Wednesday, October 31, 2007

पाकिस्तान मे हो रहे अस्थिरता

पहले मे सारे पाकिस्तानियों से कहना चाहती हूँ कि मैं उनसे हमदर्दी दिखाना चाहती हूँ। मैं जानती हूँ कि आप को अभी बहुत डर लग रहा होगा और आप को लग रहा होगा कि कल क्या होगा। एक जो ज्ञान कि दृष्टि से वाद-विवाद करते हैं, वह कभी भूल जाते हैं कि वह सिर्फ काल्पनिक बातें नहीं कर रहें। हमारे वाद- विवाद के पीछे असली लोग हैं जो भुगत रहें हैं।
तो मैं पहले लोगो को ध्यान मे लाती हूँ। लेकिन अब मे काम कि बात करती हूँ। पाकिस्तान मे परिस्थिती ठीक नही हैं। दंगा फसाद रोज़ की बात हो रही हैं। और मसले का कोई असली हल नहीं दिख रहा। असल मे बात और गंभीर होने जा रही हैं। आज न्यायालय ने बोला हैं कि सरकार को नवाज़ शरीफ को देश से निकालने का कोई हक नही था। पाकिस्तानी हुक़ूमत अभी परवेज़ मुशर्फ के हाथ मे है। और वह नही चाहता कि शरीफ वापस आए। और न्यायालय के निर्णय के बाद शरीफ ने बोला वह फिर से वापस आने का कोशिश करेगा। और और भी अस्थिरता आएगी जब शरीफ वापिस आएगा। और बम फूटेंगे, और पठाके फूटेंगे. और लोग मरेंगे। यह काफी हैं। लेकिन एक और चीज़ होए गी। जब यह सब होगा तो हिंदुस्तान के आक्रमण के सम्भावना बढ़ेगा। और पाकिस्तान ने कहा हैं कि अगर हिंदुस्तान आक्रमण करेगी और उनको लगेगा कि वह पाकिस्तान पे राज्य जमाने कि कोशिश करेंगे फिर वह नाभिकीय अस्त्र का प्रयोग करेंगे। और यह दुनिया के लिए और इंसानियत के लिए बहुत बुरा होगा।
हिंदुस्तान यह जानती हैं लेकिन, अगर रिफ्यूजी कि समस्या बढ़ी यह उनको लगा कि अस्थिरता के कारन हिन्दुस्तान पर सरकारी यह आतंकवादी हमले बढेंगे तो शायद हिन्दुस्तानी सरकार आक्रमण का आदेश देदे। फिर हम सब सिर्फ प्रार्थना कर पाएँगे। इस ब्लोग मे मेरे पास कोई हल नही हैं। लेकिन मे यह समस्या सब के सामने पेश करना चाहती थी।

Saturday, October 27, 2007

मैं अभी महाभारत सेरीयल देख रहीं हूँ और मुझे सुझा कि इस कहानी मे कितनी बातें हैं जो हमे बहुत सीखा सकती हैं। युधिष्टिर एक आदर्श परिवार-वाला हैं। वह रिश्ते हमेशा निभाता हैं। एक इसमे पाठ अच्छा हैं - "हमारा झगड़ा एक आपसी झगड़ा, एक घरेलु झगड़ा हैं, बाहर वाले इस का लाभ उठाएं, यह ठीक नहीं" (महाभारत भाग ९)। हम सब को इससे सीखना चाहिएघरेलू झगड़ा, जहाँ तक अत्याचार नहीं हो रहे, को घरेलू झगड़ा को ज्यादातर घरेलू ही रहना चाहिए
महाभारत मे दिखाते हैं कि जीवन मे कितना संघर्ष करना पड़ता हैं। पांडवों ने कुछ गलत नही किया लेकिन उनको कितना कितना भुगत न पड़ता हैं। और इस के बाद भी, युधिष्टिर नातों का आदर करते हैं। लाक्षाग्रह के बाद भी वह जेष्ट पिताश्री के आदेशों का पालन करते हैं। इसके बाद भी वह दुर्योधन को अपना भाई मानते हैं। और एक मैं हूँ, जो एक यह दो अपराधों के बाद कई लोगों से क्रोधित हो गयी हूँ।
अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, बरे भाई का आदर करते हैं, द्यूत्कीड़ा के बाद भी बडे भाई के आज्ञा का पालन करते गाए। वह पहचानता गए कि उनको कितना अच्छा भाई, कितना धार्मिक जेष्ट भ्रात्ता मिल। हां यह ठीक हैं कि धर्म राज से एक गलत हुई। लेकिन उन्होने इसके बाद भी उनका आदर किया। थोड़ा सा, अगले दिन उन्होने उनको टोका, लेकिन इस के बाद कभी नहीं। सौभाग्य से मिलता हैं युद्धिश्तिर जैसा भाई। अगर मैं उसके स्थान पे होती तो शायद मैं बहुत पहले हस्तीनापुर के आक्रमण करती। लेकिन यह तो गलत होता।
द्रौपदी मे भी एक दोष के अलावा कितने गुण थे! इतनी आदरणीय बहु, बेटी, पटने, बहन। लेकिन फिर भी उसका एक अपना स्वाभिमान था। वह जानती थी कि उसको स्वयम भी अपना ख़याल रखना होगा। वह हार वक्त पाण्डवों पर निर्भर नही हो सकती।

