Saturday, October 27, 2007

मैं अभी महाभारत सेरीयल देख रहीं हूँ और मुझे सुझा कि इस कहानी मे कितनी बातें हैं जो हमे बहुत सीखा सकती हैं। युधिष्टिर एक आदर्श परिवार-वाला हैं। वह रिश्ते हमेशा निभाता हैं। एक इसमे पाठ अच्छा हैं - "हमारा झगड़ा एक आपसी झगड़ा, एक घरेलु झगड़ा हैं, बाहर वाले इस का लाभ उठाएं, यह ठीक नहीं" (महाभारत भाग ९)। हम सब को इससे सीखना चाहिएघरेलू झगड़ा, जहाँ तक अत्याचार नहीं हो रहे, को घरेलू झगड़ा को ज्यादातर घरेलू ही रहना चाहिए
महाभारत मे दिखाते हैं कि जीवन मे कितना संघर्ष करना पड़ता हैं। पांडवों ने कुछ गलत नही किया लेकिन उनको कितना कितना भुगत न पड़ता हैं। और इस के बाद भी, युधिष्टिर नातों का आदर करते हैं। लाक्षाग्रह के बाद भी वह जेष्ट पिताश्री के आदेशों का पालन करते हैं। इसके बाद भी वह दुर्योधन को अपना भाई मानते हैं। और एक मैं हूँ, जो एक यह दो अपराधों के बाद कई लोगों से क्रोधित हो गयी हूँ।
अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, बरे भाई का आदर करते हैं, द्यूत्कीड़ा के बाद भी बडे भाई के आज्ञा का पालन करते गाए। वह पहचानता गए कि उनको कितना अच्छा भाई, कितना धार्मिक जेष्ट भ्रात्ता मिल। हां यह ठीक हैं कि धर्म राज से एक गलत हुई। लेकिन उन्होने इसके बाद भी उनका आदर किया। थोड़ा सा, अगले दिन उन्होने उनको टोका, लेकिन इस के बाद कभी नहीं। सौभाग्य से मिलता हैं युद्धिश्तिर जैसा भाई। अगर मैं उसके स्थान पे होती तो शायद मैं बहुत पहले हस्तीनापुर के आक्रमण करती। लेकिन यह तो गलत होता।
द्रौपदी मे भी एक दोष के अलावा कितने गुण थे! इतनी आदरणीय बहु, बेटी, पटने, बहन। लेकिन फिर भी उसका एक अपना स्वाभिमान था। वह जानती थी कि उसको स्वयम भी अपना ख़याल रखना होगा। वह हार वक्त पाण्डवों पर निर्भर नही हो सकती।

No comments: