आज, सच बताऊँ तो मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं किस विषे पर लिखूं। आधा मन कर रहा हैं की मई अमर अख़बार एंथोनी पर लिखूं--मैंने यह फिल्म पहली बार कल रात को देखी थी। एक और बात, डेत्रोईत शेर के शरम dayak हार। तीसरी बात, जो आज कल दुनिया मे मार-पिटाई चल रहा हैं।
लेकिन आज, नए साल की शुरुआत, विध्यार्तीयो के लिये पाठशाला मे नया साल ही असली नया साल है, मे मैं पढ़ाई के बारे मे लिखूंगी। एक बड़े ने एक बार मेरे से कहा, इस बात पर विचार करो की तुम किस के लिये पढ़ रहे हो। जब इन्होंने मेरे से यह बात करी थी, तो मैंने उनको कहा था, की कभी कभी मुझे लगता है की मैं इतनी महनत क्यों कर रहीं हूँ। मुझे इस महनत से क्या हासिल होगा? तो मुझे पढने का मशवरा देने के बजाए उन्होने मुझे अपने से सोच ने को कहा।
तो मैं उनको नमस्ते कहने के बाद चल दी। और उनके किये हुए सवाल पे सोचती गयी। मैंने णिरनय लिया की मैं अपने लिये पढ़ रही हूँ। मैं कर्तव्य पालन के लिये पढ़ रही हूँ। तो फल देख कर नहीं पढ़ूंन्गी। यह णिरनय मैं अपने साथ कोल्लेज ली हूँ। मुझे इस से बहुत सुख भी मिलता हैं- मैं जीं भर के पढ़ती हूँ। जैसे इस ब्लॉग। अगर मे "काफी" पर रुकना चाहती तो हफ्ते मे २ बार बहुत हैं। लेकिन, मई तो तकरीबन रोज़ लिख रहीं हूँ। मैं जानती हूँ की लिख ने से मेरी हिंदी सुधर जायेगी और इस मे मज़ा भी आता है--जब मुझे सूझता है की मैं किस विशे पर लिखू।
मैं हर विध्यार्ती से वोही सवाल करूंगी। अगर सिर्फ कमी के लिए पढ़ रहे हो, तो कुछ हासिल नहीं होगा। क्योंकि पहले हार मे तुम्हारा पढना छूट चयेगा। तुम निराश हो जाओगे। अपने लिये, कर्तव्य पालन के लिये पढ़ कर देखो। कितना सुख प्राप्त होगा!
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2 comments:
बहुत सुख प्राप्त हुआ..फिर भी लिखते रहें. वही ज्यादा जरुरी और सर्वोत्तम है. शुभकामनायें.
apke tipannee ke liye dhanyavaad.
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