Sunday, September 30, 2007

हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई

"इशा और अग्नी के लिए और वह सरे बच्चे जो मारा-मारी के चाव मे बड़े हो रहें हैं। मेरी आशा हैं कि वह भी उस जागां को जाने जहाँ पे मैं बड़ा हुआ था-वह जन्नत जिसका नाम कश्मीर हैं।"
"लहऊँ, लुहान हो गई ज़मीन यह देवताओं की।"
यह दो लाईने आतंकवाद के सचाई के बारे मे कुछ सचाई बताती हैं। यह ज़िक्र करती हैं कि इस लड़ाई मे अनेक मासूम जानें मिट गईं हैं और कड़ोड़ो का नुक्सान हुआ है। आतंकवाद मे यह सब से बुरी बात हैं की यह बेगुनाओं को मारते हैं। वह लोगों के दिल मे भए और नफरत पैदा करते हैं। यह ही हिंदुस्तान मे हुआ हैं। आप देखेंगे कि हर आक्रमण के बाद एक और हिंसा कायम होती हैं। गुजरात मे जो मारा-मारी हुई थी उस के बाद कई अच्छी लोग भी मुसलमानों से नफरत करने लगे।
यह भी बहुत, बहुत गलत हैं। हम सब मुसलमानों को थोड़े के कार्यों के लिये कसूरवार क्यों ठहर्वाएं। "तीजा रंग था तेरा। तेरे ढंग से जीया"-चक दे (मौला मेरे)।
इस ब्लोग मे बार बार मे इस बात बे जोर करती हूँ कि हम शांती और एकता के साथ रहें। भाईपन। हम जब तक मुसलमानों को दोस्त और भाई न बनाएं तब तक चेन से नहीं रह पाएँगे।

2 comments:

विकास परिहार said...

भवनाएं सुन्दर हैं बस वर्तनी का सुधार चाहिए.
प्रयासरत रहें.
keep it up

Unknown said...

bhai hone ke leye bhavnaye bhi saman honi hai