Monday, October 22, 2007

कविता

सच मे, मुझे नहीं सूझ रहा कि मैं किस विषय पर लिखूं। तो मैंने सोचा कि मैं कुछ मनोरंजन-दायक लिखूं। क्या, मैंने सोचा एक प्रेम के बोली। "तेरे बिन जीने असंभव हैं!"
"तू न हो, तो मे मर जावन।"
"तेरा प्यार ही मुझे ज़िंदा रखता हैं।"
"आख़िर मैं तेरा और तू मेरा!"
यह लिखने का एक और मकसद भी है-- बतादुं कि एक चीज़ को दो दीं तरीकें से देख सकते हैं। यह तो इसे एक प्रेमिका और प्रेमी के बोल समझें, भक्त भगवन से, माँ-बेटी का प्यार (जैसे छोटे बच्चे से बोलते हैं, है तू इतनी मीठी हैं, माँ तुझसे कितना प्यार करती हैं)
यह जानना ज़रूरी हैं क्योंकि हम कभी कभी कानों के सुने पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करते हैं। स्नेह सुनती हैं की- स्नेह को मत बता ना, मैं चुपके से यहाँ से चली जाती हूँ। स्नेह को शक हो जाता हैं, जब स्नेह के दोस्त, रानी और गंगा सिर्फ उस के जनाम्दीन के लिए कुछ कर रहें हैं। स्नेह रूठ जाती हैं। इस बात को ले कर मैं पीड़नोन्मादी हो गयी हूँ। खासकर लड़कियाँ। मेरे दोस्त ने एक बार पूछा कि उसने क्या कहाँ, लेकिन मैंने बोला --बादमे! क्योंकि अगर वह अपना नाम सुनती तो शायद मुझ से रूठ जाती, कि तुम दुसरे से मेरी क्या बात कर रहे थे?

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