Friday, November 30, 2007

होटल मे खाना

पहले, जो अमरीकी लोग मेरे ब्लोग पड़ते है-- आज और कल बहुत बरफ पड़ने वाली है। कई समाचारपत्रों मे लिखा था कि बिजली भी जा सकती है। जिनको नहीं पता वह शायद हस रहे होंगे। दुनिए के कई जगाओं मे बिजली अक्सर जाती रहती है। लेकिन अमरीका मे बहुत सर्दी हो रही है और हीटर और पानी भी बिजली के ना होने से ही चलते हैं। तो सब को तय्यारी करने चाहिए। मैं अपनी मोबायल को तय्यार रखूंगी।
मैं आज होटल मे खाना खाने के अनुभव के बारे मे बात करूंगी। एक जगह जो मुझे सब से अच्छा लगता है, मैं पहले अपने माता-पिता के साथ ही गयी हूँ। और जब गयी हूँ हमेशा जल्द खाना लाते हैं। लेकिन आज उनको तकरीबन घंटा लग गया। उस ने बहुत माफी मांगी लेकिन मुझे बुरा लगा मैं अपने माता-पिता के दोस्त के बेटी, जो अभी मेरे घर पर ठहरी हुई है, उसे वहाँ ले गयी थी। मैंने बहुत गर्व से कहा था कि यह जगह खास है। दाम कम हैं, खाना अच्छा है, और सर्विस बहुत अच्छी है। और आज ही यह हुआ। मैंने कुछ इस के बारे मे बात किया। उसने कहा अक्सर यह छोटों के साथ होता है। तुम पहले अपने माँ-बाप के साथ आए होगे। अगर ऐसे वक़्त लगा और माँ-बाप होता वह बहुत उतेजित होते। हमे थोडा बुरा लगा लेकिन हम बात करके समय बिता रहे थे। तो उन्होने सोचा होगा शुक्रवार है, बहुत लोग हैं, बडे दंतेंगे, यह लड़किया जाने देंगी। कईं लोगों यह भी मानते हैं कि बच्चे उधार कम देतें हैं। लेकिन मैं हमेशा १२ और पंद्रह प्रतीषद के बीच मे देती हूँ, और दीदी ने तकरीबन बीस प्रतीषद दीए। तो उनका यह मानना गलत है कि बच्चे हमेशा कम उधार देंगे यह मस्ती करेंगे।

Tuesday, November 27, 2007

ठंडक

मैंने सोचा कि आज सुबह मैं ठंड, इसके अनुभव, और ऐसे चीजों पर लिखूं क्योंकि यहाँ पर बहुत ठंड हो रही है। तो, मैं यहाँ बैठ कर ब्लोग लिख रहीं हूँ और महाभारत को राजश्री.कॉम से सुन रहीं हूँ। इस वक्त मैंने इस पर लिखने का निर्णय ले लिया।
ठंड बहुत कम लोग से बर्दाश्त होता है। खासकर जब बर्फ सड़क पर आधी पिघली हुई और आधी जमी हुई है। इससे चलने मे बहुत कठिनाए होती हैं। कल मेरे पैन्ट पूरी तरा भीग गया था। जुराब सुबह ही भीग गए थे और रात को इस के कारण बहुत तड़प हो रही थी। दिन मे एक दो बार मुझे लगा कि मैं वापस कमरे मे चली जाऊं। एक बार तो क्लास बंक करने मे तो कोई बुराई न है न? लेकिन मैंने साहस बडाकर क्लास मे कदम रखा। आज कल से भी ज़्यादा ठंडा होगा और आज बंक करना आसान होगा। एक ही क्लास है और वह मेरे लिए आसान है. लेकिन मैं नहीं करूंगी। क्यों? पहले- तीन महीनों के लिए ठंड होगी और तीन महीनों के लिए तो मैं क्लास नहीं बंक कर सकती। लेकिन सब से बड़ा कारण, मुझे लगता है कि ठंड हमारी परीक्षा है। इस से भगवान देख त है कि हमारा निश्चय कितना अटल हैं। हम क्या क्या पार करके दुनिया मे कुछ कमाएँ। हम इस दुनिया मे सिर्फ नाचने नहीं आए। हमे कुछ कमाना है कुछ कर दिखाना है।
ठंड हमे यह मौका देता है, दिखलाने के लिए कि हमारा निश्चय कितना द्रिड है।

Saturday, November 24, 2007

कृतज्ञता और inchanted

मेरे पास एक अच्छा परिवार है। इस से मेरे पास एक अच्छा 'सुप्पोर्ट सिस्टम' है। मुझे मिशिगन जैसे विश्वविध्याले पर पढ़ने का अवसर मिला है। मुझे लगता है कि इन चीजों के बारे मे सोचना बड़ा अवशक है।

दूसरे विषय- मैं अपने भाई के बेटी के साथ इन्चान्टेड देखा। मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आया। एक कारण था कि यह एक नई किसम की परी कथा है। और वह भी डिज्नी से। जिनको नहीं पता, डिज्नी एक कम्पनी है जिसने सारे मशहूर परी कथा को सेलुलोईद पर डाला है। तो डिज्नी से एक ऐसी फिल्म जिसमे राजकुमारी लड़के को बचाती है। जो सब को संभालती है। यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इससे तमाम लड़का लड़कियों को पता चलेगा कि लड़कियाँ भी लड़ सकती है। सिर्फ दिमाक से ही नहीं बल्की बल के साथ भी।
यह एक अपवाद नहीं है। थोडे साल पहले एक और ऐसे ही परी कथा बनी थी- प्रिंस एंड मी। उस मे राजकुमार थोडा दुर्बल था। वह अंग्रेज़ी और भाषाओं के जानकारी रखता था और लडकी चिकित्सक बनना चाहती थी। यह 'उल्टा' है।
इससे अच्छा असर पड़ता है- लोगों को पता चलता है कि लडकी सिर्फ एक नहीं अनेक काम कर पाती हैं। काश आज के बोलीवुड मे भी कोइ ऐसी फिल्म कामियाब हो पाती--जब मैं यह फिल्म देखने गयी एक चोटी सिनेमा मे बहुत बड़ी क्यू थी। पहली शोविंग मे जा ही नहीं पाए। और मेरी बाबू को यह फिल्म अच्छी भी लगी। दो तीन मोड़ पर उसने मेरा हाथ जोर से पकडा हुआ था और वह बादमे बोली- कितनी अच्छी फिल्म थी! उसको नारीवाद के बारे मे कम पता है तो जब मैंने बड़ी ख़ुशी से कहा- "वह कितनी प्रगतिशील फिल्म है" उसने बोला क्यों?
जब मे किसी और से वाद-विवाद कर रही थी इस के ऊपर वह बोलली "आई डोंट गेट इट" मैंने उसके प्यार से कहा "कुछ नहीं, बेटा"
लेकिन उसके मन मे यह कहानी का अच्छा असर होगा। एक बार मेरी एक अध्यापिका ने बोला-लोग पूछते हैं कि बच्चे तो गीता का समकार्थ नहीं समझते तो क्यों उन्हें श्लोक सिखाएं? मेरा जवाब है कि अभी वह अर्थ नहीं समझते लेकिन श्लोक तो मन मे बसते है। और बडे होकर वह अर्थ समझ जाएँगे और श्लोक को जानकार उनको आसानी होगी" वैसे ही यह कहानियाँ हैं। यह हमे याद रहते हैं और बडे होकर जब हम निर्णय ले रहे होते हैं हमे कहानियाँ याद आतें है। चाहे वह दादी के बताए हुए कहानी यह गाए हुए लोरी हों यह परी कथा। तो, जैसे आप मेरे से सुनते सुनते थक गए हो, इस लिए यह सोचना कि फिल्मों और कहानियों मे क्या पेश किया जा रहा है यह अहम है।
एक और बात- यह समाज के बदलाव का एक संकेत है क्योंकि डिज्नी एक ऐसी कम्पनी है जो यह ध्यान मे रख कर चलती है। पहले जब अमरीकी मे रेसिस्म दिखा सकते थे तब उन्होने एक रेसिस्ट फिल्म बनाई थी। लेकिन अब उन्होने एलान किया है कि वह एक ऐसी परी कथा बनाएंगे जिसमे अलाप-संख्यक लोग कुमार और कुमारी का रुप धारण करेंगे।

