आज अक्तूबर २, गांधी जयंती हैं। गांधीजी ने हमारे देश को अंग्रेजों से आज़ाद करवाया। लेकिन उन्होने सिर्फ हमारे तन और राष्ट्रीय-मंडल को आज़ादी नहीं दीं। उन्होने हमारे दिल और दिमाग को भी आज़ादी दी। अंग्रेजों ने हम हिंदुस्तानियों को अलग कर दिया। मैं बिल्कुल नहीं कह रहीं की अँग्रेज़ ने हमे तोड़ा, हम कभी एक थे ही नहीं, लेकिन उन्होने हमारे असमता का फायदा उठाया और उसको बड़ा किया। उन्होने सोचा की अगर वह हिंदुओं और मुसलमानों के भीतर मतभेद पैदा करें तो उनका राज आसान हो जाएगा। सिर्फ थोड़ी देर पहले कई लोग अपने को हिंदु-मुस्लिम बताते थे। लेकिन सरकार ने उनको ऐसे रहने नहीं दिया। उन्होने एलन किया की सब को निर्णय लेना होगा की वह हिंदु हैं ईसाई, यह मुसलमान। अंग्रेजों ने जताया कि हिंदुस्तानियों बुरे थे। उनको कुछ नहीं मालूम। हम असभ्य हैं, और सभ्य बनने के लिए हिंदुस्तानियों को अंग्रेजों के साथ सम्मिलित होना होगा। और हम मानते गए. हमने अपने पे और खासकर एक दूसरे पे भरोसा नहीं किया।
दुःख की बात तो यह हैं कि उनका यह कार्य नीति सफ़ल हुआ। हम अंग्रेजों के बजाय एक दूसरे से लड़
उठे। और मैं कभी नहीं कहूं गी कि मुसलमानों के शिकायतों सही नहीं थे। उनके डर के पीछे असलियत छिपा थी। लेकिन यह भी सच हैं कि अंग्रेजों के नीती का भी हाथ था। आज भी हम एक दूसरे से लड़ रहें हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई मे सेंकाड़ो लोग मारे गए और दोनो देशों के प्रगति पे रूकावट डाले रखी हैं।
गांधीजी ने प्रयतन किया की वह हमे सिखाएं की हम मे खासीयत हैं। उन्होने एक नई फल्सफाई का निर्माण किया। सुच मे उनके "सत्याग्राहा" मे अन्ग्रीज़ी और इस्लामी ख्यालों थे, लेकिन उन्होने इस को और अहिंसा को देशी बतलाया। अपने अंतरात्मा को जगाया। उन्होने एकता पाना चाहा। लेकिन, काश। आज तक हमने वह नहीं पाय। उनको किसी विदेशी ने नहीं मारा, बल्की एक हिंदुस्तानी ने मारा। एक हिंदुस्तानी जो एकता नहीं चाहता था। गोडसे के पास अपने विचार थे, लेकिन उसके पीची जो हाथ था वह था सावार्कार का। और अगर उस के, यह उसके भयानक सोच पे बारे मे जानना चाहते हो तो आप उसका लिखा हुआ हिंदुत्व पढ़ें।
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1 comment:
बड़ी सोच की अच्छी सोच है। बस स्पेलिंग की गलतियां सुधार लें।
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