Sunday, September 30, 2007

हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई

"इशा और अग्नी के लिए और वह सरे बच्चे जो मारा-मारी के चाव मे बड़े हो रहें हैं। मेरी आशा हैं कि वह भी उस जागां को जाने जहाँ पे मैं बड़ा हुआ था-वह जन्नत जिसका नाम कश्मीर हैं।"
"लहऊँ, लुहान हो गई ज़मीन यह देवताओं की।"
यह दो लाईने आतंकवाद के सचाई के बारे मे कुछ सचाई बताती हैं। यह ज़िक्र करती हैं कि इस लड़ाई मे अनेक मासूम जानें मिट गईं हैं और कड़ोड़ो का नुक्सान हुआ है। आतंकवाद मे यह सब से बुरी बात हैं की यह बेगुनाओं को मारते हैं। वह लोगों के दिल मे भए और नफरत पैदा करते हैं। यह ही हिंदुस्तान मे हुआ हैं। आप देखेंगे कि हर आक्रमण के बाद एक और हिंसा कायम होती हैं। गुजरात मे जो मारा-मारी हुई थी उस के बाद कई अच्छी लोग भी मुसलमानों से नफरत करने लगे।
यह भी बहुत, बहुत गलत हैं। हम सब मुसलमानों को थोड़े के कार्यों के लिये कसूरवार क्यों ठहर्वाएं। "तीजा रंग था तेरा। तेरे ढंग से जीया"-चक दे (मौला मेरे)।
इस ब्लोग मे बार बार मे इस बात बे जोर करती हूँ कि हम शांती और एकता के साथ रहें। भाईपन। हम जब तक मुसलमानों को दोस्त और भाई न बनाएं तब तक चेन से नहीं रह पाएँगे।

Saturday, September 29, 2007

हीरो-फिल्म और मेरे कुछ प्रशासनिक चीज़े।

पहले, फिर से--सारी तिपणीन्यों के लिये मेरा हार्दिक धनियावाद।

आज मैंने हीरो देखी। उस मे जो सन्नी दीयोल का जा रोल हैं, मुझे बहुत ख़ूब लगा। उस मे वह फौज मे होता हैं, और उसको कश्मीर की चार्ज मिलता हैं। लेकिन जहाँ पहले वाले मेजर गॉव वालों को लूटता है, नया मेजर सोचता हैं की शांती तभी आएगी जब वह कश्मीरियों का दिल जीत पाएंगे। मुझे यह बहुत बहुत अछा लगा। लेकिन मुझे इस बात की भी ख़ुशी हुई की निर्देशक ने भारतीय फ़ौज के ज़ुल्मो को भी दिखाया, की यह झगड़ा एक तर्फी नहीं हैं। उन्होने दिखाया कि कई बेकसूर मुसलमान गाव वालों फौजीयों से इतना इतना डरते थे। दिखाया की मेजर के इलावा कम फौजी सोचते थे की दोस्ती से दिल जीता जा सकता और उसके बात आतंकवाद को रोका। और फिल्म को मनोरंजन-दायक बना कर यह भी किया की लोगों इस को देखेंगे।

कई लोग मुझे नादान और इन विचारों को मेरा बचपना। लेकिन मेरा ह्रदय मानता हैं की जो नफरत और हिंसा से नहीं कमाया जा सकता वह दोस्ती और प्यार से पाया जाएगा। मेरा दिल कहता हैं कि अगर हम ऐसे उसूओलों पे चलते गाए तो हम जल्द ऐसे समाज और दुनिया मे जीं रहें होंगे जिस मे धर्म का असली अर्थ मालुम पड़ेगा, जो हैं इन्सनीयत, प्यार, एकता, और शांती।

और एक और खुश खबरी --- ब्लागस्पाट के कारण यह मेरा पहला ब्लौग है जिस मे लिखने मे एक भी नहीं गलती हुई हैं! आप सब से इन प्रयासों को पढने के लिए मैं आभार प्रकट करती हूँ

Thursday, September 27, 2007

२००८ का चुनाव

पहले टिपण्णीयों के लिये हार्दिक धन्यवाद। मैं लिख लिख कर अपने हिंदी का अभ्यास कर रहीं हूँ। मेरी आशा हैं की मेरी हिंदी बेहतर होती जा रही हैं।

आज का संदेश-- चुनाव का क्या नतीजा होगा। मैं यह तो नहीं कह सकती के अमरीकी चुनाव मे कौन जीतेगा।। लेकिन यह ज़रूर कह सकती हूँ, कि यह चुनाव और अभियान देख ने लायक होगा। इस चुनाव मे जो नाफ्रतें और प्रतियोगिताएँ छुपी हैं अमरीकी समाज मे छुपी हुई हैं वह बाहर आएँगी। हमे इस को थोड़ा आभास हुआ था, एक दक्षिणी चुनाव मैं। वहाँ अमरीकी संसद के लिये एक अफ्रीकी-अमरीकी आदमी एक गोरे से लड़ रहा था । चुनाव के दोनो उम्मीदवार बहुत नज़दीक थे। फिर एक एड छापा गया जिस मे दिखाया की वह अफ्रीकी-अमरीकी आदमी एक मेम के साथ रिश्ता बना रहा था। यह महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इतिहास मैं दक्षिण मे, जादातर, लोगों का मानना था की वह "लोग" मेमों को बह का देते। इस एड के बाद, गोरा जीता। बहुत लोगो का मनाना हैं की वह इस एड के कारण हारा। डेमोक्रटिक पार्टी के उम्मीदवारों मे एक अफ्रीकी-अमरीकी हैं , एक महिला हैं, एक लातीनी अमरीकी। यह सब अल्प-सान्ख्यक लोगो के प्रतिनिधि हैं। और जो इनके खिलाफ खड़े हैं, वह सारे गोरे, अमीर, आदमी हैं। तो इस चुनाव मैं आप बहुत एड देखेंगे। बहुत क्रोध। देखना होगा की अमरीका जीतता हैं, यह घृणा.