Wednesday, November 21, 2007

कल मैं अपने बुआ के यहाँ आई हुई हूँ। मैंने सोचा कि थान्क्स्गीविंग के मौक़े पर मैंने सोचा कि मैं कृतज्ञता के बारे मे बात करूं। कभी कभी हम ज़्यादा उलाहना देतें हैं यह शिक़ायत करतें हैं। लेकिन मैं बड़ी भाग्यशाली हूँ । मेरे पास एक अच्छा परिवार h

Sunday, November 18, 2007

शूताऊt अट लोखंडवाला

कल का थकान और आज अच्छी तरा से काम हुआ! बहुत अछा लगा। आज मैंने शूटाउट ऐट लोखंडवाला
देखा का एक क्लिप देखा। वह अंत का क्लिप था और उसमे पूछा गया कि आप क्या चाहते हैं? बाहर ए.टी.एस हो यह मोब। इस का जवाब देना मुश्किल है। इस फिल्म मे बहुत कोशिश कि गयी के दोनो तरफ के लोगों का जो तर्क था, जीवन था, वह दिखाया जाए।
मोब के लड़कों के भी परिवार वालों, उनके भी दुःख को दिखाया और पोलिस वालों के कुर्बानियां। और अंत मे बताते हैं कि ए.टी.एस ने क्या कर दिखाया और उसके बंद करे जाने के बाद ही मुम्बई बम ब्लास्ट हुए। कारणकार्य-सम्बन्ध लगाना मुस्खिल है-ए.टी.एस। रोक पाती यह नहीं? लेकिन यह सब फिजूल की बातें हैं। सच बात है कि किसी कारन भारतीय सरकार ने इसे रोक दिया था। क्यों? यह वो ही जाने।
लेकिन जब मैंने फिल्म पहली बार जब मैंने फिल्म देखी तो मेरे अंदर बहुत घबराहट उमड़ी थी। ऐसे सरकारी फैसले से मुझे हमेशा डर लगा है क्योंकि मुझे लगता है के ऐसे शक्ति का इस्थिमाल ज़्यादातर गलत ही होता है। लेकिन फिर उन लोगों का क्या जो मारे जाते। जो तड़प तड़प के जीते। इस सवाल का मेरे पास जवाब नहीं। आप लोग ही मुझे बताएं।

Saturday, November 17, 2007

मेरी थकान

कई बार ऐसे क्यों होता है कि हमारा जी पढाई मे बिल्कुल नही लगता? ऐसे क्यों होता है। मुझे यह बहुत कम होता है लेकिन पिछले हफ्ते से मेरा मन बिल्कुल पढाई मे नही लग रहा। यह करने के लिए भी मैंने बैंड इट लाइक बेखम लगाया हुआ है और हर दो सेकंड मे कुछ और करने लग जाती हूँ। मुझे ३९१ के लिए प्रोब्लेम्ज़ करने चाहिए। लेकिन मैं ब्लोग लिख रहीं हूँ और बेंड इट को सुन रहीं हूँ। और अभी मुझे नींद आ जाएगी। देख लेना। आज भी कम काम होगा।
और कल मुझे एक जगह जाना ही जान है। लेकिन वह २ घंटे के लिए। लेकिन तैयार होने मे भी एक घंटा लग जाएगा। यही है मेरी दुविधा। देखा अब से ही मुझे जम्हाई आ रही हैं। इस हालत मे मैं ३९१ के लिए काम कैसे करूंगी? करना ही पडेगा। क्योंकि अगर यह प्रोब्लेम्ज़ नहीं कर पाए तो मुझे सोमवार को मदद लेने जाना चाहिए। क्योंकि फिर परीक्षा के मार्क्स देने वालें है वह तो फिर बहुत लोग उसके बारे मे उनसे बात करने जाएँगे तो फिर उनके पास हमसे बात करने के लिए कम वक्त होगा।

Friday, November 16, 2007

पहले: मिशिगन डेली मे मेरी तस्वीर थी। मेरा चहरा नही दिख रहा था लेकीन मेरी जाकट और पैंट दिख रही थी- मैं जीना-६ राल्ली मे शामिल थी। आप मुझे हर वक्त ज़्यादातर डाईयाग पर पा सकते हैं।

आज के मौसम मे बहुत लोगों दूसरे पर ध्यान दे रहे हैं। यह गलत है। हमे अपने पर और अपने कार्यों के बारे मे सोचना चाहिए। आप ने उस औरत से ठीक से बात कि। आपने उसे बुरी नज़रों सो क्यों देखा? ऐसे चीजों पर विचार करना उचित है।
आज फिरसे सुनने मे आया था कि आल शार्पटन ने राज्धाने मे राली लगाई कि सरकार और क्यों नहीं कर रहीं है लोगो को बचाने के लिए। लेकिन ऐसे नेताओं पूरे देश के बारे मे क्यों नहीं सोचते? कल दबाते मे किसी ने सही पूछा रेशल प्रोफयालिंग क्यों नहीं रोकते। जब आतंकवादी हमले हुए ही थे मेरे पापा और बहुत से लोगों ने कहा था कि हमे रेशल प्रोफयालिंग के साथ थोडी देर जीना होगा क्योंकि समझ सकते हैं कि क्यों। लेकिन अब बहुत ज़्यादा ही वक्त हो गया है। रेशल प्रोफयालिंग से कुछ नहीं होता। बहुत कम लोगों को सिर्फ रेशल प्रोफय्लिंग से पकडा जा सकता है। हाँ, अगर रेशल प्रोफयालिंग को बहुत से चीजों मे से एक्स इस्थिमाल किया जाए वह ठीक है। फिर उसका इस्थिमाल ठीक है. उचित है।

Wednesday, November 14, 2007

हमरे अंदर खोट

"तीजा तेरा रंग था मे तो" - यह चक दे का एक लाइन मेरे दिल मे गढ़ कर गया। सच बात है कि हर देश मे अन्य देश भक्तों को देश से बाहर माना जाता है- उनका कसूर- गलत जाती मे जनम।
रंग दे बसन्ती मे दिखातें है कि आज़ादी के लिए जान नौचावर करने वाले अश्फक़ल्लाह खान को रामप्रसाद बिस्मिल, एक और आज़ादी का सिपाही ने कहा "तुम अफ्घनिस्तान चले जाऊं। वह लोग तुम्हारे अपने है"
"तुम्हारे अपने? क्या मैं तेरा अपना नहीं?"
दो आज़ादी के सिपाही मे भी यह अंतर आ गया था। देश मे बहुत लोगों मे भी यह फरक आ जाता है-- मैं भारातीय हूँ, मेरा रंग ज़्यादा काला है इस लिए मैं औत्सोर्सिंग से परसन होंगी। नहीं मैं जानती हूँ कि इससे अमरीका को कितना और कैसे नुकसान पहुंच रहा है। बराक ओबामा काला है और उसका मध्य नाम हुसेन है तो वह भी कैसे सचा देश भक्त हो सकता है। गलत।
लेकीन इस क बारे मे बात करना आसान है। हम क्या करेंगे? मैंने भी यह भूल किया है कि मैं किसी के रंग यह पोशाक के कारण समझती हूँ कि वह भी एक तारा सोचता होगा। तो सुझाव हम से शुरू होता है। और मैं जानती हूँ कि मैं इस मे अकेली नहीं हूँ।

