Wednesday, September 26, 2007

हम किस चीज़े को कीमती समझ ते हैं।

आज मैंने एक राल्ली मे भाग लिए। मैं लघ-बघ कभी नहीं क्लास को बंक करती हूँ। लेकिन अंदर से आवाज़ आयी की इस बार तू जा! तो मैंने प्रोफेसर से पूछा की मैं जाऊँ। उनके हां के बाद मे गयी। और जाने के बाद मुझे पता चला की क्यों मुझे बहुत लग रहा था कि मुझे जान चहीये। एक सहपाठी, जिसे आप "कृष" कह ली जीए। उस ने इस राल्ली मे बहुत मेहनत और समय लगाया। उस ने हमसे कहाँ, मैं तो उपाधि प्राप्त करने वाला हूँ। तो यह जो संसद आपके फीज़ बढ़ाने की बात कर रहा है, मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, तो आप फैसला करे की आपको कितना फर्क पड़्ता है-- यूनिवर्सिटी के लोगो ने कहाँ हैं कि उनको अगर पैसा नहीं मिलता तो हमको कम से कम एक हज़ार डॉलर और देने पड़ेंगे।
लेकिन हम सब देख रहे थे की इस बच्चे की जान इस मे थी। और जैसे हम जा रहे थे हम को मालूम हुआ की बहुत लोगो के लिये यह अहम हैं। एक लड़का हम सब तो कह रहा था, पत्रिका देकर, की यह राल्ली से जो पैसा हम इकत्रित करने की कोशिश कर रहें है वो सिर्फ कर्मचारियों को मिलेगा, हम को नहीं। वहाँ पर पहुंच कर मैंने एक आदमी से वाद-विवाद करी। वह मुझे कह रहा था की हम टैक्स क्यों देते हैं? समाज और सरकार का कोई हक नहीं बनता की टैक्स के जरिए वह पाठशालाओं को पैसे दे। इस वाद-विवाद मे हमने ज्यादा कुछ हासिल नहीं किये। मैं अपनी बात पर अटकी रही, और वह अपने पे। लेकिन इस से पता चला के ऐसे राल्लीयों मे कुछ तो दाओं पर लगा होता हैं। हमारे असूलों। जेना मे जो निर्णे हुआ हैं, उसके विरोध जो आकर्षण हुआ हे, उस मे कोइ मारा-मारी नहीं हुई। उस से कुछ साबित हुआ। की हम, आम बच्चे, संसद के निर्णे के विरोध मे आए इस से भी कुछ साबित हुआ, के सिर्फ छोटे संख्या के लोग दंगा करने नहीं आए।
और वह लड़के, वह सहपाटी ने हम सब की बोलती बंद कर दीं। उस ने बताया की उस के बाप कैसे मरे, उन्होने सुब कुछ फीज़ मे दाल दीया। यहाँ तक की स्वस्थीया- बीमा नहीं लीया ताके वह फीज़ भर सके, और फिर वह फेफड़ा का केकड़ा हो गया, और उनका दिहांत हो गया। और मरते दम तुक उसने अपने बेटे को कहा, तुम्हारी एदुकाशन सब से ज़रूरी हैं। इस से भी हम सब को याद आया की हम क्या करने आये हैं। हम किन किन के लिए लड़ने आये हैं। इस ही के बाद मैंने उस आदम से वाद-विवाद शुरू किया। मैंने कहाँ, मैं सिर्फ सुन ने नहीं आयी हूँ। मैं कुछ करने, कुछ दिखने आयी हूँ।

2 comments:

अनिल रघुराज said...

प्रिया जी कहां की हैं आप? बड़ा अशुद्ध लिखती हैं। इस चक्कर में अच्छा लिखती हैं कि नहीं, इस पर ध्यान ही नहीं गया।

Priya said...

aapke tippaNee ke liye dhanyavaad. Main US me rahtee hun. Is blog se main apnee Hindi ko bahatar karne kee koshish kar raheen hun.