Saturday, September 8, 2007

बोल्ल्य्वूद और महीले

कई साल पहले मैंने समाचार पत्र मे पढा था की बोलीवुद ने महीलो के साथ बड़ी नाइंसाफी की है। निर्देशकों महिलो को दुर्बल घर संभालने वाली सुन्दर सजावटी पेश करते हैं। आश्चर्य वाली बात तो यह है कि यह रुप औरत का १९९०स् के बाद ज़ीयादा हुआ हैं। इस से पहले ८०स् में औरतों को शक्तिशाली स्वतंत्र दिखाते हैं। यह तो सच है की अब कई दईरेक्टोर्स महीलो के दुर्दशा पे लज्जा जैसे फिल्मे बनारहे हैं। लेकिन, जादातर निर्देशकऐसे फिल्म बना रहे है, प्रेम कहानीया जिस मे औरत का लक्ष्य लड़को से शादी होता है। शादी के बाद, अगर उनका पहले भी कोई नौकरी थी तो वह छोड़ देते। एतराज़ में प्रिया मल्होत्रा शादी से पहले नौकरी के तलाश में है। उसके पापा कहते भी हैं की डिग्री कर ली, अब काम क्या करना। वह कहती हैं, कि थोड़ा अनुभव चाहिये । लेकीन, फिर वह शादी करती है, और सब छोड़ देती हैं। कभी ख़ुशी कभी घम मे भी जया बच्चन भी पत्ती के एक शब्द पे चुप हो जाती हैं। और पे और दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे मे सिमरन राज से शादी करना चाहती हैं। अपने ज़िंदगी की ज़िमिदारी लेने का बजाय राज का इंतजार करती हैं। इस के अलावा और भी कही फिल्मी क्षणों हैं।
और श्याम को।

1 comment:

सहज साहित्य said...

प्रिय बेटी,
तुम्हारा प्रयास अच्छा है ।कर्म करते रहना उन्नति होगी ही।
मेरा ब्लाग एवं साइट देखना-
wwwsamvedan.blogspot.com
www.laghukatha.com