Tuesday, November 13, 2007

फ़ाइनल class

बोल्लीवुद दुनिया का सबसा बड़ा फिल्म इन्ड्स्त्री है। और इसमे बहुत गुण हैं। लेकिन एक मेरी उससे बहुत बड़ी शिक़ायत हैं। वह महिलाओं को केसे पेश करने लगा है। १९९४ के बाद औरतों को वह बहुत असहाए और दुर्बल दिखाते है। आश्चर्य की बात तो यह हैं कि पहले ऐसा कम होता था। १९७०ज़् और १९८०ज़् के हिट फिल्मों मे बहुत औरतों मजबूत हैं और खुद फैसले लेती हैं। अल्प-संखयक लोगों, जैसे मुसलमानों को जिस तरा पेश किया गया है, उसमे मुझे ज्यादा फरक नज़र नहीं आया सिवाए कि अभ कई फिल्मों मे उनपे हुए ज़ुल्म का ज्यादा ज़िक्र होता है और वह ज्यादा फिल्मों मे उनका रोल है । बस एक भिनता है जो दोनो औरतों और मुसलमानों के चित्रण मे दिखता हैं। आज के कई निर्देशक सफल फिल्म बनाते हैं लोगों को सिखाने के लिए। इस पेपर मे मैं एक यह दो ऐसे फिल्मों का भी ज़िक्र करूंगी। लेकिन, ज़्यादातर फिल्म के विश्लेषण से दिखाउंगी कि आज के सिनेमा मे औरतों को दुर्बल दिखाते हैं और यह बुरा क्यों हैं।
१९९४ मे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन कि सफलता ने इन्ड्स्त्री का हुलिया ही बदल दिया था। दोनो फिल्म ने रेकॉर्ड्स तोड़ दिए थे। और उनकी खास बात? जहाँ और निर्देशकों खून-खराबा, कम कपडे और रंगीली फिल्म बना रहे थे यह दोनो फिल्म परिवार के साथ देखने योग्य थे और हैं। दिलवाले मे एक खून-खराबा का सीन भी है लेकीन छोटा है। और इस के इलावा दोनो फिल्मो का असर ख़ुशी, संस्कृति और संस्कारों पर है। फिल्म मे लड़कियाँ हमेशा पूरे कपड़े पहनती हैं। एक और भिन्ता। दोनो लड़कियाँ दुर्बल हैं। सिमरन पापा के आज्ञा के खिलाफ नहीं जाती। जब पापा घोषित करते हैं कि वह उनके साथ पंजाब जाकर कुलजीत से शादी करेगी, वह भाग के राज के पास नही जाती। बल्की सिर्फ रोती है। राज का इंतिज़ार करती है कि सिर्फ वह मुझे इस शादी से बचा सकता है। हम आपके हैं कौन मे निशा कुछ नही कहती जब उसको पता चलता है कि उसके माता-पिता ने समझा कि वह राजेश से शादी के लिए राजी हो गयी है। उसने नहीं कहा कि गलती से मैंने हाँ कह दी, मे प्रेम से प्यार करती हूँ। और पे और इस फिल्म मे जो औरत मन की बात बोलती है, वह है मामी और वह खलनायक के रुप मे आती है। पूजा बौजी एक और आदरणीय औरत हैं और वह अपना त्याग करतीं है। तो यह दोनो फिल्मों मे एक समानता है जिसने आगे जाने पर फिल्मो पर बहुत असर डाला था। और मेरा मानना है कि इस लिए १९९४ के पहले और बाद फिल्मो मे इतनी असामनता है
१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत दुर्बल हैं और मर्द का इनित्ज़ार करती है। कल हो ना हो मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना कि माँ, सहस क्यों का पर पाए? अमन ने क्या किया, हिमत करके दादी को जेनी का सच बताया। उसने दिमाक लगा कर व्योपार का कुछ उपाए सोचा। राजा हिन्दुस्तानी, जो १९९८ की हिट पिक्चर है, उसमे राजा बचा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती हैं- कुछ नहीं, वह रोती है और उससे बिनती करती है और पापा कि सहित मांगती है। एक रिश्ते मे भी लड़कियाँ लड़कों का इंतिज़ार करती हैं भाई जब आता है फिर वह कुछ करती हैं। कभी ख़ुशी कभी घाम मे पूजा रोहन कि मदद करती है लेकिन, उसने जीजाजी के लिए रोहन को क्यों नहीं खोजा? जया बादमे पती को ठुकराती है लेकिन पहले वह जानती है कि बेटा अंजली से प्यार करता है पर वह नैना से सगाई के रस्मों को आगे बढ़ने देती है। यह सिर्फ मैं नहीं कह रही, रीडिफ़।कॉम ने कुछ दिन पहले लिखा था कि हीरोइन कितनी दुर्बल हो गईं हैं।
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ रहे होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णय लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पड़ी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म के बारे मे सोचना उचित है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस ही ने कभी कभी बनाया। और इस फिल्म मे अमिताभ खलनायक है, वह अथीथ को नहीं छोड़ सकता और राखी छोड़ देती है और सफल बंटी हैं । और उसको, अमिताभ, को औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है gham करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।
यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि फिल्म लोगों पर बहुत अससर करते हैं। एक वजह है भारत कि अनपढ़ कि संख्या ज़्यादा है। रामानंद सागर के रामायण मे अरुण गोविल ने रामचंद्र को पेश किया। उन्होने कहा कि इस के बाद कई लोग, खासकर गाव मे उनको सच मे भगवान मानने लगे। गोविल भगवान नहीं। लेकिन कई लोग जो ज्यादा जानते नहीं थे उनको फरक पता नहीं चला कि असली क्या है और नकली क्या । मैं यह कहानी इस लिए दोहरा रहीं हूँ ताके आप को पता चले कि फिल्मों का क्या असर होता हैं। इस असर के कारण ही यह प्रोजेक्ट का कुछ माईना है। और असार कि वजह से हम आर्ट फिल्म, जो लोग बनाते हैं लेकीन ज़्यादा कमाती नहीं है, के बारे मे नहीं बात कर रहें। उन फिल्मो मे बहुत ऐसी बातों पर विचार होता है लेकीन यह लोगों तक नहीं पौंच ती। इस लिए इन का असर कम होता है। हिन्दुस्तान मे बहुत लोग बोल्लीवुद, जो मेनस्ट्रीम सिनेमा है, वह देखते हैं।
प्रोजेक्ट मे दिखाया गया है कि निर्देशक को सोचना चाहिए कि वह क्या कह रहें हैं फिल्म मे। अभी हिन्दुस्तान मे बड़ी केस हुई थी, क्योंकि रेडिफ के मुताबिक धूम, यश राज की हिट फिल्म, के बाद चोरियाँ बड़ गयी और चोरों ने जॉन एब्राहम, जो फिल्म का एक हीरो है, उसके बालों कि नक़ल की। कई लोगों ने इस के लिए यश छोपड़ा को उत्तरदायी ठराया। उसने कहा कि मैंने सिर्फ फिल्म बनाई। इस तर्क मैं भी बुनियात है, लेकिन यह पूरा सफाई नहीं हो सकता। निर्देशक को सोचnaa चाहिए। और इस लिए मै समस्या बताने मे इतना वक्त बिता रहीं हूँ।
यह पेपर बताता नहीं है कि महिलाओं को बुरी तरा पेश क्यों किया जा रहा है। आश्चर्य कि बात तो यह है कि औरतों को दुर्बल, रोता हुआ', और मर्दों पर निर्भर १९९४ हे काड ही पेश किया जा रहा है। एक बदलाव का कारण है दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन। यह दोनो पिक्चरों ने रेकॉर्ड तोडके कमाया। तो शायद इसके बाद निर्देशकों ने सोचा कि darshakon यही चाहते है। लेकिन उनका भी कओई ज़िमिदारी है। उनके पता होना चाहिए कि auraton को ऐसे पेश करने से लोगों सोचने लगेंगे कि औरतों इसी के काबिल है। वह यह नहीं जान पाएँगे, कि जैसे अमर अख़बार एन्थोनी मे नीतू के बहुत रंग थे, वैसे बहुत औरतों के हैं। वह घर भी चला सकती हैं, काम भी कर सकती हैं और लड़ भी सकती हैं।