Wednesday, September 26, 2007

हम किस चीज़े को कीमती समझ ते हैं।

आज मैंने एक राल्ली मे भाग लिए। मैं लघ-बघ कभी नहीं क्लास को बंक करती हूँ। लेकिन अंदर से आवाज़ आयी की इस बार तू जा! तो मैंने प्रोफेसर से पूछा की मैं जाऊँ। उनके हां के बाद मे गयी। और जाने के बाद मुझे पता चला की क्यों मुझे बहुत लग रहा था कि मुझे जान चहीये। एक सहपाठी, जिसे आप "कृष" कह ली जीए। उस ने इस राल्ली मे बहुत मेहनत और समय लगाया। उस ने हमसे कहाँ, मैं तो उपाधि प्राप्त करने वाला हूँ। तो यह जो संसद आपके फीज़ बढ़ाने की बात कर रहा है, मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, तो आप फैसला करे की आपको कितना फर्क पड़्ता है-- यूनिवर्सिटी के लोगो ने कहाँ हैं कि उनको अगर पैसा नहीं मिलता तो हमको कम से कम एक हज़ार डॉलर और देने पड़ेंगे।
लेकिन हम सब देख रहे थे की इस बच्चे की जान इस मे थी। और जैसे हम जा रहे थे हम को मालूम हुआ की बहुत लोगो के लिये यह अहम हैं। एक लड़का हम सब तो कह रहा था, पत्रिका देकर, की यह राल्ली से जो पैसा हम इकत्रित करने की कोशिश कर रहें है वो सिर्फ कर्मचारियों को मिलेगा, हम को नहीं। वहाँ पर पहुंच कर मैंने एक आदमी से वाद-विवाद करी। वह मुझे कह रहा था की हम टैक्स क्यों देते हैं? समाज और सरकार का कोई हक नहीं बनता की टैक्स के जरिए वह पाठशालाओं को पैसे दे। इस वाद-विवाद मे हमने ज्यादा कुछ हासिल नहीं किये। मैं अपनी बात पर अटकी रही, और वह अपने पे। लेकिन इस से पता चला के ऐसे राल्लीयों मे कुछ तो दाओं पर लगा होता हैं। हमारे असूलों। जेना मे जो निर्णे हुआ हैं, उसके विरोध जो आकर्षण हुआ हे, उस मे कोइ मारा-मारी नहीं हुई। उस से कुछ साबित हुआ। की हम, आम बच्चे, संसद के निर्णे के विरोध मे आए इस से भी कुछ साबित हुआ, के सिर्फ छोटे संख्या के लोग दंगा करने नहीं आए।
और वह लड़के, वह सहपाटी ने हम सब की बोलती बंद कर दीं। उस ने बताया की उस के बाप कैसे मरे, उन्होने सुब कुछ फीज़ मे दाल दीया। यहाँ तक की स्वस्थीया- बीमा नहीं लीया ताके वह फीज़ भर सके, और फिर वह फेफड़ा का केकड़ा हो गया, और उनका दिहांत हो गया। और मरते दम तुक उसने अपने बेटे को कहा, तुम्हारी एदुकाशन सब से ज़रूरी हैं। इस से भी हम सब को याद आया की हम क्या करने आये हैं। हम किन किन के लिए लड़ने आये हैं। इस ही के बाद मैंने उस आदम से वाद-विवाद शुरू किया। मैंने कहाँ, मैं सिर्फ सुन ने नहीं आयी हूँ। मैं कुछ करने, कुछ दिखने आयी हूँ।

Tuesday, September 25, 2007

जेफ़ का केस।

आज मुझे कहते हुए बहुत ख़ुशी होती है की वारेन जेफ़ को आज दोषी ठहराया गया। यह सब ही मानते हैं की यह आदमी जो अपने को ईश्वर्दूत कहता है, ने यह सब गुनाए कीये थे। लेकिन, मैं समाचार पत्रों मे पढ़ रही थी की जहाँ मुकदमा चल रहा था, वहाँ पे लोग जेफ़ को मानते हैं। इस लिये यह परिणाम और भी उत्तम और उन लोगो की तारीफ करनी चाहीये जिन्होंने बड़ी हिम्मत के साथ यह निर्णय लिया। कल यह हमे बताया गया की जूरी एक और रात चाहते हैं, लेकिन उनको लग-भाग पता था की वह क्या णिरने लेने वाले थे। यह ये दिखाता है की जूरी वालो को पता था की उनके निर्णय कितना भारी होगा, उसके परिणाम कितने लोगो को छुएँगे। क्योंकि इस दोषी निर्णय के साथ इस जूरी, यूटा मे, ने कहा है, की हम तुमको, तुम्हारा कार्यो को अस्वीकार करते हैं। तुम हमारे लिये नहीं बोलते। आज वह बहादुर लड़की जो सरकारी गवाह बनी, उस ने कहा, की वह भी गवाही देते समय डरी। तो वह उन लड़कियों जो चुप बैठे है उनको कायर नहीं कह रही हैं। लेकिन वह, और हम सब, चाहते है कि इस निर्णय से एक मठ ने जेफ़ के विरोधी को औचित्य दिया है। मेरी उम्मीद है कि इस के बाद सब लोगो इन लड़कियों को शरण देंगे।
मेरी उम्मीद है की जहाँ जहाँ धर्म के नाम पे अत्याचार हो रहें है उनके समाजों और मठों के लोग उठ कर ऐसे विरोध करें।

