Wednesday, December 5, 2007

लड़ाई और झगड़ा

जहाँ भी देखों झगड़े हो रहे हैं। कई घरों मे बहुत झगड़े, दोस्तों और सह्पाटी के बीच लड़ाईयां। देशों और नेताओं मे युद्ध हो रहें हैं। और सबसे बुरी बात है कि मैं पूरी तरह इन पर गुस्सा भी नहीं कर सकती. मैं पहले मानती थी की कि चुनाव जीतने के लिए ख़ुशी भरे एड और सिर्फ कानून और अपने सोच पर विचार करना काफी है। हम यह 'मड-स्लिंगिंग' यह आरोप लगाना जो इन्होने बहुत पहले किया हो उसको बाहर जनता के सामने लाना और एड मे रंगीले तरीकों से पेश करना यह हम राजनीती से निकाल सकते हैं. लेकिन मैं बड़ी हो चुकी हूँ। मैंने ऐसे २ चुनाव देखे है जहाँ लोगों ने 'पोसिटिव चुनाव' की घोषणा की और उनके पक्ष ने सिर्फ अपने गुणों के बारे मे बखान किया। उन्होने दूसरे पक्ष पर ठोकर नहीं मारी। दोनो अभीलाशी चुनाव हारे। मेरा तजुर्बा कम है लेकिन मे भी उन अभीलाशीयों के लिए सच नेगातिव एड सोच सकती हूँ जो उन्हें जीता सकता। मेरा मानना है कम से कम एक चुनाव मे दूसरे पक्ष ने नेगेटिव काम्पेनिंग से उन्हें हराया।
और दोस्तों के बीच भी यह कहना कि कभी लड़ो मत, गलत है। क्योंकि बात को अंदर रखने से दूरियां पैदा हो जातीं हैं। परिवार मे भी। मेरे एक दोस्त और मैं दस साल से दोस्त हैं, और हम एक बार भी नहीं लड़े। इस साल हम लड़ने के नजदीक आए दो बार। पहली बार हम जिस बात पर लड़ने के लिए तैयार थे उससे दूर रहना शुरू किया। दूसरी बार मुझे उसका एक वाक्य बहुत बुरा लगा। मैं कुछ कहना चाहती हूँ लेकिन मुझे डर है की वह बुरा मान जाएगी। मेरे बहन और मे एक बार लड़े। एक दूसरी के ऊपर खूब चिलाए। लेकिन उस के बाद और भी नजदीक आए क्योंकि हमने क्रोध निकाल दिया और जो मैं गलत कर रही थी मैंने सुधारा और जो वह कर रही थी उसने। तो इस से हमारी लड़ाई का कुछ फैदा हुआ। और हम एक दूसरे से नाराज़ भी न हुए।
मेरा इस पोस्ट के बिल्कुल यह नहीं मतलब की लड़ना चाहिए। यह गलत है। लेकिन बात को अंदर भी नहीं रखना चाहिए। मैंने और अपनी बहन ने कभी गाली का इस्तिमाल नहीं किया लेकिन हमने यह कहा कि जो तुम यह कर रहे हो मुझे बहुत बुरा लग रहा है। और मैंने सब कुछ नही बताया, लेकिन इतना बता दिया कि मैं उससे कम नाराज़ होती हूँ। हमे एक सीमा के अंदर कहने और लड़ने का हक हे। यह सीमा है कि कम से कम लड़ें
और लड़ते समय सिर्फ कम से कम बात कहनी चाहिए और वह भी सोचके।
चुनाव के अभीलाशीयों को भी एक सीमा पार नहीं करना चाहिए लेकिन जब तक जनता ज़्यादा सोचने नहीं लगती हमे नेगातिव काम्पेनिंग का इस्थिमाल करना ही पडेगा।

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