क्लास- २

अलप-संखयक लोगों को भी ठीक पेश किया जाता था। लेकिन एक चीज़ है- उन्हें कम दिखाया जाता था। यह ठीक है और बुरा भी। ठीक है क्योंकि इस का मतलब है बुरe रुप मे तो नहीं दिखा रहे। और बुरा क्योंकि वह भी हिंदुस्तान का हिससा हैं। अगर हम कह सकते हैं की इस के वजह है कि लोग धर्म के बारे मे सोचते ही नहीं थे इस लिए उन्हें दिखाया नहीं जाता। यह अच्छा है।लेकीन क्या यह सच है? इस वाद-विवाद मे मैं कुछ नहीं कह सकती। लेकिन जो बाकी हिंदुस्तान मे हो रहा था, धर्म के नाम पर खून-खराबा, बोलीवुड उससे बेखबर नही था, इस से लगता है कि कोई और ही कारण था। लेकिन जिन फिल्मो मे दिखाया है ठीक दिखाया है। अमर- अक्भar enthonee मे तीन बडे मज़हब, इसाई, मुसलमानों और हिन्दुओं को दिखाया था। तीनों अछे थे। और तीनो के धर्म को छुपाया नहीं गया। एन्थोनी ईसाई धर्म का चिह्न लगाता है। और एक गाना मे तीनों अपने धर्म का एलान करते हैं। मुझे यह अच्छा लगा।एक बात है जिससे लगता है कि अभी चीजे पूरी तरा बिगडी नहीं हुई। आज कल बहुत लोग कर्मण्यतावादी फिल्म बना रहें हैं जिसका मकसद है दिखाना कि क्या हिंदुस्तान मे बुराएया है जो सुलझाने चाहिए। और मे सिर्फ सफल निर्देशकों के फिल्मो के बारे मे बात करूंगी कारण बाद मे बताया जाएगा। राजकुमार संतोषी ने लज्जा बनाई। इस फिल्म मे साफ दिखातें हैं कि bhaarat मे औरतों पर क्या ज़ुल्म हो रहें हैं। चक दे मे दोनो, मुसलमानों पर क्या ज़ुल्म हो रहे हैं वह दिखाते हैं और महिलाओं के समस्याओं के बारे मे बात करती हैं।मिशन कश्मीर मे मुसलमानों पर क्या बीतती है इसके बारे मे बता ते हैं। असल मे मिशन कश्मीर मे बहुत बुरा हो सकता था। क्योंकि बहुत लोग सोचते हैं कि सब मुसलमान आतंकवादी हैं। लेकिन इस फिल्म मे साफ dikhaaten हैं कि इस्लाम आतंकवाद की इजाज़त नही देता। और एक सीन, जहाँ पर खान, संजय दत्त, और एक आईएस वाला बात कर रहे होते हैं, खान पर आरोप लगाया जाता है कि वह आतंकवादी है। और वह गुस्सा हो जाता है और कहता है कि यह इस देश की बद्किस्माती है कि बहुत सालों से गोली खाते aadmee पर आतंकवादी होने का इलजाम इस लिए गाया जा रहा है क्योंकि वह मुसलमानी हैं। तो यह बात अच्छी है। लेकिन ऐसी फिल्मों की पहुंच कम होती है। इस लिए दूसरे फिल्मो का सुधार आवश्यक हो जाताहैं।

क्लास

१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत दुर्बल हैं और मर्द का इनित्ज़ार करती है। कल हो ना हो मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना कि माँ, सहस क्यों का पर पाए? अमन ने क्या किया, हिमत करके दादी को जेनी का सच बताया। उसने दिमाक लगा कर व्योपार का कुछ उपाए सोचा। राजा हिन्दुस्तानी, जो १९९८ की हिट पिक्चर है, उसमे राजा बचा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती हैं- कुछ नहीं, वह रोती है और उससे बिनती करती है और पापा कि सहित मांगती है। एक रिश्ते मे भी लड़कियाँ लड़कों का इंतिज़ार करती हैं भाई जब आता है फिर वह कुछ करती हैं। कभी ख़ुशी कभी घाम मे पूजा रोहन कि मदद करती है लेकिन, उसने जीजाजी के लिए रोहन को क्यों नहीं खोजा? जया बादमे पती को ठुकराती है लेकिन पहले वह जानती है कि बेटा अंजली से प्यार करता है पर वह नैना से सगाई के रस्मों को आगे बढ़ने देती है। यह सिर्फ मैं नहीं कह रही, रीडिफ़।कॉम ने कुछ दिन पहले लिखा था कि हीरोइन कितनी दुर्बल हो गईं हैं।
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ रहे होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णय लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पड़ी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म के बारे मे सोचना उचित है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस ही ने कभी कभी बनाया। और इस फिल्म मे अमिताभ खलनायक है, वह अथीथ को नहीं छोड़ सकता और राखी छोड़ देती है और सफल बंटी हैं । और उसको, अमिताभ, को औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है gham करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।