Monday, September 24, 2007

माँ बाप का फर्ज कहाँ पे खतम होता है।

आज मोनेयेथिक्स.ब्लोग.सीनें.कॉम पे एक पोस्ट ने मेरी सोच शुरू कर दिया। एक औरत पूछ रही थी की मैं और मेरे पति नौकरी छोड़ ना चाहते हैं। लेकिन हमारी बेटी अभी भी हमारे कमाई पर निर्भर है। और अगर हमने नौकरी छोड़ी तो हम उसे ज्यादा पैसा नही दे पाएंगे। इस मे, और ऐसे ही अन्य परिस्थिथीयो मे माता-पिता का क्या कर्तव्य हैं?
मेरे ख़्याल मे असली प्रशन है बेटी का क्या कर्तव्य है। उस को तो पता ही होगा कि उसके माँ-बाप नौकरी छोड़ सकते अगर वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाएँ। अगर वह पूरी तड़ा स्वतंत्र नहीं हो सकती तो उस को कम-से-कम थोड़ा हाथ-बटाना चहीये। कभी कभी हम, सब, ज्यादा स्वार्थी हो सकते हैं। माँ-बाप, बहन भाई, भूल जाते है कि दूसरे पे क्या बीत रही है। अगर हम इस का पालन करें तो शायद दुविधा ही पैदा नहीं होगी क्योंकि इस के पैदा होने से पहले ही बेटी माँ-बाप से कहेंगे १) आप ने मुझे बहुत सहाईता दीं है, मैंने स्वतंत्र होने का फैसला किया है। अगर मैं आप के नौकरी छोड़े के बाद कुछ कर सकती हूँ, तो बेफिकर बता दें। २) माँ, पापा, मैं जानती हूँ की आप ने बहुत पैसा दिया है। मैं पूरी कोशिश कर रहीं हूँ नौकरी ढूंड रहीं हूँ। थोड़ी देर तक मुझे आपसे पैसा चाहीयेगा। लेकिन मैंने यह कदम लिये है स्वतंत्र होने के लिये।
लेकिन यह भी है की अगर कोई परिवार वाला पूरी कोशिश कर रहा हो नौकरी खोजने मे, यह कुछ और करने मे, और आप के पास थोड़ा सा ज्यादा हो, तो देने मे क्या हानी? मैं तो कहूंगी कि आपका फ़र्ज़ बंता हैं। अगर आपके कुछ और ज़रते है, तो मैं नहीं कहूंगी की आपको अपने बच्चो को किसी ज़रूरी चीज़ से वंचित करो, लेकिन अगर उनको गाडी देने के बजाए अपने चिचेरे भाई के बेटे के स्कूल फीज़ भर सकते हो, तो क्यों नहीं! बच्चे को भी कुछ सीखने को मिलेगा। उनको यह जानकारी आएगी की परीवार को एक दुसरे का हाथ बटाना चहीये। मेरी एक गुजराती दोस्त ने बताया था की उनके यहाँ लड़की की शादी का खर्चा पूरी परीवार उठाती है। मैंने सोचा, वाह! शादी मे इतने खर्चे उठ ते हैं और अगर एक परिवार मे ५ भाई और बहनो के ५ बेटियाँ हो तो पूरा खर्चा ५ बार ५ मे बट जायेगा। और फिर परिवार मे एकता बनी रहेगी। सब को लगेगा की वह यह मेरे कलेजा के तोक्ड़े की शादी है।
भारतीय शादेयो मे एक और चीज़ भी है- दिखावा। इस से शादेया ज्यादा मेहेंगी होती हैं। और इस से लड़के वालों को भी यह संदेश मिल जाता है की इस के परिवार मे एकता है और यह सब इस लडकी से बहुत प्यार करते हैं।

Sunday, September 23, 2007

पढाई

आज, सच बताऊँ तो मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं किस विषे पर लिखूं। आधा मन कर रहा हैं की मई अमर अख़बार एंथोनी पर लिखूं--मैंने यह फिल्म पहली बार कल रात को देखी थी। एक और बात, डेत्रोईत शेर के शरम dayak हार। तीसरी बात, जो आज कल दुनिया मे मार-पिटाई चल रहा हैं।
लेकिन आज, नए साल की शुरुआत, विध्यार्तीयो के लिये पाठशाला मे नया साल ही असली नया साल है, मे मैं पढ़ाई के बारे मे लिखूंगी। एक बड़े ने एक बार मेरे से कहा, इस बात पर विचार करो की तुम किस के लिये पढ़ रहे हो। जब इन्होंने मेरे से यह बात करी थी, तो मैंने उनको कहा था, की कभी कभी मुझे लगता है की मैं इतनी महनत क्यों कर रहीं हूँ। मुझे इस महनत से क्या हासिल होगा? तो मुझे पढने का मशवरा देने के बजाए उन्होने मुझे अपने से सोच ने को कहा।
तो मैं उनको नमस्ते कहने के बाद चल दी। और उनके किये हुए सवाल पे सोचती गयी। मैंने णिरनय लिया की मैं अपने लिये पढ़ रही हूँ। मैं कर्तव्य पालन के लिये पढ़ रही हूँ। तो फल देख कर नहीं पढ़ूंन्गी। यह णिरनय मैं अपने साथ कोल्लेज ली हूँ। मुझे इस से बहुत सुख भी मिलता हैं- मैं जीं भर के पढ़ती हूँ। जैसे इस ब्लॉग। अगर मे "काफी" पर रुकना चाहती तो हफ्ते मे २ बार बहुत हैं। लेकिन, मई तो तकरीबन रोज़ लिख रहीं हूँ। मैं जानती हूँ की लिख ने से मेरी हिंदी सुधर जायेगी और इस मे मज़ा भी आता है--जब मुझे सूझता है की मैं किस विशे पर लिखू।
मैं हर विध्यार्ती से वोही सवाल करूंगी। अगर सिर्फ कमी के लिए पढ़ रहे हो, तो कुछ हासिल नहीं होगा। क्योंकि पहले हार मे तुम्हारा पढना छूट चयेगा। तुम निराश हो जाओगे। अपने लिये, कर्तव्य पालन के लिये पढ़ कर देखो। कितना सुख प्राप्त होगा!

Saturday, September 22, 2007

मिशिगन फुटबाल और प्रिया

मैं एक बात कबूल करती हूँ। इस साल तक मैं चाहती थी की मिशिगन हरे। सिर्फ फुटबाल मैं। लेकिन इस साल, सब के साथ मैंने चाहा की मिशिगन नोत्र दाम को हराए। और इस हफ्ते, मैं बड़ी व्याकुलता के साथ यह खेल देख रहीं हूँ। मेरा पहला गेम. अभी तीसरा क्वार्टर शुरू होने वाला ही है। ७-३। मैं बिल्कुल चाहती हूँ की मिशिगन जीते। तो सोच रही थी, यह बदलाव क्यों? फिर मैंने सोचा, की जबसे मैं छोटी थी-- मैं यहीं बड़ी हुई थी-- सब अकड़ते थे। मुझे लगता था की सब जादा घमंडी थे। तो मैं सोचती थी की अगर मिशिगन हारे, तो उन का घमंड तो कम होगा।
लेकिन इस साल, घमंड चला गया। इस साल लोगो को पता चला की मिशिगन भी हार सकती हैं। तो जब यह जानकारी आ गयी हैं! चल कमा के दिखा दे मिशिगन! कमाई मे ही सच्ची जीत है। अगर कम परिश्रम मे जीत मिले तो क्या सीखोगे? युनिवेर्सिती मे तो इन्होंने कुछ कमाना नहीं। आगे जाकर उनको हार के बाद वापिस आना होगा। तो अगर अभी सीखें तो वह जादा क्या बात हैं!
और जो दर्शक हैं, वह भी टीम के परिश्रम से कुछ सीखने को मिलेगा। घमंड बहुत बुरी चीज़ हैं।

जेना ६ और अमरीकन समाज

कल ब्लोग लिख ने के बाद मैंने थोडी देर के लिये जैना ६ पे विचार कीया। मैना और जांच कीया और देखा के इस केस मे सचमुच घोर अन्याय हुआ है। लुईज़ीयाना कानून के अनुसार सोलह साल के बच्चे को जुवेनायल न्यायाले मे होना चहीये, और उन्होने माईकल बैल को बडे के साथ डाल दिया। सब कह रहे है, की ६ ने जिस बच्चे को मारा उस को अस्पताल मे जान पड़ा। लेकीन यह बच्चा शाम तक पाठशाला के फुन्क्शन मे आया था। तो बैल को मारने के कोशिश के लिये कैसे दोषी टेहराया जा सकता है? और हम इन्सान का इरादा भी देख ते हैं। यह अप्राद जोश मे हुआ था, तो सज़ा को अप्राद के नाप से देना चहीये।

Friday, September 21, 2007

आज की दुर्घटना।

आज की दुर्घटना, अमरीका और हिंदुस्तान में भी एक भिन्नता हैं। अमरीका मे यह भिन्नता रंग के ऊपर निर्भर हैं। आज यह फिर साबित हुआ हैं। मुझे नहीं पता के आप मे से किसी ने जेना ६ का नाम सुना हैं। यह एक मामला है जिसने सारी देश को उत्तेजित किया है। दुःख की बात तो यह है की कई लोग इस केस का सही माईना नही समझते। आज ही मेरी एक दोस्त ने मुझ से कहा, की इस केस मे ख़ासियत क्या है? एक [अफ्रीकी-अमरीकन] बच्चे ने एक [गोरे] बच्चे को बहुत मारा, तो उस को तो जेल होना ही था ।" लेकिन इस केस के पीछे बहुत इतिहास हैं। यह तो सही है की ६ की ६ बच्चों ने एक गोरे को बहुत मारा है। एक बच्चे को इतना पीटा की इस को असपीताल मे भरती कराना पडा। तो इन बच्चे को सजा तो मिलनी ही चहीयेलेकिन सजा को सारे बातों को देख कर देनी चहीये। एक वृक्ष इस केस के जड़ हैं। एक वृक्ष जिसकी छाँव अफ्रीकी लोगो नहीं बैठ सकते। एक लड़के ने यह अपराध किया। उस के थोड़े दिन बाद , एक सरकफन्दा लगाया गया। बहुत लोग कहेंगे की तो क्या? लेकिन यह केस दक्षिण मे हुआ हैं। वहाँ पे बहुत लिंचिंग हुए हैं। तो यह सरकफन्दा सिर्फ एक सरकफन्दा नहीं था इन बच्चों के लिये। यह एक भयंकर दृश्य है। यह सरकफन्दा उनको विवशता याद दिलाती हैं। और अगर आप कभी अल्पसंख्यक लोगो मे से नहीं हुए हैं, तो आप यह विवशता और इस से पैदा हुए डर को नहीं समझ सकते।
यही आज नहीं है। कई लोग जो जादातार हमारे और उनके साथ होते, वह पूरी बात नहीं समझ रहे। वह यह नहीं सोच रहे, की माईकल बैल को जूवेनाय्ल न्यायाले मे क्यों नहीं भेजा गया। एक न्यायाधीश ने भी आज कहा है, की उस को जूवेनाय्ल न्यायाले मे भेज ना चाहए था।
एक और सबूत की यह केस के पीछे इतिहास है, जब कल लोग इस केस का विरोध कर रहे थे दो लोगो ने सरकफन्दा गाड़ी पे बाँध कर चला रहे थे।

Thursday, September 20, 2007

आज समाचारपत्रों में आया हैं की श्री लंका और भारत के बीच जो पुल हैं, जिसे आम तोड़ पे आदम्स पुल कहते हैं। हिंदुओं के लिये यह धार्मिक हैं, रामसेतू कहते हैं। उनका मानना है की श्री रामचन्द्रजी ने एक पुल बनाया था जब वह सीता माता को लंका से वानारो की सेना के साथ बच्चाने गाए थे। सरकार का प्रस्तावित परियोजना जो लंका और हिंदुस्तान के बीच यात्रा का समय कम करेगी, लेकीन, और इस बात को लेकर विरोध है, इस को करने के लिये रामसेतू तोडना परेगा।

लेकीन सब से आश्चर्य वाली बात तो है, की हिंदुस्तानी समाचारपत्र- हिंदुस्तान ताईम्ज़, और अमरीकन समाचारपत्र, ताईम्ज़, ने इस मामले को कितने फरक तरीके से पेश करा हैं। ताईम्ज़ मे लिखा है की सरकार ने इस घटना को बुरी तरेके से हैंडल कीया हैं । कीe मे लिखा है के कई हिंदु यूं पी ए सरकार से रूठे हुए हैं क्योंकि उनको लगता है की सरकार हिन्दुओ के धर्म के साथ खिलवार कर रहें हैं। हिंदुस्तान ताईम्ज़ मे सरकार की हम आलोचना हैं। इस से यह साबित होता है की दूसरे दुसरे देशो के पत्रिकाओं एक हे कहानी को अलग अलग रुप मे पेश करतें हैं। हिंदुस्तानी समाचार पत्रों जो भी लिख रहें हो, यह मामला, परमाणु समझौते के बाद सरकार के लिये बड़े ख़तरे की है। भारतीय जनता दल को अगले चुनाव जीतने का तरीका मिल गया। उन्होने जल्दी से इस मामले के साथ राजनीती खेलना शुरू keeya.

Wednesday, September 19, 2007

भ्रत्रू भाव

परिवार को नियम से चलना चाहीये। इस में सब से अहम और आसान हैं यह: छोटो से प्यार और बडों का आदार। यह दोनो को कर्तव्य देता है। छोटो को यह कर्तव्य देता हैं की वह badon।के आज्ञा का पालन करें, aur बडे को यह कर्तव्य की वह परीवार के हित में सोचे। इस का मतलब है की उनको यह कर्तव्य है की वह भविष्य का भी सोचे। उनको सिर्फ अपने ही नहीं, छोटो के हित का सोचना चहीये
ऐसे नीयम होने से परिवार में एक अनुशंसा बनी रहती हैं। कई कहेंगे की यह बहुत पुरानी रीत हैं। और परीवार के सदस्य को अपने मर्जी से जीने का हक होना चहीये। यह भी ठीक हैं। अगर बड़ा बुरी सोच वाला यह वाली हो तो छोटे का अधिकार और कर्तव्य बनता हैं की वह बडे के आज्ञा को अस्वीकार करें।
लेकीन बात मानने से कोइ छोटा नहीं हो जाता। बल्की फाईदा प्राप्त करते हैं। क्योंकि बडों को अनुभव होता है। उनको दुनियादारी की जानकारी होती है जो छोटे को नहीं होती। और अगर बड़ा छोटे से सच मुच प्यार कर्ता हो तो वह हमेशा हित मे बोलेगा/बोलेगी। आज के ज़माने मे कोइ किसी के सुनना नहीं चाहता। यह हम सब की बदकिस्मती हैं। हम कहाँ से कहाँ पहुंच जाते अगर हम इस आसान नियम का पालन करते। काश। काश। कईं। घर मे बडे आज्ञा देने के अधिकार का फाईदा उठाते हैं। कई छोटे जादा बिगाड़ जाते हैं। इन दोनो परिस्थितिyon को सुधारना होगा। फिर देखना हम कितनी तरकी करते हैं।