क्लास असैग्न्मंत

खोसला का घोसला आधुनिक काल के जीवन के बारे मी फिल्म हैं। एक फिल्म हैं कि पारिवारिक और कारोबारिक जीवन कैसे बदले हैं। पहले, बच्चे माँ और बाप का आदर करते थे, इस फिल्म मे बेटा, चेरी, चोरी चोरी- एक लड़की, मेघना से प्यार करता हैं और उसने अमरीका मे नौकरी के लिए अप्लिकेशन डाली। और जब नौकरी मिली, वह पापा को बता त हैं कि उसने नौकरी ली हैं, पूछ था नहीं। और पापा, के के खोसला, ने लॉट ख़रीदा ताकी परिवार एक साथ रह सके। वह सपने देखने लग गया और हार वक्त चाहता था कि परिवार मे सब सलाह दें और हिस्सा ले। लेकिन फिर चेरी उसको बताता हैं कि वह अमरीका जा रहा हैं। उसको एक और सदमा लगता हैं जब उसको पता चलता हैं कि ब्रोकर ने उसको लूटा हैं और नगर पाल गण भी लुट न चाहते हैं। उसके बाद वह आवेश मे आकर पहलवान से सहित मांगी। यह करने के बाद उसको पता लगता हैं कि पोलिस, ब्रोकर, और पार्टी मिले हुए हैं। वह नाराश जो जाता हैं, लेकिन इस मौक़े पे बरे बेटे, चेरी, को होश आता हैं। वह फिर पार्टी और ब्रोकर को लूटने का प्लान बनाया। यह करते करते वह कोशिश करता हैं कि पापा को मना ले। लेकिन पापा को बहुत घबराहट होती हैं। और वह अभी भी थोड़ा नाराज़ हुआ हैं। इस फिल्म मे दिखाते हैं कि नई भारत मे सब को अपने चीजों का बचाव करना पड़ता हैं। खोसला का सिर्फ एक दोष था- वह ज्यादा भरोसेमंद था। चेरी का दूसरा दोष था-- वह थोड़ा ज़्यादा अपने बारे मे सोचता था। दोनो का मिलाप होना पडा। खोसला को अपने आदर्श थोड़ा दबाना पडा और छल को अपने स्वीकृती देनी परा और चेरी को अमरीकी नौकरी। माँ को पत्नी के धर्म का थोड़ा उल्लंघन करना पडा।

अजीबो गरीब- वह एक अध्बुत किसम का आदमी हैं

अल्फाज़ -- गीत्काव्य मुझे अभी याद नहीं

हैरत से- यह तो बड़ी अस्चार्य की बात हैं!

करीब करीब - लग भाग तीन साल होगे भारत गए हुए।

कातिल - मैं खूनी नहीं हूँ।

जिस्म- उस का तन और शरीर पूरी तारा से ढाका नहीं हैं।

के मुताबिक - सह्पाटी के अनुसार हमे अभी निकलना ठीक हैं।

गुफ्तगू - उन से बातचीत शुरू हुई।

तकसीम करना- हमने लक्ष पालिया हैं।

तब्दीली- उसमे बदलाव आया हैं!

जाहिल - यह एक महामूर्ख हैं!

तमाम - साड़ी सृष्ठी खुश हुई hain।

दरियाफ्त- होने वाले बहु के परिवार के बारे मे हमने पूछताछ कर लिया।

बेशुमार - यह एक अनंत सागर हैं।

नतीजा - उस का परिणाम तो हार ही हो सकता हैं।

मुलाजिम - वह पाठशाला का अधिकारी हैं।

मुल्क- यह देश मुझे बहुत प्यारा हैं।

सरहर्द- सीमा पर फौज रक्षा के लिए खड़ी हैं।

हुकूमत -- मंत्रि-मण्डल इकात्रिक हो गया हैं।

महबूबा - यह मेरी प्रेमिका सोनी हैं।

Thursday, October 25, 2007

पहले, मैं उन लोगो को हमदर्दी प्रदान करूँ जो कैलीफोर्नीया के आग मे लोगों को खो गाए हैं यह जिन्होंने घर और संपती खोया हैं। जो लोग इस आग के कारण बेघर हो गाए हैं। मुझे बड़ा क्रोध आता हैं कि किसी ने जान्बूच के आग जलाई। आज एक समाचार पत्र मे अग्निशमक के नेता ने बोला कि सबसे क्रोध-दायक बात तो यह थी कि सब को पता था कि जब आग जलाया वह जल्दी फेलेगा। और सबसे हानीकारिक बात तो फेलाव ही हैं। तो इस आदमी का इरादा लोगों को मारना ही था। अगर उसका कुछ और इरादा था तो उसको मालूम होना चाहिए कि उसका यहीं अंजाम होगा। दस लाख लोग बेघर हो चुके हैं, एक काउंटी मे एक अरब का नुकसान हुआ हैं। यह कितनी बुरी बात हैं इससे भी साबित होता हैं--जब मुझे खबर मिल कि यह आग किसे ने जान बूच कर जलाया तो मैं बहुत थक हुई थी और समाचार अपने को जागे रखने के लिए देख रही थी। मुझे इतना क्रोध आया कि मैं उठ कर लोगों को बताने लगी।
और हाँ, अगर आपने न सुना हो, फॉक्स न्यूज़ ने अल काईदा को आग के लिए दोषी ठहराया। मैं बातें नहीं बना रही। सच कह रहीं हूँ।

Tuesday, October 23, 2007

थोडा विश्लेषण

मेरे पहले पोस्ट मे क्या दिखाया गया? दिखाया गया कि माँ यह नहीं समझती थी के सोन्या एक आज्ञाकारी बेटी थी। वह बात मान जाती। लेकिन उससे बात न करने का अंजाम बुरा था। अगर माँ अपने तर्क सोन्या को समझा देती, यह तो सोन्या ख़ुशी ख़ुशी शादी करती, यह शायद माँ के विचारों मे कुछ बदलाव आता। लेकिन सही विषय क्या था? दो देशों का अंतर। माँ डर रही थी कि अमरीकी संस्कृति सोन्या के संस्कार पे ग्रहण डाल रहा था। वह डरती थी कि आवेश मे आकर सोन्या बर्ट के साथ कुछ न कर बैठे । उसने सोचा कि मेरी माँ ने मेरी शादी बिन पूछे अपने पसंद के लड़के से कर दिया था, तो सोन्या के लिए भी यह ठीक होगा।
सोन्या: मैं खुद के फैसले करना जानती हूँ। मैं अच्छा फैसला करूंगी तो माँ और बाबूजी को क्या ऐतराज़ हो सकता हैं। बर्ट अच्छा लड़का हैं, वह ठीक कमाता हैं, मुझे अच्छे से रखेगा। तो समस्या क्या हैं? मैं यहाँ पे पली बड़ी हूँ, यहाँ के तोड़ तरीके समझती हूँ और बर्ट मुझे समझता हैं। वह जनता हैं की मैं एक पक्की हिन्दू हूँ। मुझे अपने बच्चे को भारत के रंगों के साथ बड़ा करना चाहती हूँ। और उसने वादा किया था कि वह मुझे करने देगा ।

सोन्या कि दुखित कहानी

यह भी एक कहानी के भाग हैं -- लेकिन यह हमारा पहले कहानी से जुडी हुई हैं।
सोन्या कमरे से बाहर आई। वह झुक के मुन्नी को चूमी। "दीदी को भूल मत जाना।" "आप हमेशा चोकोलेट लाना तो कैसे भूलूंगी।"
सोन्या रोते रोते हँसी। "चुटकी।"
सोन्या फिर अंदर गयी और फिर उसने चूडी पहने। वह माथे पे टीका सजा ने लगी। माँ अंदर आई "बेटी, दो घंटे मे मंदिर के लिए रवाना होना हैं। "
सोन्या ने सर हिलाया, माँ हो दिखने के लिए कि उसने उनकी बात सुनी। जबसे माँ ने सोन्या के शादी का एलन किया, सोन्या ने उनसे बात नहीं की। माँ को पता था कि सोन्या बर्ट से प्यार करती हैं। जब सोन्या ने माँ को बताया कि वह किससे प्यार करती हैं, उसके तीन बिन बाद माँ ने पापा से कहाँ कि वह सोन्या कि शादी अपने दोस्त के बेटे रोहन से करवा दे। सोन्या पापा की बात नहीं टाल सकती थी। माँ ने पापा को इतना उकसाया कि सोन्या को यह तो पापा को ना करना पड़ता।
सोन्या ने बर्ट को एक खत लिखा था। "तुम जानते हो कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ। लेकिन पापा की बात को नहीं टाल सकती। मेरे पीछे मत आना। तुझे हमेशा चाहूँगीसोन्या "ब्लू आएय्स"
माँ दो घंटे बाद सोन्या के पास आई। "तीन साल मे तू मेरा निर्णय समझे गी। "
"मुझसे बात करने के बजाय आप मेरे पीट के पीछे जा कर आपने शादी का निर्णय ले लिया। यह क्या इन्साफ़ हैं?"
"मैं तेरी माँ हूँ। तू मेरी बात कभी नहीं समझती।"
"आप ने बात करके देखा? अगर मे आज्ञाकारी बेटी न होती तो मैं भाग जाती। मैं पकना हूँ। मैं समझदार हूँ। अगर आप मुझे तर्क समझा सकते तो शायाद मैं राजी ही हो जाती। लेकिन, आप ने मुझे उस के लायक नहीं समझा।"
"हमारे यहाँ बच्चों को सिर्फ बताया जाता हैं। यह कौनसी जगह आ गयी जहाँ बेटी को लग त हैं कि उससे सलाह लेनी चाहिऐ थी शादी के लिए।" लेकिन माँ के आवाज़ मे पहली बार थोडा संकोच आया।
"गाडी आ गयी!" नीचे से आवाज़ आई।
सोन्या उठी और गाडी मे बैठ गयी। मुन्नी गो उसने गोद मे बिठाया।

Monday, October 22, 2007

कविता

सच मे, मुझे नहीं सूझ रहा कि मैं किस विषय पर लिखूं। तो मैंने सोचा कि मैं कुछ मनोरंजन-दायक लिखूं। क्या, मैंने सोचा एक प्रेम के बोली। "तेरे बिन जीने असंभव हैं!"
"तू न हो, तो मे मर जावन।"
"तेरा प्यार ही मुझे ज़िंदा रखता हैं।"
"आख़िर मैं तेरा और तू मेरा!"
यह लिखने का एक और मकसद भी है-- बतादुं कि एक चीज़ को दो दीं तरीकें से देख सकते हैं। यह तो इसे एक प्रेमिका और प्रेमी के बोल समझें, भक्त भगवन से, माँ-बेटी का प्यार (जैसे छोटे बच्चे से बोलते हैं, है तू इतनी मीठी हैं, माँ तुझसे कितना प्यार करती हैं)
यह जानना ज़रूरी हैं क्योंकि हम कभी कभी कानों के सुने पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करते हैं। स्नेह सुनती हैं की- स्नेह को मत बता ना, मैं चुपके से यहाँ से चली जाती हूँ। स्नेह को शक हो जाता हैं, जब स्नेह के दोस्त, रानी और गंगा सिर्फ उस के जनाम्दीन के लिए कुछ कर रहें हैं। स्नेह रूठ जाती हैं। इस बात को ले कर मैं पीड़नोन्मादी हो गयी हूँ। खासकर लड़कियाँ। मेरे दोस्त ने एक बार पूछा कि उसने क्या कहाँ, लेकिन मैंने बोला --बादमे! क्योंकि अगर वह अपना नाम सुनती तो शायद मुझ से रूठ जाती, कि तुम दुसरे से मेरी क्या बात कर रहे थे?

Sunday, October 21, 2007

थकान

कभी कभी, खासकर इन दिनों मैं सोचती हूँ कि थकान सिर्फ हमारे मन मे हैं? हम अपने को अभ्यास और नियम के साथ जीने से यह थकान दूर हो जायेगी। लकिन शायद कभी कभी यह हम मन को बहकाने के लिए कहते हैं। आज सुबह मुझे बहुत रोना आया और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं रो क्यों रहीं हूँ। फिर मेरे ध्यान मे आया कि मुझे नींद आ रही थी। मैं काम मे इतनी लग गयी थी कि क्या कहूँ। और जब बिस्तर मे सोने के लिए लेटी तो नींद आने मे वक्त लगा। इस का अंजाम क्या हुआ? तकरीबन तीन हफ्तों से मैं ठीक से सो नहीं रहीं हूँ। तो आज मैंने मम्मी और पापा से बोला कि आप दोनो बाहर चले जाएँ और मे घर पे पढूंगी तो आज रात को मैं सो पाऊं। मुझे थोडा खराब लगा क्योंकि माँ और बाप के साथ भी वक्त बिताना चाहिऐ लकिन अगर मैं थकी थकी उनके साथ समे बिताती तो ना मैं वाहान कि रहती न याहंकी। ऐसे कर के मैं कल को उनके साथ वक्त बिता सकूंगी।
क्या यह ठीक हैं? आप मुझे बताएं। अगली बार मुझे क्या करना चाहिऐ। अपनी तरफ से मैंने बहुत काम पहले कर के रखाथा लकिन दो दो हफ्ते माँ और पापा ने घर बुलाया हैं और घर के कामों मे उलझ गयी। और अगर मैं होस्टल मे रह रहीं हूँ तो थोडा वक्त बातों मे भी बिताना पड़ ता हैं।

दशेरे पर थोडे विचारों

दुशेरे के दिन मे हम सब के लिए एक संदेश हैं -- सत्यमेव जयते। लेकिन हम सब को सचाई के पक्ष मे हमेशा लड़ना चाहिऐ। आज मैं एक सम्मेलन पर गई थी जहाँ पर होलोकास्त से जो लोग बच्चे थे, उन्होने हम सब से बात किया। मुझे लगा कि यह दुशेरे मी मौक़े के लिए कितना उचित विषय हैं। होलोकास्त एक घोर पाप हैं। एक घोर अत्याचार। जिन्होंने मेरे से बात किया उन्होने मुझसे कहाँ मेरे कहानी से सीखो कि लोगों से प्यार से मिलना चाहिये और अत्याचार का विरोध करना हम सब का कर्तव्य है। उन्होने कहा कि जर्मन देश के निवासी अब कहते हैं कि उनको नहीं पता था कि हिट्लर क्या कर रहा था। वह बोली कि कैसे नहीं पता था! कुछ कर सकते थे! उसके, जिस औरत ने बोला, उसके पाती ने कहा, कि यह हार रात जर्मन फौज से स्वप्नों मे लड़ती हैं। उनसे [जान कि] बिनती करती हैं। इस और ऐसे अन्य परिस्थितियों मे हम को, जो अत्याचार होते देख रहें हैं, क्या उनको कुछ नहीं करना चाहिये।
इस से हमको सीखना चाहिये कि अन्याय का विरोध करो। आज भी बहुत जगह मे लड़ाई हो अही हैं। डारफुर मे जातिसंहार हो रहा हैं। इस मामले मे मैं थोडी सी बोलती ज्यादा और करती कम हूँ। मैंने अभी डारफुर मे हो रहे अत्याचारों के विरोध मे ज्यादा नहीं किया। मेरा करने के इरादा हैं। लेकिन मेरे साथ आप भी कुछ करने का वादा करें। दशेरका यह तो असली मतलब हैं। कुछ करिये। यह जानिए की सत्यमेव जयते। कि सत्य और न्याय हमेशा जीतेगी। लेकिन उसको हमेशा हमारे साहिता कि ज़रूरत हैं।