Sunday, November 11, 2007

खोसला का घोसला

इस फिल्म मे दिल्ली के आधुनिक रुप के बारे मे बहुत ज़िक्र हुआ। दिखाते हैं कि यहाँ खयाल कितने बदले हैं। पहले हिंदुस्तान मे रिश्तों के बुनियात और विश्वास पर चीज़ें चलती थी। लेकिन अभ खोसला का अंध विश्वास उसको फसाता है और सिर्फ बुधू बना कर वह काम चला सका। दिखातें हैं कि मुल्ताए-नाशानल कम्पनी मे काम करना कितनी बड़ी बात है। खोसला गर्व से कहता है कि उसका बेटा वहाँ काम करता हैं। पहनाव मे भी बहुत बदलाव आया है-- बेटी ने बाल छोटे कर रखें हैं और सलवार छोडो, जीन पहनकर घूमती है। मेघना दिल्ली मे अकेली रहती है। यह भी पहले नहीं होता था कि लड़की अकेली रहती हो। बड़ा शहर है मेरी चचेरी बहन नेहा ने बताया कि छोटे शहरों मे अगर कोई बच्चा घर से निकलता भी है तो तीन लोग माँ यह बाप को बता देंगे। दिल्ली मे मेघना अकेली रहती है और चेरी के साथ घूमती है और खोसला परिवार को पता ही नाहीं चलता। शुरुवात मे जो दिखाते हैं- जहाँ बीवी के इलावा उसके मरने पर कोई न रोता उसका भी यही मतलब है कि इतना अव्यक्तिpan फेल गया है।
मुझे लगता है कि यह फिल्म असल मे आधुनिक जीवन के अकेलेपन के बारे मे और उसको जीतने के बारे मे है। इस फिल्म मे आप देखेंगे कि हर मोड़ पर खोसला, पुराने खायालत का आदमी, जो अभ भी रिश्तों को भगवान् मानता है अपने बेटे से लड़ता है और नए खयालात से लड़ता है। पहले, हिन्दू धर्म के अनुसार, अछे लोग सत्यवादी होते थे। कभी झूट न बोलते। और इस फिल्म मे ब्रोकर लोग और सब खोसला को इतना बड़ा धोका देते हैं। इस फिल्म मे हर व्यक्ती अपने बारे मे सोचता है। चेरी बुरा आदमी नहीं है लेकिन वह अपने बारे मे सोचता रहा। उसने मेघना के जस्बातों के बारे मे नहीं सोचा जब उसने बाहर जाने का फैसला लिया । और खोसला के दोस्त ने क्या सलाह दी उसको? -- जितनी दोस्ती बना सको बेटे के साथ बनाओ। चाहे इसके लिए पुराने रस्मों को भी तोड़ना पड़े। यह नई बात है। बाप बेटे के लिए घर बना रहा है और बेटे घर छोड़ने कि सोच रहा था। यह आधुनिक जीवन कि कड़ी सचाई है और मैं भी इस मे शामिल हूँ-- सब आन्टीयां दर्तीं हैं की अकेली घर मे क्या करेगी और मुझे थोडे अकेलेपन से आनंद मिलता है । हम को अपने से और दूसरो से लड़ना पड़ता है। अपने बचाव के लिए और ताकी हम अपने को देख सकें कि हम यह गलती नहीं कर रहे।

Saturday, November 10, 2007

बोल्लीवुद और अलप-संखयक लोगों

बोल्लीवुद दुनिया का सबसा बड़ा फिल्म इन्ड्स्त्री है। और इसमे बहुत गुण हैं। लेकिन एक मेरी उससे बहुत बड़ी शिक़ायत हैं। वह महिलाओं को केसे पेश करने लगा है। १९९४ के बाद औरतों को वह बहुत असहाए और दुर्बल दिखाते है। आश्चर्य की बात तो यह हैं कि पहले ऐसा कम होता था। १९७०ज़् और १९८०ज़् के हिट फिल्मों मे बहुत औरतों मजबूत हैं और खुद के फैसले लेती हैं। अल्प-संखयक लोगों, जैसे मुसलमानों के पेश मे मुझे ज्यादा फरक नज़र नहीं आया। बस एक भिनता है जो दोनो औरतों और मुसलमानों के चित्रण मे दिखता हैं। आज के कई निर्देशक सफल फिल्म बनाते हैं लोगों को सिखाने के लिए। इस पेपर मे मैं एक यह दो ऐसे फिल्मों का भी ज़िक्र करूंगी। लेकिन, ज़्यादातर फिल्म के विश्लेषण से दिखौंगी कि आज के सिनेमा मे औरतों को दुर्बल दिकाते हैं और यह बुरा क्यों हैं।
१९९४ मे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन कि सफलता ने इन्ड्स्त्री का हुलिया ही बदल दिया था। दोनो फिल्म ने रेकॉर्ड्स तोड़ दिए थी। और उनकी खास बात? जहाँ और निर्देशकों खून-खराबा, कम कपडे और रंगीली फिल्म बना रहे थी यह दोनो फिल्म परिवार के साथ देखने योग्य थे। दिलवाले मे एक खून-खराबा का सीन है। इस के इलावा दोनो फिल्मो का असर ख़ुशी, संस्कृति और संस्कारों पर है। फिल्म मे लड़कीय हमेशा पूरे कपडे पहनती हैं। एक और भिन्ता। दोनो लड़कियाँ दुर्बल हैं। सिमरन पापा के आज्ञा के खिलाफ नहीं जाएंगी। जब पापा घोषित करते हैं कि वह उनके साथ पंजाब जाकर कुलजीत से शादी करेगी, वह भाग के राज पे पास नही जाते। बल्की सिर्फ रोती है। राज का इंतिज़ार करना परता है। हम आपके हैं कौन मे निशा कुछ नही कहती जब गलती से मैंने हाँ कह दी, मे प्रेम से प्यार करती हूँ। और पे और इस फिल्म मे जो औरत मन की बात बोलती है, वह है मामी और वह खलनायक के रुप मे आती है। पूजा बौजी एक और आदरणीय औरत हैं और वह अपना त्याग करतीं है। तो यह दोनो फिल्मों मे एक समानता है जो इनके बाद फिल्मो पे बहुत असर डालती हैं। और मेरा मानना है कि इस लिए १९९४ के पहले और बाद फिल्मो मे इतनी असामनता है।
१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत
दुर्बल हैं और मर्द का इनित्ज़ार करती हैं। कल हो ना हो मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना कि माँ, सहस क्यों का पर पाए? अमन ने क्या किया, हिमत करके दादी को जेनी का सच बताया। उसने दिमाक लगा कर व्योपार का कुछ उपाए सोचा। रजा हिन्दुस्तानी, जो १९९८ की हिट पिचर है, उसमे राजा बचा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती हैं। एक रिश्ते मे भी लड़कियाँ लड़कों का इंतिज़ार करती हैं। कभी ख़ुशी कभी घाम मे पूजा रोहन कि सहैता करती है लेकिन, उसने जीजाजी के लिए रोहन को क्यों नहीं खोजा? जाया बादमे पाती को ठुकराती है लेकिन पहले वह जानती है कि बेटा अंजली से प्यार करता है पर वह सगाई के रस्मों को आगे बढ़ने देती है। यह सिर्फ मैं नहीं कह रही, रीडिफ़.कॉम ने कुछ दिन पहले लिखा था कि हीरोइन कितनी दुर्बल हो गईं हैं।
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जाया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ते होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी अपे बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णे लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पडी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।
पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म सोचने योग्य है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस मे अमिताभ खलनायक है। वह बीता हुए कल को नही छोड़ पाटा और उसको औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है घाम करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।
अलप-संखयक लोगों को भी ठीक पेश किया जाता था। लेकिन एक चीज़ है- उन्हें कम दिखाया जाता था। यह ठीक है और बुरा भी। ठीक है क्योंकि इस का मतलब है बुरा तो नहीं दिखा रहे। और बुरा क्योंकि वह भी हिंदुस्तान का हिससा हैं। अगर हम कह सकते की इस के वजह है कि लोग धर्म के बारे मे सोचते ही नहीं थे इस लिए उन्हें दिखाया नहीं जाता। इस वाद-विवाद मे मैं कुछ नहीं कह सकती। लेकिन जो बाकी हिंदुस्तान मे हो रहा था, धर्म के नाम पर खून-खराबा हो रहा था, बोलीवुड उससे बेखबर नही था, इस से लगता है कि कोइ और ही कारन था। लेकिन जिन फिल्मो मे दिखाया है ठीक दिखाया है। अमर- अक्भर अन्थोनी मे तीन बडे मज़हब, इसाई, मुसलमानों और हिन्दुओं को दिखाया था। तीनों अछे थे। और तीनो के धर्म को छुपाया नहीं गया। एन्थोनी ईसाई धर्म का चिह्न लगाता है। और एक गाना मे तीनों अपने धर्म का एलान करते हैं। मुझे यह अच्छा लगा।
एक बात है जिससे लगता है कि अभी चीजे पूरी तरा बिगडी नहीं हुई। आज कल बहुत लोग कर्मण्यतावादी फिल्म बना रहें हैं जिसका मकसद है दिखाना कि क्या हिंदुस्तान मे बुराएया है जो सुलझाने चाहिए। और मे सिर्फ सफल निर्देशकों के फिल्मो के बारे मे बात करूंगी कारण बाद मे बताया जाएगा। राजकुमार संतोषी ने लज्जा बनाई। इस फिल्म मे साफ दिखातें हैं कि bhaarat मे औरतों पर क्या ज़ुल्म हो रहें हैं। चक दे मे दोनो, मुसलमानों पर क्या ज़ुल्म हो रहे हैं वह दिखाते हैं और महिलाओं के समस्याओं के बारे मे बात करती हैं।मिशन कश्मीर मे मुसलमानों पर क्या बीतती है इसके बारे मे बता ते हैं। असल मे मिशन कश्मीर मे बहुत बुरा हो सकता था। क्योंकि बहुत लोग सोचते हैं कि सब मुसलमान आतंकवादी हैं। लेकिन इस फिल्म मे साफ दिखाते हैं कि इस्लाम आतंकवाद की इजाज़त नही देता। और एक सीन, जहाँ पर खान, संजय दत्त, और एक आईएस वाला बात कर रहे होते हैं, खान पर आरोप लगाया जाता है कि वह आतंकवादी है। और वह गुस्सा हो जाता है और कहता है कि यह इस देश की बद्किस्माती है कि बहुत सालों से गोली खाते आदम पर आतंकवादी होने का इलजाम इस लिए गाया जा रहा है क्योंकि वह मुसलमानी हैं। तो यह बात अच्छी है। लेकिन ऐसी फिल्मों की पहुंच कम होती है। इस लिए दूसरे फिल्मो का सुधार आवश्यक हो जाता
हैं।
यह बहुत ज़रूरी क्योंकि फिल्म लोगों पर बहुत अससर करते हैं। एक वजह है भारत कि अनपढ़। रामानंद सागर के रामायण मे अरुण गोविल ने रामचंद्र को पेश किया। उन्होने कहा कि इस के बाद कई लोग, खासकर गाव मे उनको सच मे भगवान मानने लगे। गोविल भगवान नहीं। लेकिन कई लोग जो ज्यादा जानते नहीं थे उनको फरक पता नहीं चला। मैं यह कहानी इस लिए दोहरा रहीं हूँ ताके आप को पता चले कि फिल्मों का क्या असर होता हैं। इस असर के कारण ही यह प्रोजेक्ट का कुछ महत्त्व है। इस प्रोजेक्ट मे दिखाया गया है कि निर्देशक को सोचना चाहिए कि वह क्या कह रहें हैं फिल्म मे। अभी हिन्दुस्तान मे बड़ी केस हुई थी, क्योंकि रेडिफ के मुताबिक धूम, यश राज की हित फिल्म, के बाद चोरियाँ बड़ गयी और चोरों ने जॉन एब्राहम, जो फिल्म का एक हीरो है, उसके बालों कि नक़ल की। कई लोगों ने इस के लिए यश चोपडा को उत्तरदायी ठराया। उसने कहा कि मैंने सिर्फ फिल्म बनाई। इस तर्क कि सीमा है, लेकिन यह पूरा सफाई नहीं हो सकता। निर्देशक को सोचा चाहिए। और इस लिए मई समस्या बताने मे इतना वक्त बिता रहीं हूँ।
यह पेपर बताता नहीं है कि महिलाओं को बुरी
तरा पेश क्यों किया जा रहा है। आश्चर्य कि बात तो यह है कि औरतों को दुर्बल, रोता हुआ, और मर्दों पर निर्भर १९९४ हे काड ही पेश किया जा रहा है। एक बदलाव का कारण है दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे और हम आपके हैं कौन। यह दोनो पिक्चरों ने रेकॉर्ड तोडके कमाया। तो शायद इसके बाद निर्देशकों ने सोचा कि यही दर्शादोक चाहते है। लेकिन उनका भी कओई ज़िमिदारी है। उनके पता होना चाहिए कि औअर्तों को ऐसे पेश करने से लोगों सोचने लगेंगे कि औरतों इसी के काबिल है। वह यह नहीं जान पाएँगे, कि जैसे अमर अख़बार एन्थोनी मे नीतू के बहुत रंग थे, वैसे बहुत औरतों के हैं। वह घर भी चला सकती हैं, काम भी कर सकती हैं और लड़ भी सकती हैं।

