के अनुसार हमे अभी निकलना ठीक हैं।
गुफ्तगू - उन से बातचीत शुरू हुई।
तकसीम करना- हमने लक्ष पालिया हैं।
तब्दीली- उसमे बदलाव आया हैं!
जाहिल - यह एक महामूर्ख हैं!
तमाम - साड़ी सृष्ठी खुश हुई hain।
दरियाफ्त- होने वाले बहु के परिवार के बारे मे हमने पूछताछ कर लिया।
बेशुमार - यह एक अनंत सागर हैं।
नतीजा - उस का परिणाम तो हार ही हो सकता हैं।
मुलाजिम - वह पाठशाला का अधिकारी हैं।
मुल्क- यह देश मुझे बहुत प्यारा हैं।
सरहर्द- सीमा पर फौज रक्षा के लिए खड़ी हैं।
हुकूमत -- मंत्रि-मण्डल इकात्रिक हो गया हैं।
महबूबा - यह मेरी प्रेमिका सोनी हैं।
Thursday, October 25, 2007
और हाँ, अगर आपने न सुना हो, फॉक्स न्यूज़ ने अल काईदा को आग के लिए दोषी ठहराया। मैं बातें नहीं बना रही। सच कह रहीं हूँ।
Tuesday, October 23, 2007
थोडा विश्लेषण
सोन्या: मैं खुद के फैसले करना जानती हूँ। मैं अच्छा फैसला करूंगी तो माँ और बाबूजी को क्या ऐतराज़ हो सकता हैं। बर्ट अच्छा लड़का हैं, वह ठीक कमाता हैं, मुझे अच्छे से रखेगा। तो समस्या क्या हैं? मैं यहाँ पे पली बड़ी हूँ, यहाँ के तोड़ तरीके समझती हूँ और बर्ट मुझे समझता हैं। वह जनता हैं की मैं एक पक्की हिन्दू हूँ। मुझे अपने बच्चे को भारत के रंगों के साथ बड़ा करना चाहती हूँ। और उसने वादा किया था कि वह मुझे करने देगा ।
सोन्या कि दुखित कहानी
सोन्या कमरे से बाहर आई। वह झुक के मुन्नी को चूमी। "दीदी को भूल मत जाना।" "आप हमेशा चोकोलेट लाना तो कैसे भूलूंगी।"
सोन्या रोते रोते हँसी। "चुटकी।"
सोन्या फिर अंदर गयी और फिर उसने चूडी पहने। वह माथे पे टीका सजा ने लगी। माँ अंदर आई "बेटी, दो घंटे मे मंदिर के लिए रवाना होना हैं। "
सोन्या ने सर हिलाया, माँ हो दिखने के लिए कि उसने उनकी बात सुनी। जबसे माँ ने सोन्या के शादी का एलन किया, सोन्या ने उनसे बात नहीं की। माँ को पता था कि सोन्या बर्ट से प्यार करती हैं। जब सोन्या ने माँ को बताया कि वह किससे प्यार करती हैं, उसके तीन बिन बाद माँ ने पापा से कहाँ कि वह सोन्या कि शादी अपने दोस्त के बेटे रोहन से करवा दे। सोन्या पापा की बात नहीं टाल सकती थी। माँ ने पापा को इतना उकसाया कि सोन्या को यह तो पापा को ना करना पड़ता।
सोन्या ने बर्ट को एक खत लिखा था। "तुम जानते हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ। लेकिन पापा की बात को नहीं टाल सकती। मेरे पीछे मत आना। तुझे हमेशा चाहूँगी। सोन्या "ब्लू आएय्स"
माँ दो घंटे बाद सोन्या के पास आई। "तीन साल मे तू मेरा निर्णय समझे गी। "
"मुझसे बात करने के बजाय आप मेरे पीट के पीछे जा कर आपने शादी का निर्णय ले लिया। यह क्या इन्साफ़ हैं?"