Tuesday, October 16, 2007

डेमोक्रेसी- भारतीय और अमरीकी

एक क्लास के लिए मैं भारत के प्रजातंत्र राज्य के बारे मे पढ़ रही थी और मुझे खयाल आया कि सच मुच कितनी गर्व की बात हैं की इतने सालों मैं हिंदुस्तान को कोई राज्यविप्लव ने नहीं तोड़ा। सब पाठ मे लिखा था की सिर्फ इंदिरा गांधी के अवधि मे प्रजातंत्र वादी स्टाईल पर आंच आयी। लेकिन इंदिरा गांधी को जिस तरा निकाला गया यह भी कुछ कहता हैं। एक पाठ मे भी लिखा था की सच मैं यह दीखता हैं कि अंत मे जो भी इंदिरा के गुनाह थे, और बहुत गुनाह थे, वह पूरी तरा बुरी नहीं थी। उस के अंदर अपने बाप के सिद्धान्त थे-- जवाहरलाल नेहरू को डेमोक्रसी से बहुत प्रेम था। उन्होने संविधान मे बहुत बदलाव लाना चाहा और उनको न्यायालय से शिकायत थी, लेकिन उसने हमेशा उस का आदर किया।
यहीं बात होनी चाहिए। अमरीका मे बहुत लोगों को २००० चुनाव पर लज्जा आई। हमने कहाँ, यह कैसे को सकता हैं की बुश राष्ट्रपति घोषित हो सकता हैं जब की ज़्यादा लोगों ने गोर के लिए वोटों डालें हैं। और पे और किसी को राष्ट्रपति बनने मे इतना वक्त लग रहा था। लेकिन, एक पोलिश प्रधान मंत्री ने कहाँ की बहुत देशों के मंत्रियों ने कहाँ था कि बल्कि यह बताता हैं की अमरीकी डमोक्रसी कितनी मज़बूत हैं की ६ हफ्ते के बाद दोनो पक्ष न्यायालय के फैसले का इंतज़ार कर रहे थे। उन्होने बोला, जो मंत्री बात कर रहा था, कि उनके देश मैं अगर इतने दिनों बाद किसी को पदवी नहीं मिलती तो कोई और अपने को बल के साथ नीयुप्त कर लेता।

Monday, October 15, 2007

त्यौहार मुबारक

थोड़े दिनों के लिए यहाँ कोई पोस्ट नहीं डाला। मैं अपने माता पिता के साथ अपने मामा, मामी, और उनको दोनो छोटे छोटे बच्चों से मिलने गई थी। उनसे मिल कर बहुत ख़ुशी हुई थी। मैं उनके बेटे से पहले बार मिल रहीं थी, क्योंकि वह अभी दो साल का हुआ हैं, और इतनी से मैं भारत नहीं गई हूँ। बेटी भी बहुत बड़ी हो रहीं हैं। अब ठीक से बातें भी करती हैं। हम सब कितने बड़े हो रहें हैं। मैं अभी बुआ हूँ! थोड़े ही दिनों मे, जब मेरे भाई का बड़ा बीटा के शादी होगी तो मैं... बोलूंगी भी नहीं।
मुझे नींद आ रही हैं। मैं नमसते कहना चाहती थी, लेकिन और मैं कल लिखूंगी। आशा हैं अगर आप मुसलमान हैं तो आपका ईद बहुत अच्छा रहा होगा। अगर आप यहूदी हैं तो आप को सुकोत मुबारक। अगर आप हिंदु हैं, तो नवरात्रि कि शुभकामनाएं। अगर मैं भूल गई तो मुझे याद करवाए की मैं विजय-दशमी/दशेरे पे धर्म के जीत के बड़े मे लिखूंगी। क्योंकि वह आज के समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं और फिर त्यौहार के लिए कुछ करूँगी भी। अगर कोई और धर्म का कोई त्यौहार हैं जो मैं भूल गई, मुझे बताएगा। मैं दशेरे के बारे मे लिखूंगी केवल इस लिए कि मुझे इस त्यौहार के बड़े मे पता हैं, और ईद के बड़े मे कम। और गलत चीजों के साथ मैं किसी को क्रोधित नहीं करना चाहता।

Saturday, October 13, 2007

प्रेम रोग

कल मैंने आर के फ़िल्म की बनाया हुआ प्रेम रोग देखा। उस मे बड़ी अच्छे तरीके से दिखाया हैं कि एक छोट्टी नादान बच्ची पे क्या गुज़र ता हैं जब वह विधवा बन जाती हैं। और पे और इस फिल्म मे दिखाते हैं की कई परिवारों मे स्त्री का कितना और कैसे दुर्व्यवहार होता हैं। तनुजा, मनोरमा--विधवा-- कि भाबी उन्के के बचाव की कोशिश करती हैं, लेकिन जब पाती ही विधवा का बलात्कार कर्ता हैं तो वह उसे माई के भेजने के अलावा कुछ नहीं कर सकती। और पे और इस फिल्म मे यह भी दिखाते हैं कि बडे जमींदार और ऊंचे जात वाले कैसे फ़ायदा उठाते हैं। लेकिन यहीं इस फिल्म की बुराई हैं। इस फिल्म मे बार बार कहते हैं की बड़े ठाकुर अच्छे आदमी हैं। और वह भी देवधर का साथ देता हैं, लेकिन उस को क्या मिलता हैं? अंत मे कोई उस को बढावा देता है, की तुम्हारे पास इतनी ताक़त हैं और तुमने हमारा साथ दिया। कोइ सोचता हैं उसके बारे मे? कई समाज बदलने वाले चीजों मे यहीं दोष होता हैं। वह कुछ ज्यादा ही दोषी मानते हैं उन्हें जिसे समाज मे ताक़त मिलती हैं।
हमे याद रखना चाहिऐ की कई यह लोग भी अच्छे हैं और मदद करना चाहते हैं बस उनको पता नहीं कैसे। उनके गुणों के लिए सज़ा दो, उन गुणों के लिए नहीं जो उन्होने नहीं किया । उनको साथी और मित्र बना लो दुश्मन नहीं यह दिखा कर की वह क्या कर सकते हैं।

Thursday, October 11, 2007

जोधा-अख़बार

आज जोधा-अख़बार के बारे मे नया संदेश दर्ज हुआ हैं। मुझे बहुत ख़ुशी हुई हैं। आशुतोष गाव्रीकर इस फिल्म का निर्देशक हैं। आशुतोष ने बोला हुआ हैं कि वह एक गाँधी-भक्त हैं। इस लिए मेरी उम्मीद हैं की वह इस प्रेम-कथा कि असली माय्ना निकाल सके। दिखा सके की मुग़लों वह बुरे लोग नहीं थे जो हिंदु-स्वाधीनता का पक्षपातीyon कहते हैं। उनका मान ना हैं की मुग़लों ने हिंदु धर्म का सरवनाश करने की कोशिश की। लेकिन इस कहानी मे दिखाते हैं कि अख़बार ने तो एक हिंदु से प्यार किया। उस ने एक नया धर्म का निर्माण किया था जो ना तो हिंदु था ना इस्लाम। वह चाहता था कि सब शांतिपूर्वक उसके राज मे जीं सकें। और वह राजनीति और शक्ति के बारे मे सोच रहा था। वह इस्लाम यह धर्म के बारे मे नहीं सोच रहा था।
ऐसे ही एक फिल्म हैं - सेव थी लास्ट डांस। इस फिल्म मे एक अफ्रीकी-अमरीकी लड़का और अमरीकी लड़की एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। और बहुत सी बाधाएं उनके रास्ते मे उठी। उनको सोचना पड़ा की वह कहाँ के होना चाहते हैं। लड़का के पुराने दोस्तों उसको अपराधों की ज़िंदगी मे धकेलने लगे। लकड़ी के पिता ने उसको एक नए जगह मे पालना चाहा। लेकिन फिर उन्होने सोचा की प्यार सब से अहम चीज़ हैं। लेकिन प्यार के साथ साथ वह दोनो अपने सपनों को पूरा करने लग गए।

Wednesday, October 10, 2007

देश-प्रेम

कल मुझे एक और बार अहसास हुआ की देश प्रेम का सच्चा मतलब क्या होता हैं। मैं काम्पुस पर खड़ी थी और पीछे झंडा लहराता हुआ दिखा। उस झंडे के पीछे काला आसमान था और इतना खूबसूरत लग रहा था झंडा। हम राष्ट्र गीत गा रहे थे, और मैं सोचने लगी, इस झंडे के लिए कितनों ने क्या क्या कुर्बानी दीं हैं, और दे रहें हैं। मैं इतनी आसानी से क्या क्या बक सकती हूँ, लेकिन सरहद पर, और अन्य जगाओं पर जवानों हमारा किया भुगत रहें हैं।
मैं उनको सलामी देती हूँ और कहती हूँ कि जब भे मैं कोइ विरोध प्रदर्शन के बारे मे सोचुन्गी भी तो आप लोगों के बारे मे भी सोचुन्गी। मे ध्यान मे रखूंगी की हमारा किया आप के लिए कितना हानीकारिक हो सकता हैं। अगर हम ने बहुत सोच समझ के चुनाव मे वोट नहीं डाला तो क्या क्या भुगतना पडेगा। अगर हमने अपने राश्त्रपतीयों और संसद के लोगो सो प्रशन नहीं करा तो आप का क्या होगा। आप जो हमारे लिए लड़ रहें हैं।
यह सब सोचते सोचते मुझे खयाल आता हैं कि शायद ड्राफ्ट होना ही चाहिऐ तो हम सब भुगतें क्योंकि अभी ज्यादातर गरीबों और उनके परीवार वालें भुगत रहें हे। जो लोग युद्ध का एलान करते हैं, उनके कम बच्चे लड़ रहें हैं। यह हमेशा नहीं होता था। संसदी केनेडी का बीटा, जो जाकर राष्ट्रपती बना वह दुसरा महायुद्ध मे लड़ा। और संसदी केनेडी युद्ध की नीती मे भाग ले रहा था। वाह। तो वह कुर्बानी सिर्फ दूसरो से नहीं मांग रहा था।

Sunday, October 7, 2007

जहाँ तक मैंने देखा हैं, वहाँ तक महिलाओं को ठीक प्रस्तुत किया हैं। कीं सीरियल, जैसे एलीयास, एक ए। बी। सी का सीरियल हैं। उस मे जो हीरोईन हैं, सिडनी, वह एक मोडेर्ण लड़की हैं। वह अपनेलीये सोचती हैं, कभी कभी गलत फैसला लेती हैं लेकिन देखना चहीये की निर्देशक ने उसके फैसले को कैसे दिखाया हैं। उसने सिडनी को इन्सान के रुप मे दिखाया हैं, वह कभी कभी गलत फैसले लेती हैं, लेकिन समझ सकते हो क्यूँ । यह इस लिए जान ना ज़रूरी हैं क्योंकि अगर वह कोई दूसरी तारा उस को पेश करते, तो देखना पड़ता कि क्या उससे इस लिए दिखा रहें क्योंकि वह महिला हैं। जैसे, सिडनी के पापा, जैक, हमेशा सिडनी के भलाई पर ध्यान रखते हैं, और उसके हित के लिए कदम उठाते हैं। लेकिन सिडनी अक्सर उन पे और उनके इरादों पे शक करती हैं। उस के पद मे रुकावट डालती हैं। यह आदरणीय भारतीय महिलएं कभी नहीं करती। जिस तारा हम अपने औरतों को दिखाते हैं, जिस पगड़ी पे हम उनको रखते हैं, वह सिडनी जैसे औरतों को वैश्यअ के रुप मे देखेंगे।

लेकीण, अमरीकी फ़िल्मों को अल्प-संखयक लोगो को कैसे दिखाते हैं, इस पे ध्यान रखना चाहिऐ। एक अफ्रीकी-अमरीकी एक्टर ने कहा, "मेरे रंग के कारण मुझे यह तो मारा-मारी के रोल मिलते हैं, यह वो लड़का जो समाज को छोर कर अपने को कुछ बनाता हैं।" हिंदुस्तानियों को ज्यादातर वह दिमाकी, यह आतंकवादी के रुप मे दिखाते हैं। वह यह ज़िक्र करते हैं कि एक दो अल्प-संख्या रखने से वह महान बने। लेकिन नहीं, हिंदी फ़िल्मों भी यह गल्ती करते हैं। हमे देखना और सोचना चाहिऐ की हम उनको कैसे दिखाते हैं। यह ज़्यादा ज़रूरी हैं। अगर आम बच्चा यह बड़ा कम अल्प-संख्या लोगों को देखे, और वह भी एक ही रुप मे तो वह सोचने लगेगा की अल्प-संख्या ऐसे ही हैं।

तो आज अमरीकी निर्देशक ठीक से महिलाओं को दिखा रहें हैं, कई नौकरी कर रहें हैं, कई घर संभाल रहें हैं। एक ऐसी फिल्म हैं स्तेप्मोम, उस मे जूलिया रॉबर्ट्स नौकरी करती हैं, और सुसन सरेनिदों घर पे बच्चे सँभालने का काम करती हैं , दोनो को अच्छे रुप मे दिखाया हैं। यहाँ तक फिल्म का एक मकसद हैं दिखाने के लिए के दोनो औरतों ठीक हैं। जूलिया को सीख ना पड़ता हैं कि बच्चे को आगे रखना चाहिऐ लेकिन यह कह कर निर्देशक कोलंबस यह दिखाना चाहता हैं की दोनो को जानना पड़ता हैं की दोनो तरीके ठीक हैं।

Friday, October 5, 2007

आज के समाज मे शादी

"आज रिश्तों कि एम्यत न जाने कहाँ खो गया"-- दादी, हम साथ साथ हैं मैं। सही बात। आधुनिक समाज मे यहीं सब से बुरी बात हैं। हम रिश्तों के साथ आते हुए कर्तव्यों को भरी बोज समझते हैं। लड़की लड़के, चचेरे भाईयों और बहनों से मिलने जान बुरा लगता हैं। वह हज़ार बहाने बनातें हैं। क्लास मे आके गर्व से बताते हैं कि वह कमरे मे कैसे छिपे रहे। यह ठीक बात नहें। सब से अव्सोस की बात तो यह हैं की इसकी भूमिका एक चीज़ हे जो खोनी हे नहीं चाहिऐ-- महीलों की आज़ादी। अगर दोनो लोगों काम करें तो दोनो थके घर आते हैं फिर परिवार को कौन जोडे रखें? अव्सोस की बात तो यह हैं की अभी भी ज़िमिदारी औरतों पर पड़ता हैं। एक मेरी अध्यापिका ने कहाँ, अरे, मैं कल वापस आऊंगी मुझे पत्ती के लिए खाना बनाना हैं।" उसे काम क्यों छोड़ना पड़ा? अगर यहीं प्रतिबंद हैं की औरत काम भी करे, और घर भी अकेले संभालना हैं, और काम भी, यह कैसा इंसाफ़ हैं?
गृहस्ती ठीक से तभी चलेगी जब दोनो यह तो एक काम करें, यह दोनो दोनो कामों करें। लेकिन इस बात कर ध्यान रखना ज़रूरी हैं कि कोई परिवार मे एकता बनाने पर भी ध्यान रखें।