परिवार के प्रती धर्म

क्लास मे बुधवार को एक बात हुई थी जो अभी भी मेरे मन मे है। एक लड़का बता रहा था कि कैसे वह अपने बारे मे ज़्यादा सोचता है। उसका कहा भी ठीक था। उसने बोला कि ज़िंदगी के जिस मोड़ पर वह और हम हैं वह जिन्दागी बना ने का है। इस मे थोडा स्वार्थ आ ही जाता है। लेकिन मुझे लगता हैं कि यह गलत है। उसने ठीक कहा था कि वह उस के नज़ारिया से वह ठीक था। छूती उमर से ही वह बाहर पढाई के लिए भेजा गया था। मेरी पृष्टभूमि कुछ और है। मेरी पहली ज़िमिदारी हमेशा अपने परिवार के प्रती ही रहा है। आज भी मैं घर पर घर कि देख्बाल कर रहीं हूँ ताकी मेरे माता-पिता निश्चिंत अवकाश पर जा सकें। पौदों को पानी देना, दोस्तों जिनके इवेंट्स आ रहें हो उनके लिए तौफे लेना और जो भी पापा को यह घर को फोन करता हो उनसे बात करना मेरी ज़िमिदारी है।
यह करने से मुझे ख़ुशी मिलती है और मुझे लगता हैं कि मैं कर्तव्य का पालन कर रहीं हूँ। आख़िर बच्चे का भी तो कुछ कर्तव्य बंता है। हम छोटे हो यह बडे जितना कर सकते हैं उतना तो हमे करना ही चाहिए। मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूँ कि हमे सिर्फ अप्ना कैरियर सुधारना चाहिए। यह हमारे अंदर गलत सिद्धांत डालता हैं। हमे सिखाता है कि काम के इलावा हमे कुछ नहीं करना हैं। नहीं। इंसानियत, बच्चे होने के कारण, बेटे/बेटियाँ के नज़रिये से, और बहन/भाई का भी कर्तव्य निभाना है।