"मैं तेरी माँ हूँ। तू मेरी बात कभी नहीं समझती।"
"आप ने बात करके देखा? अगर मे आज्ञाकारी बेटी न होती तो मैं भाग जाती। मैं पकना हूँ। मैं समझदार हूँ। अगर आप मुझे तर्क समझा सकते तो शायाद मैं राजी ही हो जाती। लेकिन, आप ने मुझे उस के लायक नहीं समझा।"
"हमारे यहाँ बच्चों को सिर्फ बताया जाता हैं। यह कौनसी जगह आ गयी जहाँ बेटी को लग त हैं कि उससे सलाह लेनी चाहिऐ थी शादी के लिए।" लेकिन माँ के आवाज़ मे पहली बार थोडा संकोच आया।
"गाडी आ गयी!" नीचे से आवाज़ आई।
सोन्या उठी और गाडी मे बैठ गयी। मुन्नी गो उसने गोद मे बिठाया।
Monday, October 22, 2007
कविता
"तू न हो, तो मे मर जावन।"
"तेरा प्यार ही मुझे ज़िंदा रखता हैं।"
"आख़िर मैं तेरा और तू मेरा!"
यह लिखने का एक और मकसद भी है-- बतादुं कि एक चीज़ को दो दीं तरीकें से देख सकते हैं। यह तो इसे एक प्रेमिका और प्रेमी के बोल समझें, भक्त भगवन से, माँ-बेटी का प्यार (जैसे छोटे बच्चे से बोलते हैं, है तू इतनी मीठी हैं, माँ तुझसे कितना प्यार करती हैं)
यह जानना ज़रूरी हैं क्योंकि हम कभी कभी कानों के सुने पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करते हैं। स्नेह सुनती हैं की- स्नेह को मत बता ना, मैं चुपके से यहाँ से चली जाती हूँ। स्नेह को शक हो जाता हैं, जब स्नेह के दोस्त, रानी और गंगा सिर्फ उस के जनाम्दीन के लिए कुछ कर रहें हैं। स्नेह रूठ जाती हैं। इस बात को ले कर मैं पीड़नोन्मादी हो गयी हूँ। खासकर लड़कियाँ। मेरे दोस्त ने एक बार पूछा कि उसने क्या कहाँ, लेकिन मैंने बोला --बादमे! क्योंकि अगर वह अपना नाम सुनती तो शायद मुझ से रूठ जाती, कि तुम दुसरे से मेरी क्या बात कर रहे थे?
Sunday, October 21, 2007
थकान
क्या यह ठीक हैं? आप मुझे बताएं। अगली बार मुझे क्या करना चाहिऐ। अपनी तरफ से मैंने बहुत काम पहले कर के रखाथा लकिन दो दो हफ्ते माँ और पापा ने घर बुलाया हैं और घर के कामों मे उलझ गयी। और अगर मैं होस्टल मे रह रहीं हूँ तो थोडा वक्त बातों मे भी बिताना पड़ ता हैं।
दशेरे पर थोडे विचारों
इस से हमको सीखना चाहिये कि अन्याय का विरोध करो। आज भी बहुत जगह मे लड़ाई हो अही हैं। डारफुर मे जातिसंहार हो रहा हैं। इस मामले मे मैं थोडी सी बोलती ज्यादा और करती कम हूँ। मैंने अभी डारफुर मे हो रहे अत्याचारों के विरोध मे ज्यादा नहीं किया। मेरा करने के इरादा हैं। लेकिन मेरे साथ आप भी कुछ करने का वादा करें। दशेरका यह तो असली मतलब हैं। कुछ करिये। यह जानिए की सत्यमेव जयते। कि सत्य और न्याय हमेशा जीतेगी। लेकिन उसको हमेशा हमारे साहिता कि ज़रूरत हैं।
Tuesday, October 16, 2007
डेमोक्रेसी- भारतीय और अमरीकी
यहीं बात होनी चाहिए। अमरीका मे बहुत लोगों को २००० चुनाव पर लज्जा आई। हमने कहाँ, यह कैसे को सकता हैं की बुश राष्ट्रपति घोषित हो सकता हैं जब की ज़्यादा लोगों ने गोर के लिए वोटों डालें हैं। और पे और किसी को राष्ट्रपति बनने मे इतना वक्त लग रहा था। लेकिन, एक पोलिश प्रधान मंत्री ने कहाँ की बहुत देशों के मंत्रियों ने कहाँ था कि बल्कि यह बताता हैं की अमरीकी डमोक्रसी कितनी मज़बूत हैं की ६ हफ्ते के बाद दोनो पक्ष न्यायालय के फैसले का इंतज़ार कर रहे थे। उन्होने बोला, जो मंत्री बात कर रहा था, कि उनके देश मैं अगर इतने दिनों बाद किसी को पदवी नहीं मिलती तो कोई और अपने को बल के साथ नीयुप्त कर लेता।
Monday, October 15, 2007
त्यौहार मुबारक
मुझे नींद आ रही हैं। मैं नमसते कहना चाहती थी, लेकिन और मैं कल लिखूंगी। आशा हैं अगर आप मुसलमान हैं तो आपका ईद बहुत अच्छा रहा होगा। अगर आप यहूदी हैं तो आप को सुकोत मुबारक। अगर आप हिंदु हैं, तो नवरात्रि कि शुभकामनाएं। अगर मैं भूल गई तो मुझे याद करवाए की मैं विजय-दशमी/दशेरे पे धर्म के जीत के बड़े मे लिखूंगी। क्योंकि वह आज के समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं और फिर त्यौहार के लिए कुछ करूँगी भी। अगर कोई और धर्म का कोई त्यौहार हैं जो मैं भूल गई, मुझे बताएगा। मैं दशेरे के बारे मे लिखूंगी केवल इस लिए कि मुझे इस त्यौहार के बड़े मे पता हैं, और ईद के बड़े मे कम। और गलत चीजों के साथ मैं किसी को क्रोधित नहीं करना चाहता।
Saturday, October 13, 2007
प्रेम रोग
हमे याद रखना चाहिऐ की कई यह लोग भी अच्छे हैं और मदद करना चाहते हैं बस उनको पता नहीं कैसे। उनके गुणों के लिए सज़ा दो, उन गुणों के लिए नहीं जो उन्होने नहीं किया । उनको साथी और मित्र बना लो दुश्मन नहीं यह दिखा कर की वह क्या कर सकते हैं।
Thursday, October 11, 2007
जोधा-अख़बार
ऐसे ही एक फिल्म हैं - सेव थी लास्ट डांस। इस फिल्म मे एक अफ्रीकी-अमरीकी लड़का और अमरीकी लड़की एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। और बहुत सी बाधाएं उनके रास्ते मे उठी। उनको सोचना पड़ा की वह कहाँ के होना चाहते हैं। लड़का के पुराने दोस्तों उसको अपराधों की ज़िंदगी मे धकेलने लगे। लकड़ी के पिता ने उसको एक नए जगह मे पालना चाहा। लेकिन फिर उन्होने सोचा की प्यार सब से अहम चीज़ हैं। लेकिन प्यार के साथ साथ वह दोनो अपने सपनों को पूरा करने लग गए।
Wednesday, October 10, 2007
देश-प्रेम
मैं उनको सलामी देती हूँ और कहती हूँ कि जब भे मैं कोइ विरोध प्रदर्शन के बारे मे सोचुन्गी भी तो आप लोगों के बारे मे भी सोचुन्गी। मे ध्यान मे रखूंगी की हमारा किया आप के लिए कितना हानीकारिक हो सकता हैं। अगर हम ने बहुत सोच समझ के चुनाव मे वोट नहीं डाला तो क्या क्या भुगतना पडेगा। अगर हमने अपने राश्त्रपतीयों और संसद के लोगो सो प्रशन नहीं करा तो आप का क्या होगा। आप जो हमारे लिए लड़ रहें हैं।
यह सब सोचते सोचते मुझे खयाल आता हैं कि शायद ड्राफ्ट होना ही चाहिऐ तो हम सब भुगतें क्योंकि अभी ज्यादातर गरीबों और उनके परीवार वालें भुगत रहें हे। जो लोग युद्ध का एलान करते हैं, उनके कम बच्चे लड़ रहें हैं। यह हमेशा नहीं होता था। संसदी केनेडी का बीटा, जो जाकर राष्ट्रपती बना वह दुसरा महायुद्ध मे लड़ा। और संसदी केनेडी युद्ध की नीती मे भाग ले रहा था। वाह। तो वह कुर्बानी सिर्फ दूसरो से नहीं मांग रहा था।
