Saturday, December 1, 2007

माँ-बाप का आदार

सोमवार के इम्तिहान के लिए मैं चीफ की दावत कहानी पढ़ रही थी फिरसे। और मुझे फिरसे उस बेटे को थाप्पर मरना चाहा। कोई माँ के साथ ऐसा बर्ताव करता है? नहीं, मुझे कहना चाहिए कि ऐसा बर्ताव क्यों लोग करते हैं और क्यों? मेरे भी जान पहचान मे ऐसे लोग हैं जो अपने माँ यह सास के साथ ऐसे बदतमीजी करतें हैं। एक बार तो मुझे लगा कि मैं उस के बेटी से कुछ कह ही दूंगी। वह माँ को छोड़ देतीं है। बहुत काम करवाती है। यहीं कहानी मे भी होता है, बेटा माँ को आदेश देता हैं! यह उल्टी गंगा नहीं हुई क्या?
माँ बाप प्यार से हमे पालते हैं। इस कहानी मे माँ ने अपने सारे जेवर बेटे के पढाई के लिए बेच दिए थे। माँ इसका एक बार जिक्र करती है जब बेटा कहता है कि तुम कुछ चूड़ी-वूडी क्यों नहीं पहना। माँ का शुक्रियादर करने के बजाए वह झुन्झुला उठता है। आपने जो पैसा डाला उस का कुछ रिटर्न भी तो मिला! मैं दुगना खरीद के दे सकता हूँ। ऐसे बात करना उसको शोभा नहीं देता। माँ को वह इतना डराता है। कभी मुझे लगता है मुझे ऐसे माँ और बाप के लिए घर खोलना चाहिए। अगर आप को लगता है कि आप के माता-पिता आप के लिए बोज हैं उनपे ज़ुल्म मत करों, यहाँ छोड़ दो और मे उनका देख्बाल करूंगी। रवी चोपडा के बघ्बान मे भी यही कहानी दिखाया गया। राज ने सारा पैसा बच्चों पर खर्च दिया और सोचा फिर रिटायर करके बचे के साथ समय बिता लूँ। लेकीन बचों को लगा कि हाए कैसी आपाती आ गयी। उनको कुछ कहने के बजाए, यह ज़्यादा अच्छा होता, वह ज़ुल्म वरते हैं। चीफ की दावत मे भी माँ कहती है कि हरिद्वार भेज दो, यह भाई के पास, लेकिन न। नौकर चाहिए यह लोग क्या सोचेंगे। लोगों कि परवाह मत करों। पता ही चल जाता है कि ध्यान कौन रख रहा है और दिखावा कौन।
माँ और बाप के वापिस देना हमारा कर्तव्य है अगर उनको प्यार देकर इस कर्तव्य का पालन नहीं कर सकते तो झूट भी मत बोलो।

1 comment:

Nitin Bagla said...

चीफ की दावत हमने भी पढी थी स्कूल में। काफी मर्मस्पर्शी कहानी है।