Friday, November 9, 2007

ओबामा और देश प्रेम

मेरे क्लास वालों को जानकार शायद ख़ुशी होए गी, मुझे हँसी आई, कि जिस तस्वीर को मैंने क्लास मैं दिखाया था वह आज ओबामा के लिए भाडी विषय बन रहा हैं। आज उसके आदमियों ने कहा कि ओबामा बहुत गुस्सा है कि वह तस्वीर नेट पे इतनी फैल गया हैं। उसको लगता है कि गलत तरीके से पेश किया जा रहा हैं। लेकिन समाचार पत्रों का कहना है कि ज़्यादातर ठीक ढंग से पेश किया जा रहा हैं।
ओबामा का इतना उतावला होना इस बात को साबित करता हैं कि अमरीका मे देश प्रेम कि क्या एमियत हो गयी हैं कि ओबामा डर ने लगें हैं कि यह विषय उनको डुबो ले जब पहले से उनके चुनाव जीतने का सपना को पाना मुश्किल लग रहा था। अगर क्लिंटन ने, और वह कभी ऐसे गलती नहीं करेगी क्योंकि क्लिंटन ने यह पाठ जल्दी सीख लिया था कि कुछ चोत्ती बात यह तस्वीर आशाओं को डुबो सकती है, तो यह छोटी बात होती। लेकिन ओबामा का डरना अभी ठीक हैं।
इस माहौल मे किसी का कहना कि तुम देश प्रेमी नहीं हो, बहुत चिंता की बात हैं। लेकिन काश मेरे देश वासीयों इस देश प्रेम को कोइ अच्छा रुप दे सके और देश के मूल्यों कि रक्षा करें। वह नेताओं से कहते कि इस सीमा का आप उलंघन नहीं कर सकते। वह कहते कि आप इसको नहीं मार सकते क्योंकि यह भी हमारा है। आप इसको बेघर नही बना सकते, इस ने हमारे देश के लिए लड़ा है।

Wednesday, November 7, 2007

जैना- ६

आज आप सब मुझे डायाग पर पाएँगे। मैं आज जैना-६ विषय पर जानकारी बडाना चाहती हूँ। जैसे मैंने इस ब्लोग पर पहले लिखा हैं बहुत लोगों के गलात-फैमी है कि हम क्या चाहते हैं और किस विषय को बाहर लाना चाहते हैं। यह हैं कि अमरीका मैं अभी भी कितनी असमानताएँ हैं। अगर आप के पास पैसे हो, आप गोरे हो और आप कुछ गलत करते हैं आप को कम सज़ा मिलेगा। अगर आप अलाप-संख्यक हो, पैसा कम हो आप के पास, आप को कड़ी सज़ा मिलेगी। यह बिल्कुल गलत हैं। अमरीकी संविधान मे लिखा है कि सब को 'ड्यू प्रोसेस' और वकील का हक हैं। हम कहते हैं कि वकील अच्छा भी होना चाहिए। जिन वकीलों गरीबों का प्रतिनिधी बनते हैं कभी वह बहुत बुरे होते हैं। एक केस मे जब प्रतिवादी को मौत कि सज़ा सुना ने वाले थे, कुछ करने के बजाए उसका वकील अदालत मे ही सो गया। (इस के कारण अपील सफल हुआ) लेकिन यह कभी होना ही नही चाहिए।
यह जैना केस और इसके पीछे कर्वहात कि भूमिका है- यह असमानता।

Tuesday, November 6, 2007

आज मैं जब उठी मेरे अंदर बहुत कृतज्ञita भरी हुई थी। परसों डेलाईत सेविन्ग्ज़ के कारण मुझे कम, थोडे देर के लिए थकन का आभास हो रहा था। और मुझे लगा कि थोडे दोनो से मुझे बहुत थकान और जैसे बिल्कुल पढने का मन ही नहीं कर रहा। और मुझे कल थोडा सा वक्त खुद के कामों के लिए मिला। आज भी थोडा वक्त था लेकिन वह लेपटोप के सुधार मी निकल गया। बेस्ट बाई। मुझे फिरसे शुक्रवार को जाना पडेगा। लेकिन इस के बहाने दिवाले के लिए कुछ और खाना खरीदने का मौका मिलेगा क्योंकि एक दुकान बिल्कुल बेस्ट बाई के पास हैं।
लेकिन यह पोस्ट ख़ुशी और कृतज्ञता के बारे मी हैं। मुझे लगता हैं कि धन्यवाद करना बहुत ज़रूरी हैं। कई लोगों जो बहुत "हाई" करते हैं, उनके पास बहुत हैं। इन सब चीजों के लिए भगवान से आभार प्रकट करने का बजाए लोग शिक़ायत करते रहते हैं। घर मी दो गाड़ियाँ हैं लेकिन तीसरा नहीं हैं इस लिए शिक़ायत करेंगे। यह नहीं सोचेंगे कि बगल वाले के पास एक भी गाड़ी नहीं हैं और उसको पैदल जाना पड़ता हैं।
मैं भी यह भूल करती हूँ और शिक़ायत करूंगी - मैं तीन साल से हिंदुस्तान नहीं गयी लेकिन मेरे कई दोस्त दस साल से नहीं गए और माँ और पापा ने बोला हैं कि शायद इस साल यह अगले साल भेज पाएँगे।
मैं फिर से सोच ने लगी- कि शायद पुराने फिल्मो मे अल्प-संख्यक लोगों और औरतों को बहतर पेश किया गया हैं। मैं अमर-अख़बार-अन्थोनी के एक क्लिप देख रही थी। उस मे, तीनो धर्मों को एक जैसे दिखाया गया हैं - तीनो के लोग बच्चे को शरण देते हैं। तीनो अच्छे लोग हैं। और नीतू सिंह और परवीन बबी दीमकी, हसमुख, सुन्दर, और सुशील हैं। जहाँ कारन जोहर और राजश्री के लड़कियाँ नाज़ुक हैं नीतू और परवीन इस फिल्म मे कुछ करती हैं। दोनो मर्दों का इंतिज़ार नहीं करती। वाह। सिम्रान और नैना अच्छी लड़कियां हैं लेकीन नाज़ुक हैं - मर्दों का इंतिज़ार करती रहती हैं।कुछ करने के बजाए, वह रोती हैं।
राजश्री एक मुसलामानों को रखेंगे ही रखेंगे लेकीन ज्यादातर वह कुछ करेगा नहीं। अमर-अख़बार-अन्थोनी मे सब सम्मान हैं।

Monday, November 5, 2007

आताम्निर्भार्ता

आज मैं क्लास मे सुन रही थी जब एक सह्पाटी बता रहा था कि कईओं का औरतों को शिक्षा देने का इरादा गलत हैं। वह इस लिए कर रहे हैं ताके उस के अच्छे घर मे शादी हो जाए इस लिए नहीं कि औरत का मनोबल और अताम्निभार्ता बडे। स्वतंत्रता ज़रूरी हैं। मैं यहाँ पर बहुत से लोगों को देखती हूँ जिन्हें अपने से काम करना नहीं आता। यह बिलकुल गलत हैं। और इस की भूमिका काम्पुस से बहुत दूर शुरू होती हैं। घर पे। अगर घर आकर सब हमेशा एक साथ बेठे रहें, यह हमेशा कुछ न कुछ करना चाहते हैं तो उनको शांत रहना, उपने मे मस्त रहना यह नहीं आएगा। जैसे जब मैं घर पे थी, घर आकर माँ और बहन के साथ आधा एक घंटा बिताया फिर मैं ऊपर काम करने चली जाती थी। फिर शाम को थोडा और बैठी सब के साथ। फिर सप्ताहांत के मौक़े पर ज़्यादातर पूरा परिवार कुछ साथ मे करता था। लेकिन मुझे हमेशा अकेले और अपने मे मस्त रहना भी आता था।
तो यहाँ आकर भी मुझे अपना रास्ता ढूँढ ना आता हैं। कल मेरी लप्तोप टूट गया, मैं खुद दुकान पर गई। और हिन्दी प्रेजेंटेशन के लिए दूसरा खोजा। प्रेजेंटेशन के लिए भी मैंने किसी की सहिता नहीं मांगी। एक शब्द का हिन्दी शब्द माँ से पूछा। बस।
लेकिन जैसे मैंने कहा इस कि भी शिक्षा देनी पड़ती हैं। माँ कहती हैं कि जब वह बड़ी हो रही थी तो हमेशा कोई न कोई होता था और अकेलापन उनके लिए नई चीज़ थी। क्योंकि यहाँ पर पापा काम पर चले जाते। घर के बाहर शिक्षा पाने से यह भी आता हैं। क्योंकि, जैसे मैं अभ हॉस्टल मैं हूँ तो मेरी ज़िमेदारियां कम हैं। तो मैं थोडी देर के लिए सिर्फ यह सोच थी हूँ कि मुझे क्या करना हैं और करना चाहिए। इस से मुझे मालूम पड़ता हैं कि मुझे क्या अच्छा लगता हैं और यह कैसे कर सकती हूँ। जब मैं घर पर होती हूँ तो मैं पहले बेटी होती हूँ और उस नज़रिये सो सोच न पड़ता हैं। और बाहर रहने से अकेलेपन को कैसे झेलते हैं यह भी सीखने को मिलता हैं।

