जहाँ तक मैंने देखा हैं, वहाँ तक महिलाओं को ठीक प्रस्तुत किया हैं। कीं सीरियल, जैसे एलीयास, एक ए। बी। सी का सीरियल हैं। उस मे जो हीरोईन हैं, सिडनी, वह एक मोडेर्ण लड़की हैं। वह अपनेलीये सोचती हैं, कभी कभी गलत फैसला लेती हैं लेकिन देखना चहीये की निर्देशक ने उसके फैसले को कैसे दिखाया हैं। उसने सिडनी को इन्सान के रुप मे दिखाया हैं, वह कभी कभी गलत फैसले लेती हैं, लेकिन समझ सकते हो क्यूँ । यह इस लिए जान ना ज़रूरी हैं क्योंकि अगर वह कोई दूसरी तारा उस को पेश करते, तो देखना पड़ता कि क्या उससे इस लिए दिखा रहें क्योंकि वह महिला हैं। जैसे, सिडनी के पापा, जैक, हमेशा सिडनी के भलाई पर ध्यान रखते हैं, और उसके हित के लिए कदम उठाते हैं। लेकिन सिडनी अक्सर उन पे और उनके इरादों पे शक करती हैं। उस के पद मे रुकावट डालती हैं। यह आदरणीय भारतीय महिलएं कभी नहीं करती। जिस तारा हम अपने औरतों को दिखाते हैं, जिस पगड़ी पे हम उनको रखते हैं, वह सिडनी जैसे औरतों को वैश्यअ के रुप मे देखेंगे।
लेकीण, अमरीकी फ़िल्मों को अल्प-संखयक लोगो को कैसे दिखाते हैं, इस पे ध्यान रखना चाहिऐ। एक अफ्रीकी-अमरीकी एक्टर ने कहा, "मेरे रंग के कारण मुझे यह तो मारा-मारी के रोल मिलते हैं, यह वो लड़का जो समाज को छोर कर अपने को कुछ बनाता हैं।" हिंदुस्तानियों को ज्यादातर वह दिमाकी, यह आतंकवादी के रुप मे दिखाते हैं। वह यह ज़िक्र करते हैं कि एक दो अल्प-संख्या रखने से वह महान बने। लेकिन नहीं, हिंदी फ़िल्मों भी यह गल्ती करते हैं। हमे देखना और सोचना चाहिऐ की हम उनको कैसे दिखाते हैं। यह ज़्यादा ज़रूरी हैं। अगर आम बच्चा यह बड़ा कम अल्प-संख्या लोगों को देखे, और वह भी एक ही रुप मे तो वह सोचने लगेगा की अल्प-संख्या ऐसे ही हैं।
तो आज अमरीकी निर्देशक ठीक से महिलाओं को दिखा रहें हैं, कई नौकरी कर रहें हैं, कई घर संभाल रहें हैं। एक ऐसी फिल्म हैं स्तेप्मोम, उस मे जूलिया रॉबर्ट्स नौकरी करती हैं, और सुसन सरेनिदों घर पे बच्चे सँभालने का काम करती हैं , दोनो को अच्छे रुप मे दिखाया हैं। यहाँ तक फिल्म का एक मकसद हैं दिखाने के लिए के दोनो औरतों ठीक हैं। जूलिया को सीख ना पड़ता हैं कि बच्चे को आगे रखना चाहिऐ लेकिन यह कह कर निर्देशक कोलंबस यह दिखाना चाहता हैं की दोनो को जानना पड़ता हैं की दोनो तरीके ठीक हैं।
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