Tuesday, September 18, 2007

यह रेकोर्ड इतना अच्छा है और इतना आस्चर्यपुर्वक है क्योंकि तब तक डैन्मार्क ने नात्ज़ी आदेशों का पालन किया था।
तो बहुत लेकिन, जैसे प्रोफेसर लेनी यह्ल इस डैनिश कार्य का सम्मान करते हैं। लेकिन इस सम्मान मे दूसरे देश के वासीयों, जिन्होंने इतने लोगो को नहीं बचाया उन का निरादर है। क्योंकि इस प्रोफसर और दूसरो का कहना है की डैन्मार्क का नमूना साबित कर्ता हैं की अगर लोग चाह्ते थे तो वह भी सब लोगों को बचा सकते।
क्या उनका कर्तव्य था इन लोगो को बचाना? क्या हमारा कर्तव्य बनता है की हम दारफूर और दुसरे जगह जहाँ लोगो को मारा जा रहा हैं, उनको भी बचाए? यह सब हमको सोचना चाहीये। हमे यह भी याद रखना चाहीये की बचाने वाले अपने और अपने परीवार वालो के जानो को ख़तरे मे डाल रहे हैं। फिल्म मीराक्ल आट मिद्नाईत मे यह अच्छे से दिखाया है। उस परीवार की माँ को डर था की अगर उस का पत्ती उनके जूइश दोस्तो को छुपाता तो उनके बच्चो को मार दीया जाएगा। हम दारफूर मे मार-पीट को रोक सकते हैं, लेकिन हमे कुछ खोना होगा। मैं यह नहीं कह रही की हमारा कोइ कर्तव्य नहीं हैं। अगर कोइ हमारे सामने किसी को मर रहा हो, पोलीस को बुलाओ, और अगर लगता हैं की अपने जान को खतरा नहीं, तो भाग कर कुछ करो। लेकिन यह भी गलत है की हम दोसरे की आलोचना करें की वह अपने परीवार को पहले डाले।

प्राणी को कब विरोध करना चाहीये

मैं अभी थीसिस लिख रही हूँ, डैन्मार्क नात्ज़ी अधिकार के अंदर। इस थीसिस मैं एक प्रधान विषय है की लोगो को क्या करना चहीये था। हम उन से क्या उम्मीद कर सकते हैं। अगर किसी को नहीं पत्ता, तो नात्ज़ी चाहते थे की दुनिया के सारे यहूदी जाति के मनुष्य को मारना चाहते थे। डैनमार्क मे भी नात्ज़ी ने इन लोगो को मारना चाहा। लेकीन डेनिश लोगो ने यह होने नहीं दीया। उन्होनो जूइश लोगो को छुपा के फिर सुरक्षा के लिये स्वीडन पहुंचा दीया। डैनमार्क मे सब से ज़्यादा जूइश लोग बच्चे, ९/१०।

Monday, September 17, 2007

नेट: अच्छी यह बुरी

कई मुख्य इंसानों ने कहा है की इंटरनेट बुरी चीज़ है। आज सामाचारापत्रों मे आया है की चीन मे एक लड़का मर गया क्योंकि वह तीस घंटे बिन रुके इंटरनेट पे बैठा रहा। चीन में एक aspitaal सिर्फ इंटरनेट अदिक्ष्ण को सुझाते है। अमरीका मे भी यह समस्या आ रही है। मैं भी ९थ् क्लास मे ज़यादा कम्प्यूटर पे बैठ रही थी। कई बच्चे इतना इंटरनेट करते हैं की हत्या पे हत्या देखते हैं।समस्या इस मे है। कई हत्या इंटरनेट के कारण होती हैं। कोलुम्बाईं शूटीन्ग्ज़ का अभ्यास दोनो बच्चों ने नेट पर किया था। कई बच्चे मार-पीट को नेट पर देख कर इतना बिगाड़ जाते है की उनको फर्क ही नहीं पड़ता और फिर वह खुद करने लग जाते हैं। कई कहते हैं की यह बच्चे तो नेट के बिना भी बिगाड़ जाते क्योंकि असल मे गल्ती माँ-बाप की हैं, यह कोई और परिस्थिति । मैं यह बताती हूँ की नेट से इन को जानकारी मिलती हैं। उनको पता चलता है की बारूद कहाँ से खरीदे। उन को दोस्त भी मिलते हैं। अमरीकन समाचारपत्र ने रिपोर्ट ग्रज किया था की आतंकवादी, वह लोग जो जातिवाद के कारण लोगो को सताते हैं, उनको एक सहारा मिल जाता हैं क्योंकि नेट पे उनको और लोग मिल जाते हैं जो उनके विचारों से सहमत हैं।
लेकिन नेट से हम लाभ भी उठाते हैं। मेरे कई परिवार वाले भारत, ऑस्ट्रेलीया, और पश्चिमी और पूर्वी अमरीका मे रहते हैं। और मेरे पुराने दोस्तों भी दूर रहते हैं। नेट से मैं उनसे कम दाम मे और आसानी से बात कर सकती हूँ। नेट से मैं किसी भी चीज़ पर अन्वेषण कर सकते हैं। इस से हम आसानी से लोगो से बात कर सकते हैं।
तो इस के बुरे परिनामो का क्या करे? मेरा जवाब है की माता और पिता को बच्चे को ध्यान रखना चहीये की उनके बच्चे नेट पर कितना जा रहे हैं। फिर जब बडे हो जाएँ तो उनको ठीक उपयोग की आदत पडी होगी। आज भी डांक्टर के पास जाओ तो वह पूछ ते हैं, की तुम नेट पे कितना बैठते हो। तो यह और करें, अगर दोस्तो को पता चले की उनका मित्र ज़्यादा बैठ रहा हैं नेट पर, तो उनको उस से बात करना चहीये। पुलिस को पैसे और लोगो नेट पे नज़र रखने के लिये देना चहीये.

