यह रेकोर्ड इतना अच्छा है और इतना आस्चर्यपुर्वक है क्योंकि तब तक डैन्मार्क ने नात्ज़ी आदेशों का पालन किया था।
तो बहुत लेकिन, जैसे प्रोफेसर लेनी यह्ल इस डैनिश कार्य का सम्मान करते हैं। लेकिन इस सम्मान मे दूसरे देश के वासीयों, जिन्होंने इतने लोगो को नहीं बचाया उन का निरादर है। क्योंकि इस प्रोफसर और दूसरो का कहना है की डैन्मार्क का नमूना साबित कर्ता हैं की अगर लोग चाह्ते थे तो वह भी सब लोगों को बचा सकते।
क्या उनका कर्तव्य था इन लोगो को बचाना? क्या हमारा कर्तव्य बनता है की हम दारफूर और दुसरे जगह जहाँ लोगो को मारा जा रहा हैं, उनको भी बचाए? यह सब हमको सोचना चाहीये। हमे यह भी याद रखना चाहीये की बचाने वाले अपने और अपने परीवार वालो के जानो को ख़तरे मे डाल रहे हैं। फिल्म मीराक्ल आट मिद्नाईत मे यह अच्छे से दिखाया है। उस परीवार की माँ को डर था की अगर उस का पत्ती उनके जूइश दोस्तो को छुपाता तो उनके बच्चो को मार दीया जाएगा। हम दारफूर मे मार-पीट को रोक सकते हैं, लेकिन हमे कुछ खोना होगा। मैं यह नहीं कह रही की हमारा कोइ कर्तव्य नहीं हैं। अगर कोइ हमारे सामने किसी को मर रहा हो, पोलीस को बुलाओ, और अगर लगता हैं की अपने जान को खतरा नहीं, तो भाग कर कुछ करो। लेकिन यह भी गलत है की हम दोसरे की आलोचना करें की वह अपने परीवार को पहले डाले।
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