Wednesday, September 19, 2007

भ्रत्रू भाव

परिवार को नियम से चलना चाहीये। इस में सब से अहम और आसान हैं यह: छोटो से प्यार और बडों का आदार। यह दोनो को कर्तव्य देता है। छोटो को यह कर्तव्य देता हैं की वह badon।के आज्ञा का पालन करें, aur बडे को यह कर्तव्य की वह परीवार के हित में सोचे। इस का मतलब है की उनको यह कर्तव्य है की वह भविष्य का भी सोचे। उनको सिर्फ अपने ही नहीं, छोटो के हित का सोचना चहीये
ऐसे नीयम होने से परिवार में एक अनुशंसा बनी रहती हैं। कई कहेंगे की यह बहुत पुरानी रीत हैं। और परीवार के सदस्य को अपने मर्जी से जीने का हक होना चहीये। यह भी ठीक हैं। अगर बड़ा बुरी सोच वाला यह वाली हो तो छोटे का अधिकार और कर्तव्य बनता हैं की वह बडे के आज्ञा को अस्वीकार करें।
लेकीन बात मानने से कोइ छोटा नहीं हो जाता। बल्की फाईदा प्राप्त करते हैं। क्योंकि बडों को अनुभव होता है। उनको दुनियादारी की जानकारी होती है जो छोटे को नहीं होती। और अगर बड़ा छोटे से सच मुच प्यार कर्ता हो तो वह हमेशा हित मे बोलेगा/बोलेगी। आज के ज़माने मे कोइ किसी के सुनना नहीं चाहता। यह हम सब की बदकिस्मती हैं। हम कहाँ से कहाँ पहुंच जाते अगर हम इस आसान नियम का पालन करते। काश। काश। कईं। घर मे बडे आज्ञा देने के अधिकार का फाईदा उठाते हैं। कई छोटे जादा बिगाड़ जाते हैं। इन दोनो परिस्थितिyon को सुधारना होगा। फिर देखना हम कितनी तरकी करते हैं।

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