Sunday, September 16, 2007

सुच्ची हेलन की दुविधा

हेलन ऑफ़ स्पर्ता/तरोई की कहानी बड़ी दुखभरी है। हेलन के माता पिता ने उसकी शादी मेनेलौस के साथ करवा दीं थी। और आगे क्या हुआ, वह कहानी कहानी में फर्क हैं। हम आज वुल्फ्गांग पेतेर्सों का बनाई हुई और होमेर के कहानियो से काम करेंगे। फिल्म में हेलन बिल्कुल मेनेलौस से प्यार नहीं करती थी और वह उस से बिल्कुल प्यार नहीं कर्ता था। फिर पेरिस स्पर्ता आया। वह उस से बहुत प्यार कर्ता था। लेकिन वह नादान था। हेलन जानती थी पेरिस के साथ जाने का परिणाम-- उस का पाती और पाती का भाई तरोई को विध्वंस कर डालेंगे। लेकिन फिर भी हेलन उस के साथ गयी।
लेकिन क्या उस ने सच मे गलत किया? क्या उस को ख़ुशी खोजने का अधिकार नहीं है?मैं बिल्कुल नहीं कह रही की जो हुआ वह पूरी तरह हेलन की गलती हैं, इस मे पेरिस का भी हाथ हैं। लेकिन, जैसे वुल्फ्गंगेंग ने स्पार्ष कीया हैं, हेलन को ज़्यादा अनुभव था। वह यह जानती भी थी। वह पेरिस को कहती भी थी "तुम बहुत नादान हो, मेरे प्यार।" इस लिये जो हुआ ज्यादा हेलन की गलती हैं।होमर मे बात कुछ और है।
होमर ने लिखा की पेरिस को वरदान मिल था की हेलन उस से प्यार करेगी। तो इस कहानी मे वह कुछ गलत नहीं करती। यह उस की पडा को और दुखदायी बनाती हैं। लेकिन फिर भी, होमर में यह प्रशन उठ ता है की सब हेलन को वस्तु बनाते हैं। मेनेलौस को वरदान के बारे मे कुछ नहीं पता। तो जहाँ तक वह जानता हैं, हेलन अपने मर्ज़ी से पेरिस के साथ गयी हैं। तो उस को हेलन के मर्ज़ी का कद्र करना चाहिऐ था। तो इस कहानी मे पहले पेरिस ने उस को वस्तु बनाया, फिर मेनेलौस ने। और उस को ज़िंदगी भर लोगो का कहना सुनना पड़ा क्योंकि और कोई वरदान का राज़ नहीं मालूम।

हेलन की दिविधा

हेलन ऑफ़ स्पर्ता/तरोई की कहानी बड़ी दुखभरी है। हेलन के माता पिता ने उसकी शादी मेनेलौस के साथ करवा दीं थी। और आगे क्या हुआ, वह कहानी कहानी में फर्क हैं। हम आज वुल्फ्गांग पेतेर्सों का बनाई हुई और होमेर के कहानियो से काम करेंगे। फिल्म में हेलन बिल्कुल मेनेलौस से प्यार नहीं करती थी और वह उस से बिल्कुल प्यार नहीं कर्ता था। फिर पेरिस स्पर्ता आया। वह उस से बहुत प्यार कर्ता था। लेकिन वह नादान था। हेलन जानती थी पेरिस के साथ जाने का परिणाम-- उस का पाती और पाती का भाई तरोई को विध्वंस कर डालेंगे। लेकिन फिर भी हेलन उस के साथ गयी।
लेकिन क्या उस ने सच मे गलत किया? क्या उस को ख़ुशी खोजने का आधिकार नहीं है?
मैं बिल्कुल नहीं कह रही की जो हुआ वह पूरी तरह हेलन की गलती हैं, इस मे पेरिस का भी हाथ हैं। लेकिन, जैसे वुल्फ्गंगेंग ने स्पर्श कीया हैं, हेलन को ज़्यादा अनुभव था। वह यह जानती भी थी। वह पेरिस को कहती भी थी "तुम बहुत नादान हो, मेरे प्यार।" इस लिये जो हुआ ज्यादा हेलन की गलती हैं।
होमर मे बात कुछ और है। होमर ने लिखा की पेरिस को वरदान मिल था की हेलन उस से प्यार करेगी। तो इस कहानी मे वह कुछ गलत नहीं करती। यह उस की पडा को और दुखदायक बनाती हैं। लेकिन फिर भी, होमर में यह प्रशन उठ ता है की सब हेलन को वस्तु बनाते हैं। मेनेलौस को वरदान के बारे मे कुछ नहीं पता। तो जहाँ तक वह जानता हैं, हेलन अपने मर्जी से पेरिस के साथ गयी हैं। तो उस को हेलन के मर्जी का आदर करना चाहिऐ था। तो इस कहानी मे पहले पेरिस ने उस को वस्तु बनाया, फिर मेनेलौस ने। और उस को ज़िन्दगी भर लोगो का कहना सुनना पड़ा क्योंकी और कोइ वरदान का राज़ नहीं मालूम।

Saturday, September 15, 2007

देश प्रेम

हम देसी जो इस देश में पैदा हुए है, और यहीं रहते हैं, उनको यह दुविधा काफी सताती है की वह दोनो भारत और अमरीका के अच्छे नागरिक कैसे बने? पहले जब मैं छोटी थी मेरा सुझाव आसान था। तब मैं सोचती थी की मैं बड़ी हो कर हिंदुस्तान चली जाऊंगी लेकीन जब मैं बड़ी हुई तो में सच में दो देशों की नागरिक बनी। कही लोग कहते है की दो देशों का नागरिक होना असंभव है। लेकिन मई कहती हूँ की मैं तो रोज़ दो देशों की नागरिक बनके दिखाती हूँ। मैं अमरीका मै रहती हूँ, तो इस देश के प्रती मेरा कर्तव्य ज़्यादा हैं। लेकिन मैं हिंदुस्तान से बहक प्रेम करती हूँ। मुझे लगता है की मेरी संस्कृति मेरी धरोहर है। मुझे जो चीज़ विशेष और अच्छा इन्सान बनाती है वह है मेरा धर्म और मेरे संस्कार। मेरी संस्कृति मुझे बड़े का आद्र और छोटे के लिए प्यार। मुझे सिखाता है की मैं मन लगा के पढाई करूँ। यह सब तो खूब है लेकिन इस से यह नही साबित होता की कैसे नागरिक का कर्तव्य दो देशों के प्रती निभाया जाए।मेरा जवाब है की अनजाने मे हम सब बहुत देशों के नागरिक है। तो यह दुविधा अकेली मेरी नहीं हैं बलकी हम सब की है। और हम सब को मानव धर्म का पालन करना है। जो भी गलत निरने "हमारा" देश लेती है, हमे उसका विरोध करना है। हमे सत्य का साथ लेना और देना है । तो जो भी मेरे से पूछता है की मैं दो देशों को प्रेम कैसे कर सकती हूँ। मैं दोनो के दीएहुए संस्कार, अमरीका ने मुझे जीत ना और कमाना सिखाया है और भारत ने मुझे संस्कृति दीं है। में इन दोनो चीजों का कदर करती हूँ। और जहाँ तक दोनो देशों के णिराने और मेरा कर्तव्य का सवाल है, हर परिसथिथी मे मेरा जवाब अलग है क्योंकि मैं एक तरफी फैसला नही करती, बलकी यह सोचने की कोशिश करती हूँ की सत्य किस पक्ष मे है।