Sunday, November 4, 2007

डान राड्क्लिफ

मैंने आज उसका एक इण्टरव्यू सूना। मुझे बहुत अच्छा लगा, उसके आदमियों ने उसे अच्छी तरा तय्यर किया था। कई मशहूर लोग कहते हैं कि हाय हमने क्या खोया हैं। राड्क्लिफ ने ऐसे कुछ नहीं कहा। उसने सच बोला, मैं बता नहीं सकता कि मैंने कुछ खोया है यह नहीं, मैं तो इस के इलावा कुछ जान्ता ही नहीं। लेकीन मुझे बहुत मज़ा आया हैं। उस ने किसी की निंदा भी नही की। उस ने कहा कि वह बहुत अछे लोगों से मिला हैं और चाहता है कि उन्हें हमेशा जान्ता रहे। उस ने कहा हैं कि वार्नर बरोथर्स ने उस का हमेशा साथ दिया हैं। जिस काल मी मशहूर लोग हमेशा किसी न किसी के बारे मे बुरा बोल रहें हैं और कोइ बतामीज़ी कर रहीं हैं, राड्क्लिफ के बातों को सुनकर अछा लगा। जब वह अठारा साल का हुआ उस को अपने कमाए हुए पैसे मिले। उस मौक़े पे उसने कहा कि कई पत्रकारों चाहते हैं कि अब मैं कुछ बत्माज़ी करूं, यह मैं नहीं करूंगा।
अपने को वह अच्छे से संभालता हैं। वह ठीक से बात करता हैं। और यह इस सचाई के बाद- जिस से भी बात करो वह कहते हैं कि निजी ज़िंदगी मे राड्क्लिफ बहुत मजाकी हैं। एक सेट पर भी उसने थोडा बदमाशी किया था। लेकिन कभी हद से आगे नहीं गया। और मैं यह सब कहती हूँ और मैं उसकी "फंगिर्ल"= -अमारीकी भाषा मैं भी नहीं हूँ। लेकिन अगर और मशहूर लोग राड्क्लिफ जैसे वर्ताव करने लगे तो इस देश मे कितना और कैसे बदलाव आएगा। यह भारत मे भी सच हैं जहाँ पे सलमान खान जैसे स्तार्ज़ भी मौजूत हैं.

Saturday, November 3, 2007

मुशेरफ का भाषण

मैंने आज परवेज़ मुशर्रफ का भाषण सुना। और उससे साफ दिख रहा था कि वह सिर्फ पाकिस्तानियों से नहीं बलकी पूरी दुनिया से बात कर रहा था। भाषण के बीच मे वह अंग्रेज़ी मे बात करने लगा और इस समय वह सिर्फ अमरीकी लोगों और यूरोपीय लोगों से बात कर रहा था। उसने मशहूर अमरीकी राष्ट्रपति एब्रहाम लिंकन का कहा दोहराया। इससे वह यह साबित करना चाहते थे कि अमरीकी इतिहास मे भी राष्ट्रपति, और वह राष्ट्रपति जिस के इतिहास जय गाथा गाता हैं, उसको भी संविधान के कानून को तोड़ना पडा और "इमरजेंसी" का एलन करना पडा। उन्होने बार बार यह ज़िक्र किया कि अभी पाकिस्तान कि उमर कम है। हुक़ूमत-ए-पाकिस्तान अभी भी लोकतंत्र बनेगी। लेकिन अभी पाकिस्तान को वक्त चाहिए। यह कह कर अगर वह सफल होंगे, यह तो वक्त ही बता सकेगा। लेकिन उनका भविष्य बिल्कुल साफ नही हैं। उन्होने भाषण तो अच्छा नही लग रहा। एक तरफ हैं आतंकवादी, एक तरफ भुट्टो और शरीफ, और तीसरी तरफ है अमरीकी और यूरोपीय सरकारें। सारे सरकार ने कह दिया हैं कि वह मुशेरफ कि इस प्रदर्शन और कार्य का विरोध करते हैं।
लेकिन उनके विरोध से सच मे क्या होगा? अमरीका अभी पाकिस्तान को बहुत रुपये दे रहा हैं। और कम से कम यह रुपए मुशेरफ के साथी को खुश रख रहा है। यह बहुत ज़रूरी हैं क्योंकि अगर साथी नाराज़ हो गए तो मुशेरफ को जल्दी भाग न पड़ेगा
मुझे मुशेरफ के लिए कम चिंता हैं। मेरी चिंता तो उन आम आदमियों के लिए हैं जो लड़ाई के बीच मे फसें हैं. उनके लिए मैं प्रर्था कर रहीं हूँ. प्रभु उनकी रक्षा की जिए गा।

Friday, November 2, 2007

राष्ट्रवाद

आज मैं मिज्राणा नृत्य देखने गयी थी। वहाँ पे वह बता रहे थे कि भारत ने दुनिया को क्या सिखाया हैं और उसने दुनिया को अपने रंगों मे कैसे रंगा हैं। लेकिन उन्होने इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि भारत ने दुनिया से क्या सीखा हैं। मैं जानती हूँ कि यह भारतिय-अमरीकी विद्यार्थीयों का कार्यक्रम था। लेकिन उनको एक tarfee कहानी नहीं पेश करना चाहिए था। अभी भी बहुत लोग कहते हैं कि भारत ज्यादा ही राष्ट्रवादी हैं। इससे यह साबित होता हैं और हमारे बच्चों, जिस मे मैं भी शामिल हूँ, उनको गलत शिक्षा मिलती हैं।
मेरा भारत महान कहने मे कुछ गलत नहीं हैं। भारत मे बहुत से गुणे हैं। एक हजार सालों मे भारत ने किसी भी देश पे आक्रमण नहीं किया हैं। भारत ने दुनिया को दशमलव दिया हैं। लेकिन यह बुरी बात होगी अगर हम मे से किसी ने कहा कि भारत महान हैं और दूसरे सब देशों खराब यह बुरे।
राष्ट्रवादी होना बुरी बात नहीं हैं। यह कभी कभी देश प्रेम का लक्षण होता हैं। लेकिन राष्ट्रवाद और देशप्रेम दोनो कि भी एक सीमा होती हैं जिसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए