"तीजा तेरा रंग था मे तो" - यह चक दे का एक लाइन मेरे दिल मे गढ़ कर गया। सच बात है कि हर देश मे अन्य देश भक्तों को देश से बाहर माना जाता है- उनका कसूर- गलत जाती मे जनम।
रंग दे बसन्ती मे दिखातें है कि आज़ादी के लिए जान नौचावर करने वाले अश्फक़ल्लाह खान को रामप्रसाद बिस्मिल, एक और आज़ादी का सिपाही ने कहा "तुम अफ्घनिस्तान चले जाऊं। वह लोग तुम्हारे अपने है"
"तुम्हारे अपने? क्या मैं तेरा अपना नहीं?"
दो आज़ादी के सिपाही मे भी यह अंतर आ गया था। देश मे बहुत लोगों मे भी यह फरक आ जाता है-- मैं भारातीय हूँ, मेरा रंग ज़्यादा काला है इस लिए मैं औत्सोर्सिंग से परसन होंगी। नहीं मैं जानती हूँ कि इससे अमरीका को कितना और कैसे नुकसान पहुंच रहा है। बराक ओबामा काला है और उसका मध्य नाम हुसेन है तो वह भी कैसे सचा देश भक्त हो सकता है। गलत।
लेकीन इस क बारे मे बात करना आसान है। हम क्या करेंगे? मैंने भी यह भूल किया है कि मैं किसी के रंग यह पोशाक के कारण समझती हूँ कि वह भी एक तारा सोचता होगा। तो सुझाव हम से शुरू होता है। और मैं जानती हूँ कि मैं इस मे अकेली नहीं हूँ।
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