Tuesday, September 11, 2007

फिल्मों के असर को पहचानो

मैंने इस से पहले 2 पोस्ट मे लिखा था की औरतों को जिस तरह कई फ़िल्मो, खासकर नए फ़िल्मो, मे पेश किया जाता है, वह समाज के लिए हानीकारिक है। तो इन परिस्थिथीयो मे क्या किया जा सकता है? मेरा जवाब है की कभी फिल्म को सिर्फ मनोरंजन का साधन मत देखो। खासकर अगर यह फिल्म आपके परिवार को बहुत ब्हा जाए जिस के कारण आप इसे बार बार देखेंगे। क्योंकि बार बार देखने से फिल्म का जो मैसेज है वह मन मे ज़ादा समाँ जाता है। इस लिये, मैं फिर से कह रही हूँ, खासकर अगर वह बच्चे हो--जिस ने भी बच्चे पाले हो वह बता सकता है की छोटे एक बार एक फिल्म को पसंद कर ले वह यह फिल्म रोंज देखते हैं--उन को बता ना चाहीये की औरतों का प्रदर्शन उनका रुप इस फिल्म मे ठीक नही हैं। यह तब भी करना चहीये अगर वह लड़के हो। क्योंकि बात सिर्फ लड़की कि नहीं है, अगर लड़के सोचते है की उनके बीबी को एक तरीके से रहना चाहिये तो वह यही चाहेंगे।और बलादकार का एक कारण है की लड़के सोच ते है की लड़कियाँ हमेशा तन का रिश्ते बनने के लिये ना करेंगी लेकिन, वह अंदर से चाहती है। और पे और वह सोच ने लगता है की लड़की का ना कुछ मआईना नही रखता। और यह गलत है, बिल्कुल गलत। इस समस्या का समाधान है की हम इस पे ध्यान रखे की बच्चे खासकर जब वह छोटे होते है कि वह क्या देख रहे हैं और क्या सोच रहे है। कम परीवारे पुरी तरा से फिल्म दिखाना बंद कर सकते है। यह एक आसान तरीका है आराम करने के लिए और बच्चे पे ध्यान रखने के लिये। तो कम फिल्म दिखाए और सब से जरूरी--बच्चे पे फिल्म का अससर समझो, पहचाने, और कुछ करो।

फिल्मो को किस नज़र से देखना चाहिऐ

मैंने इस से पहले 2 पोस्ट मे लिखा था की औरतो को जिस तरह कई फिल्मो, खासकर नए फिल्मो, मे पेश किया जाता है, वह समाज के लिए हानिकारिक है। तो इन परिस्थिथियो मे क्या किया जा सकता है? मेरा जवाब है की कभी फिल्म को सिर्फ मनोरंजन का साधन मत देखो। खासकर अगर यह फिल्म आपके परिवार को बहुत भा जाये जिस के कारण आप इसे बार बार देखेंगे। क्योंकि बार बार देखने से फिल्म का जो मैस्सेज है वह मन मे जादा समां जता है। इस लिये, मैं फिर से कह रही हूँ, खासकर अगर वह बच्चे हो--जिस ने भी बच्चे पाल्ले हो वह बता सकता है की छोटे एक बार एक फिल्म को पसंद कर ले वह यह फिल्म रोज देखते हैं--उन को बता ना चाहिऐ की औरतो का प्रदर्शन उनका रुप इस फिल्म मे ठीक नही हैं। यह तब भी करना चाहिऐ अगर वह लड़के हो। क्योंकि बात सिर्फ लडकी कि नहीं है, अगर लड़के सोच ते है की उनके बीबी को एक तरीके से रहना चाहीये तो वह यही चाहेंगे।
और बलाद्कर का एक कारण है की लड़के सोच ते है की लडकिया हमेशा तन का रिश्ते बनने के लिये ना करेंगी लेकिन, वह अन्दर से चाहती है। और पे और वह सोच ने लगता है की लडकी का ना कुछ माईना नही रखता। और यह गलत है, बिल्कुल गलत। इस समस्या का समाधान है की हम इस पे ध्यान रखे की बच्चे खासकर जब वह छोटे होते है कि वह क्या देख रहे हैं और क्या सोच रहे है। कम परीवारे पुरी तरा से फिल्म दिखाना बंद कर सकते है। यह एक आसान तरीका है आराम करने के लिए और बच्चे पे ध्यान रखने के लीये। तो कम फिल्म दिखाओ और सब से जरूरी--बच्चे पे फिल्म का अस्सर समझो, पहचानो, और कुछ करो।