Thursday, October 4, 2007

इस पोस्ट को कुछ नहीं जोड़ता

आज मुझे ख़ुशी हुई के मेरे पास के सिनेमा ने एलान किया कि १२ अक्तूबर से वह लागा चुनरी में दाग दिखने वाले हैं। मुझे इस फिल्म से बहुत उमीदों हैं। मेरी ख्वाईश हैं की इस फिल्म वेश्यों की मजबूरी को दिखाएगीदिखाएगी कि कैसे इस लड़की के पास और कोई चारा नहीं था। दिखाएगी कि कड़वाहट कितनी बुरी चीज़ होती हैं।
इस हफ्ते काम कुछ ज्यादा बड़ा हैं। इस लिए मेरे पोस्टें मे ज्यादा अंतर रहा हैं। मे रोज़ पोस्ट नहीं कर पा रहीलेकिन फिर से कोशिश करूंगी, क्योंकि भाषा मे सुधार बाकी हैं, जो सिर्फ अभ्यास से हो सकता हैं। मे यह भी कहूँगी की आप लोगों का संयोग मेरे लिए बहुत कीमती रहा हैं।
पाठशाला मे पढते पढते मैंने बहुत जरूरतों पूरी करने के लिए पढा हैं, लेकिन हिंदी मैं अपने लिए ले रहीं हूँ। में गर्व से और सचाई के साथ कहना चाहती हूँ की मैं हिंदी जानती हूँ। आप मे से किसी ने टिप्पणी मे लिखा था कि मैं सुधर लाने के लिए हिंदी मे पढूं भी ताकी मुझे शब्दों का ठीक प्रयोग भी मालूम पड़े। काश यह ज्यादा करने का वक्त होता! मैंने छुट्टी मे ऐसा किया था, और अभी भी जैसे फुर्सत मिलती हैं करती हूँ। लेकिन, इस सलाह के लिए धन्यवाद

Tuesday, October 2, 2007

गांधी जयंती के मौक़े पे कुछ विचार

आज अक्तूबर २, गांधी जयंती हैं। गांधीजी ने हमारे देश को अंग्रेजों से आज़ाद करवाया। लेकिन उन्होने सिर्फ हमारे तन और राष्ट्रीय-मंडल को आज़ादी नहीं दीं। उन्होने हमारे दिल और दिमाग को भी आज़ादी दी। अंग्रेजों ने हम हिंदुस्तानियों को अलग कर दिया। मैं बिल्कुल नहीं कह रहीं की अँग्रेज़ ने हमे तोड़ा, हम कभी एक थे ही नहीं, लेकिन उन्होने हमारे असमता का फायदा उठाया और उसको बड़ा किया। उन्होने सोचा की अगर वह हिंदुओं और मुसलमानों के भीतर मतभेद पैदा करें तो उनका राज आसान हो जाएगा। सिर्फ थोड़ी देर पहले कई लोग अपने को हिंदु-मुस्लिम बताते थे। लेकिन सरकार ने उनको ऐसे रहने नहीं दिया। उन्होने एलन किया की सब को निर्णय लेना होगा की वह हिंदु हैं ईसाई, यह मुसलमान। अंग्रेजों ने जताया कि हिंदुस्तानियों बुरे थे। उनको कुछ नहीं मालूम। हम असभ्य हैं, और सभ्य बनने के लिए हिंदुस्तानियों को अंग्रेजों के साथ सम्मिलित होना होगा। और हम मानते गए. हमने अपने पे और खासकर एक दूसरे पे भरोसा नहीं किया।
दुःख की बात तो यह हैं कि उनका यह कार्य नीति सफ़ल हुआ। हम अंग्रेजों के बजाय एक दूसरे से लड़
उठे। और मैं कभी नहीं कहूं गी कि मुसलमानों के शिकायतों सही नहीं थे। उनके डर के पीछे असलियत छिपा थी। लेकिन यह भी सच हैं कि अंग्रेजों के नीती का भी हाथ था। आज भी हम एक दूसरे से लड़ रहें हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई मे सेंकाड़ो लोग मारे गए और दोनो देशों के प्रगति पे रूकावट डाले रखी हैं।
गांधीजी ने प्रयतन किया की वह हमे सिखाएं की हम मे खासीयत हैं। उन्होने एक नई फल्सफाई का निर्माण किया। सुच मे उनके "सत्याग्राहा" मे अन्ग्रीज़ी और इस्लामी ख्यालों थे, लेकिन उन्होने इस को और अहिंसा को देशी बतलाया। अपने अंतरात्मा को जगाया। उन्होने एकता पाना चाहा। लेकिन, काश। आज तक हमने वह नहीं पाय। उनको किसी विदेशी ने नहीं मारा, बल्की एक हिंदुस्तानी ने मारा। एक हिंदुस्तानी जो एकता नहीं चाहता था। गोडसे के पास अपने विचार थे, लेकिन उसके पीची जो हाथ था वह था सावार्कार का। और अगर उस के, यह उसके भयानक सोच पे बारे मे जानना चाहते हो तो आप उसका लिखा हुआ हिंदुत्व पढ़ें।