फिल्मो मे जैसे औरतों को पेश करते हैं इस का अस्सर आम आदमी पर पड़ता हैं। आज के जमाने में औरतो को घर की इज़्ज़त के रुप मे। इस से औरतो को लग ता है को उनके भी ऐसे बनना चाहिऐ। अगर आप इस को गलत समझ ते हैं, तो रेडिफ के मुताबिक धूम के आगमन के बाद लोग यश छोप्रा के धूम को बच्चे के किये हुए चोरियों के लिए कसुर्वर क्यो तहेराया गया। इस असर के कारण हमे सोच समझ कर फिल्म बनाना और सब से जरूरी, देखना दिखाना चाहिऐ।
आज कल हम, जैसे बोल्ल्य्वूद और समाज भाग एक मे लिखा था, औरतो को दुर्बल रुप मे पेश कर रहे हैं। अंग्रेजी में जिसे 'दम्ज्ल इन दिस्त्रेस' रुप कहते हैं। लेकिन पहेले कई फिल्म में ऐस्सा नही होता था। यश चोपडा, जिस के बेटे आदित्या चोपडा ने दिलवाले बनाया था, उस ने कभी कभी बनाया था। यह फिल्म ने बहुत पैसा बनाया। और इस मे अमिताब बच्चन, एक मर्द, ने लडकी जैसे काम कीया, उस ने खोये हुए प्यार के कारन अपनी ज़िंदगी बर्बाद किया। इस के इलावा उस ने भावुकता से काम कीया जब उस को पता चल्ला की उस की पत्नी शादी से पहले माँ बनी थी। इस फिल्म मे नीतू सिंह शक्तीशाली थी। उस ने अपने फैसले खुद किये और यह भी अपने प्यार, ऋषि कपूर के खिलाफ, माता पिता के खिलाफ जा कर। उस ने जिमिदारी भी खुद उठाई। राखी भी शक्तीशाली थी। जहाँ उसका पहला प्यार भावना से हार रहा था, राखी नए ज़िन्दगी मे खुश थी।
यश चोपडा का इससे फिल्म बनाना और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह, लम्हे और अपने पहले फिल्म को घटा कर, लोगो के मनारंजन के लिए फिल्म बनने का दावा किया है। तो वह ऎसी फिल्म नही बनाएगा जिस से जनता ग़ुस्सा होगी। इस का मतलब है की यह रुप लोगो को ठीक लगा था।
एक और फिल्म है राम लखन। इस मे राखी ने अपने बेटे को लड़ाई के लिए बड़ा किया। वह खुद भी अन्याय के खिलाफ लड़ी। उस ने अपने बेटे को मजबूत बनाया और प्रतिज्ञा खाई। लेकिन सबसे आश्चर्य दिम्प्ले कपाडिया और माधुरी दिक्षित् के कहानी मे भाग का था। जहाँ आज के लड़कियों मर्द का इन्तीज़र करती हैं उनको बचाने के लीये दिम्प्ले और राखी बंदूक उठाके दुश्मन का सामना करते हैं. यहाँ तक की कहा जा सकता है की उन्होने अनिल कपूर को बचाया। यह बहादुरी पे मे नाज़ करती हूँ। यह लड़कियों को परस्थिथियो का सामना करना सिखाती हैं। डिम्पल जैकी को टोक ते है और अपना आवाज़ दब ने नही देती। यही औरतो को करना चाहिऐ, अपना सलाह देना चाहिऐ और अगर उनको लग ता है की कोई दोस्त यह परीवार वाला गलत काम कर रहा हो, तो उनको टोक ना चाहीये।
आज कल kaee बच्चो को संस्कार फिल्मो तेलीविज़ुनसे ही मिलते हैं. तो हमारी ज़िमिदारी है की हम सोचे की हम क्या लोगो को क्या सीखा रहे हैं।
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