Tuesday, September 11, 2007

फिल्मो को किस नज़र से देखना चाहिऐ

मैंने इस से पहले 2 पोस्ट मे लिखा था की औरतो को जिस तरह कई फिल्मो, खासकर नए फिल्मो, मे पेश किया जाता है, वह समाज के लिए हानिकारिक है। तो इन परिस्थिथियो मे क्या किया जा सकता है? मेरा जवाब है की कभी फिल्म को सिर्फ मनोरंजन का साधन मत देखो। खासकर अगर यह फिल्म आपके परिवार को बहुत भा जाये जिस के कारण आप इसे बार बार देखेंगे। क्योंकि बार बार देखने से फिल्म का जो मैस्सेज है वह मन मे जादा समां जता है। इस लिये, मैं फिर से कह रही हूँ, खासकर अगर वह बच्चे हो--जिस ने भी बच्चे पाल्ले हो वह बता सकता है की छोटे एक बार एक फिल्म को पसंद कर ले वह यह फिल्म रोज देखते हैं--उन को बता ना चाहिऐ की औरतो का प्रदर्शन उनका रुप इस फिल्म मे ठीक नही हैं। यह तब भी करना चाहिऐ अगर वह लड़के हो। क्योंकि बात सिर्फ लडकी कि नहीं है, अगर लड़के सोच ते है की उनके बीबी को एक तरीके से रहना चाहीये तो वह यही चाहेंगे।
और बलाद्कर का एक कारण है की लड़के सोच ते है की लडकिया हमेशा तन का रिश्ते बनने के लिये ना करेंगी लेकिन, वह अन्दर से चाहती है। और पे और वह सोच ने लगता है की लडकी का ना कुछ माईना नही रखता। और यह गलत है, बिल्कुल गलत। इस समस्या का समाधान है की हम इस पे ध्यान रखे की बच्चे खासकर जब वह छोटे होते है कि वह क्या देख रहे हैं और क्या सोच रहे है। कम परीवारे पुरी तरा से फिल्म दिखाना बंद कर सकते है। यह एक आसान तरीका है आराम करने के लिए और बच्चे पे ध्यान रखने के लीये। तो कम फिल्म दिखाओ और सब से जरूरी--बच्चे पे फिल्म का अस्सर समझो, पहचानो, और कुछ करो।

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