Sunday, October 7, 2007
जहाँ तक मैंने देखा हैं, वहाँ तक महिलाओं को ठीक प्रस्तुत किया हैं। कीं सीरियल, जैसे एलीयास, एक ए। बी। सी का सीरियल हैं। उस मे जो हीरोईन हैं, सिडनी, वह एक मोडेर्ण लड़की हैं। वह अपनेलीये सोचती हैं, कभी कभी गलत फैसला लेती हैं लेकिन देखना चहीये की निर्देशक ने उसके फैसले को कैसे दिखाया हैं। उसने सिडनी को इन्सान के रुप मे दिखाया हैं, वह कभी कभी गलत फैसले लेती हैं, लेकिन समझ सकते हो क्यूँ । यह इस लिए जान ना ज़रूरी हैं क्योंकि अगर वह कोई दूसरी तारा उस को पेश करते, तो देखना पड़ता कि क्या उससे इस लिए दिखा रहें क्योंकि वह महिला हैं। जैसे, सिडनी के पापा, जैक, हमेशा सिडनी के भलाई पर ध्यान रखते हैं, और उसके हित के लिए कदम उठाते हैं। लेकिन सिडनी अक्सर उन पे और उनके इरादों पे शक करती हैं। उस के पद मे रुकावट डालती हैं। यह आदरणीय भारतीय महिलएं कभी नहीं करती। जिस तारा हम अपने औरतों को दिखाते हैं, जिस पगड़ी पे हम उनको रखते हैं, वह सिडनी जैसे औरतों को वैश्यअ के रुप मे देखेंगे।
लेकीण, अमरीकी फ़िल्मों को अल्प-संखयक लोगो को कैसे दिखाते हैं, इस पे ध्यान रखना चाहिऐ। एक अफ्रीकी-अमरीकी एक्टर ने कहा, "मेरे रंग के कारण मुझे यह तो मारा-मारी के रोल मिलते हैं, यह वो लड़का जो समाज को छोर कर अपने को कुछ बनाता हैं।" हिंदुस्तानियों को ज्यादातर वह दिमाकी, यह आतंकवादी के रुप मे दिखाते हैं। वह यह ज़िक्र करते हैं कि एक दो अल्प-संख्या रखने से वह महान बने। लेकिन नहीं, हिंदी फ़िल्मों भी यह गल्ती करते हैं। हमे देखना और सोचना चाहिऐ की हम उनको कैसे दिखाते हैं। यह ज़्यादा ज़रूरी हैं। अगर आम बच्चा यह बड़ा कम अल्प-संख्या लोगों को देखे, और वह भी एक ही रुप मे तो वह सोचने लगेगा की अल्प-संख्या ऐसे ही हैं।
तो आज अमरीकी निर्देशक ठीक से महिलाओं को दिखा रहें हैं, कई नौकरी कर रहें हैं, कई घर संभाल रहें हैं। एक ऐसी फिल्म हैं स्तेप्मोम, उस मे जूलिया रॉबर्ट्स नौकरी करती हैं, और सुसन सरेनिदों घर पे बच्चे सँभालने का काम करती हैं , दोनो को अच्छे रुप मे दिखाया हैं। यहाँ तक फिल्म का एक मकसद हैं दिखाने के लिए के दोनो औरतों ठीक हैं। जूलिया को सीख ना पड़ता हैं कि बच्चे को आगे रखना चाहिऐ लेकिन यह कह कर निर्देशक कोलंबस यह दिखाना चाहता हैं की दोनो को जानना पड़ता हैं की दोनो तरीके ठीक हैं।
Friday, October 5, 2007
आज के समाज मे शादी
गृहस्ती ठीक से तभी चलेगी जब दोनो यह तो एक काम करें, यह दोनो दोनो कामों करें। लेकिन इस बात कर ध्यान रखना ज़रूरी हैं कि कोई परिवार मे एकता बनाने पर भी ध्यान रखें।
Thursday, October 4, 2007
इस पोस्ट को कुछ नहीं जोड़ता
इस हफ्ते काम कुछ ज्यादा बड़ा हैं। इस लिए मेरे पोस्टें मे ज्यादा अंतर रहा हैं। मे रोज़ पोस्ट नहीं कर पा रही। लेकिन फिर से कोशिश करूंगी, क्योंकि भाषा मे सुधार बाकी हैं, जो सिर्फ अभ्यास से हो सकता हैं। मे यह भी कहूँगी की आप लोगों का संयोग मेरे लिए बहुत कीमती रहा हैं।
पाठशाला मे पढते पढते मैंने बहुत जरूरतों पूरी करने के लिए पढा हैं, लेकिन हिंदी मैं अपने लिए ले रहीं हूँ। में गर्व से और सचाई के साथ कहना चाहती हूँ की मैं हिंदी जानती हूँ। आप मे से किसी ने टिप्पणी मे लिखा था कि मैं सुधर लाने के लिए हिंदी मे पढूं भी ताकी मुझे शब्दों का ठीक प्रयोग भी मालूम पड़े। काश यह ज्यादा करने का वक्त होता! मैंने छुट्टी मे ऐसा किया था, और अभी भी जैसे फुर्सत मिलती हैं करती हूँ। लेकिन, इस सलाह के लिए धन्यवाद।
Tuesday, October 2, 2007
गांधी जयंती के मौक़े पे कुछ विचार
दुःख की बात तो यह हैं कि उनका यह कार्य नीति सफ़ल हुआ। हम अंग्रेजों के बजाय एक दूसरे से लड़
उठे। और मैं कभी नहीं कहूं गी कि मुसलमानों के शिकायतों सही नहीं थे। उनके डर के पीछे असलियत छिपा थी। लेकिन यह भी सच हैं कि अंग्रेजों के नीती का भी हाथ था। आज भी हम एक दूसरे से लड़ रहें हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई मे सेंकाड़ो लोग मारे गए और दोनो देशों के प्रगति पे रूकावट डाले रखी हैं।
गांधीजी ने प्रयतन किया की वह हमे सिखाएं की हम मे खासीयत हैं। उन्होने एक नई फल्सफाई का निर्माण किया। सुच मे उनके "सत्याग्राहा" मे अन्ग्रीज़ी और इस्लामी ख्यालों थे, लेकिन उन्होने इस को और अहिंसा को देशी बतलाया। अपने अंतरात्मा को जगाया। उन्होने एकता पाना चाहा। लेकिन, काश। आज तक हमने वह नहीं पाय। उनको किसी विदेशी ने नहीं मारा, बल्की एक हिंदुस्तानी ने मारा। एक हिंदुस्तानी जो एकता नहीं चाहता था। गोडसे के पास अपने विचार थे, लेकिन उसके पीची जो हाथ था वह था सावार्कार का। और अगर उस के, यह उसके भयानक सोच पे बारे मे जानना चाहते हो तो आप उसका लिखा हुआ हिंदुत्व पढ़ें।
Sunday, September 30, 2007
हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई
"लहऊँ, लुहान हो गई ज़मीन यह देवताओं की।"
यह दो लाईने आतंकवाद के सचाई के बारे मे कुछ सचाई बताती हैं। यह ज़िक्र करती हैं कि इस लड़ाई मे अनेक मासूम जानें मिट गईं हैं और कड़ोड़ो का नुक्सान हुआ है। आतंकवाद मे यह सब से बुरी बात हैं की यह बेगुनाओं को मारते हैं। वह लोगों के दिल मे भए और नफरत पैदा करते हैं। यह ही हिंदुस्तान मे हुआ हैं। आप देखेंगे कि हर आक्रमण के बाद एक और हिंसा कायम होती हैं। गुजरात मे जो मारा-मारी हुई थी उस के बाद कई अच्छी लोग भी मुसलमानों से नफरत करने लगे।
यह भी बहुत, बहुत गलत हैं। हम सब मुसलमानों को थोड़े के कार्यों के लिये कसूरवार क्यों ठहर्वाएं। "तीजा रंग था तेरा। तेरे ढंग से जीया"-चक दे (मौला मेरे)।
इस ब्लोग मे बार बार मे इस बात बे जोर करती हूँ कि हम शांती और एकता के साथ रहें। भाईपन। हम जब तक मुसलमानों को दोस्त और भाई न बनाएं तब तक चेन से नहीं रह पाएँगे।