Sunday, September 9, 2007

बोल्लीवूद और औरत भाग २

फिल्मो मे जैसे औरतों को पेश करते हैं इस का अस्सर आम आदमी पर पड़ता हैं। आज के जमाने में औरतो को घर की इज़्ज़त के रुप मे। इस से औरतो को लग ता है को उनके भी ऐसे बनना चाहिऐ। अगर आप इस को गलत समझ ते हैं, तो रेडिफ के मुताबिक धूम के आगमन के बाद लोग यश छोप्रा के धूम को बच्चे के किये हुए चोरियों के लिए कसुर्वर क्यो तहेराया गया। इस असर के कारण हमे सोच समझ कर फिल्म बनाना और सब से जरूरी, देखना दिखाना चाहिऐ।
आज कल हम, जैसे बोल्ल्य्वूद और समाज भाग एक मे लिखा था, औरतो को दुर्बल रुप मे पेश कर रहे हैं। अंग्रेजी में जिसे 'दम्ज्ल इन दिस्त्रेस' रुप कहते हैं। लेकिन पहेले कई फिल्म में ऐस्सा नही होता था। यश चोपडा, जिस के बेटे आदित्या चोपडा ने दिलवाले बनाया था, उस ने कभी कभी बनाया था। यह फिल्म ने बहुत पैसा बनाया। और इस मे अमिताब बच्चन, एक मर्द, ने लडकी जैसे काम कीया, उस ने खोये हुए प्यार के कारन अपनी ज़िंदगी बर्बाद किया। इस के इलावा उस ने भावुकता से काम कीया जब उस को पता चल्ला की उस की पत्नी शादी से पहले माँ बनी थी। इस फिल्म मे नीतू सिंह शक्तीशाली थी। उस ने अपने फैसले खुद किये और यह भी अपने प्यार, ऋषि कपूर के खिलाफ, माता पिता के खिलाफ जा कर। उस ने जिमिदारी भी खुद उठाई। राखी भी शक्तीशाली थी। जहाँ उसका पहला प्यार भावना से हार रहा था, राखी नए ज़िन्दगी मे खुश थी।
यश चोपडा का इससे फिल्म बनाना और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह, लम्हे और अपने पहले फिल्म को घटा कर, लोगो के मनारंजन के लिए फिल्म बनने का दावा किया है। तो वह ऎसी फिल्म नही बनाएगा जिस से जनता ग़ुस्सा होगी। इस का मतलब है की यह रुप लोगो को ठीक लगा था।
एक और फिल्म है राम लखन। इस मे राखी ने अपने बेटे को लड़ाई के लिए बड़ा किया। वह खुद भी अन्याय के खिलाफ लड़ी। उस ने अपने बेटे को मजबूत बनाया और प्रतिज्ञा खाई। लेकिन सबसे आश्चर्य दिम्प्ले कपाडिया और माधुरी दिक्षित् के कहानी मे भाग का था। जहाँ आज के लड़कियों मर्द का इन्तीज़र करती हैं उनको बचाने के लीये दिम्प्ले और राखी बंदूक उठाके दुश्मन का सामना करते हैं. यहाँ तक की कहा जा सकता है की उन्होने अनिल कपूर को बचाया। यह बहादुरी पे मे नाज़ करती हूँ। यह लड़कियों को परस्थिथियो का सामना करना सिखाती हैं। डिम्पल जैकी को टोक ते है और अपना आवाज़ दब ने नही देती। यही औरतो को करना चाहिऐ, अपना सलाह देना चाहिऐ और अगर उनको लग ता है की कोई दोस्त यह परीवार वाला गलत काम कर रहा हो, तो उनको टोक ना चाहीये।
आज कल kaee बच्चो को संस्कार फिल्मो तेलीविज़ुनसे ही मिलते हैं. तो हमारी ज़िमिदारी है की हम सोचे की हम क्या लोगो को क्या सीखा रहे हैं।

Saturday, September 8, 2007

बोल्ल्य्वूद और महीले

कई साल पहले मैंने समाचार पत्र मे पढा था की बोलीवुद ने महीलो के साथ बड़ी नाइंसाफी की है। निर्देशकों महिलो को दुर्बल घर संभालने वाली सुन्दर सजावटी पेश करते हैं। आश्चर्य वाली बात तो यह है कि यह रुप औरत का १९९०स् के बाद ज़ीयादा हुआ हैं। इस से पहले ८०स् में औरतों को शक्तिशाली स्वतंत्र दिखाते हैं। यह तो सच है की अब कई दईरेक्टोर्स महीलो के दुर्दशा पे लज्जा जैसे फिल्मे बनारहे हैं। लेकिन, जादातर निर्देशकऐसे फिल्म बना रहे है, प्रेम कहानीया जिस मे औरत का लक्ष्य लड़को से शादी होता है। शादी के बाद, अगर उनका पहले भी कोई नौकरी थी तो वह छोड़ देते। एतराज़ में प्रिया मल्होत्रा शादी से पहले नौकरी के तलाश में है। उसके पापा कहते भी हैं की डिग्री कर ली, अब काम क्या करना। वह कहती हैं, कि थोड़ा अनुभव चाहिये । लेकीन, फिर वह शादी करती है, और सब छोड़ देती हैं। कभी ख़ुशी कभी घम मे भी जया बच्चन भी पत्ती के एक शब्द पे चुप हो जाती हैं। और पे और दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे मे सिमरन राज से शादी करना चाहती हैं। अपने ज़िंदगी की ज़िमिदारी लेने का बजाय राज का इंतजार करती हैं। इस के अलावा और भी कही फिल्मी क्षणों हैं।
और श्याम को।

Friday, September 7, 2007

में माफी चाहती हूँ, जो पोस्ट मैंने कल लिखा था वह मिल नही रहा। शायद मिटाया गया

बोल्लीवूद और समाज

वैज्ञानिक कहते हैं की एक देश को देमोक्रसी तब ही कह्लासक्ती है जब उन्के न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट संसद के निर्णयों को नामंज़ूर करते हैं। जब धनी लोगो और नेताओं के दोस्तों को भी जेल होती है। यही इस साल हिंदुस्तान मे हुआ हैं। सुन्जय दत्त, एम पी प्रिया दत्त का भाई, को टाडा कोर्ट ने आतंकवाद के आरोपों से बेकसूर टेहराया लेकिन बंधुको के आरापों और ऐसे छोटे आरोपों पर कसूरवार ठेराया हैं। इन के कारन उस को ५ वर्ष कड़ी सजा हुई है। इस कैस मे पहले शायद हेरा फेरी हुई है, लेकिन अभी लगता है की भारतीय न्यायाकर्ताओ चाहते हैं की उन पे कोइ भ्रष्टाचार का आरोप ना लगा सके। तो टाडा का न्यायाकर्ता कहता है की संजय दत्त आतंकवादी नहीं है। यह कह कर न्यायकर्ता यह बतलाता है की वह प्रैस नहीं ले रहा। क्योंकी अगर वह अपना नाम बढ़ाना चाहता था तो वह कड़ी सजा देते हुए संजय को टोक ता।
मुझे लग ता है की संजय को दीं हुई सजा जादा कड़ी है। लेकिन मैं चाहती हूँ की एक और स्टार को जेल हो- सलमान खान। जहा दत्त ने एक बार गलती की और सब, न्यायकर्ता भी, कहते हैं की उसको अपने गलतीयों का एहसास हुआ हे, खान गल्तीया कर्ता रहता है। मैं समाचार पत्रों में देख देख कर तंग हो गयी हूँ की सलमान ने किसी को मारा हैं, किसी कानून को तोड़ा हैं।
डेमोक्रेसी को साबित करने के लिए संजय दत्त को बेवजे जेल नही देना चाहिऐ। इस के लिए सलमान खान को जेल दे दो। और आम आदमीयों के केसिस को भी जल्दी जल्दी सुन के करवाई करना चाहिऐ.