Tuesday, November 13, 2007

क्लास

१९९४ के बाद सफल फिल्मो मे औरत दुर्बल हैं और मर्द का इनित्ज़ार करती है। कल हो ना हो मे नैना अपने जीवन को सुधार न सकी। अमन आया और उसने सब कुछ ठीक कर दिया। नैना, यह जेनी, नैना कि माँ, सहस क्यों का पर पाए? अमन ने क्या किया, हिमत करके दादी को जेनी का सच बताया। उसने दिमाक लगा कर व्योपार का कुछ उपाए सोचा। राजा हिन्दुस्तानी, जो १९९८ की हिट पिक्चर है, उसमे राजा बचा चुरा लेता है। करिश्मा क्या कर पाती हैं- कुछ नहीं, वह रोती है और उससे बिनती करती है और पापा कि सहित मांगती है। एक रिश्ते मे भी लड़कियाँ लड़कों का इंतिज़ार करती हैं भाई जब आता है फिर वह कुछ करती हैं। कभी ख़ुशी कभी घाम मे पूजा रोहन कि मदद करती है लेकिन, उसने जीजाजी के लिए रोहन को क्यों नहीं खोजा? जया बादमे पती को ठुकराती है लेकिन पहले वह जानती है कि बेटा अंजली से प्यार करता है पर वह नैना से सगाई के रस्मों को आगे बढ़ने देती है। यह सिर्फ मैं नहीं कह रही, रीडिफ़।कॉम ने कुछ दिन पहले लिखा था कि हीरोइन कितनी दुर्बल हो गईं हैं।
यह पहले नही होता था। अगर आप राम लखन देखेंगी तो इसमे कुछ और ही होता है। जहाँ जया पती के गलतीयों को चुप चाप सहन करती हैं गीता, डिम्पल, आगे बढ़ के कुछ करती है। हर फैसले मे मदद करती है। यहाँ तक की जब राम और लखन लड़ रहे होते है वही लड़ाई रोकती है। और उस कमरे मे मर्द भी थे। लेकिन गीता ने उनका इंतिज़ार नहीं किया। वह आगे बढ़ी। इस हे फिल्म मे माधुरी ने भी बाप के गलत फैसला का विरोध किया और "राम जी बड़ा दुःख दीना" गाने से अपने से निर्णय लिया और कुछ किया। कभी कभी मे भी नीतू सिंह ने अपने से निर्णे लिया और चल पड़ी माँ को ढूँढ ने। प्रेम रोग मे बड़ी माँ दो तीन बार मर्द के फैसले को ठुकरा गयी। तो औरतों को दुर्बल दिखाना नई बात है।पहले कभी कभी मर्दों को दुर्बल दिखाते थे। कभी कभी, यह फिल्म के बारे मे सोचना उचित है क्योंकि यश राज फिल्म्ज़ जिसने दिलवाले बनाया और आज कल बहुत सफल फिल्मों के पीछे है, इस ही ने कभी कभी बनाया। और इस फिल्म मे अमिताभ खलनायक है, वह अथीथ को नहीं छोड़ सकता और राखी छोड़ देती है और सफल बंटी हैं । और उसको, अमिताभ, को औरत की जारूरत होती है। चांदनी मे भी ऋषि कपूर को श्रीदेवी की मदद चाहिए। और जहाँ कल हो न हो मे नैना, दिलवाले मे सिमरन, रो कर कुछ नहीं करती, लम्हे मे विरेन रोता है gham करता है, लेकिन कुछ नहीं करता।

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