मैं फिर से सोच ने लगी- कि शायद पुराने फिल्मो मे अल्प-संख्यक लोगों और औरतों को बहतर पेश किया गया हैं। मैं अमर-अख़बार-अन्थोनी के एक क्लिप देख रही थी। उस मे, तीनो धर्मों को एक जैसे दिखाया गया हैं - तीनो के लोग बच्चे को शरण देते हैं। तीनो अच्छे लोग हैं। और नीतू सिंह और परवीन बबी दीमकी, हसमुख, सुन्दर, और सुशील हैं। जहाँ कारन जोहर और राजश्री के लड़कियाँ नाज़ुक हैं नीतू और परवीन इस फिल्म मे कुछ करती हैं। दोनो मर्दों का इंतिज़ार नहीं करती। वाह। सिम्रान और नैना अच्छी लड़कियां हैं लेकीन नाज़ुक हैं - मर्दों का इंतिज़ार करती रहती हैं।कुछ करने के बजाए, वह रोती हैं।
राजश्री एक मुसलामानों को रखेंगे ही रखेंगे लेकीन ज्यादातर वह कुछ करेगा नहीं। अमर-अख़बार-अन्थोनी मे सब सम्मान हैं।
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