Tuesday, November 27, 2007

ठंडक

मैंने सोचा कि आज सुबह मैं ठंड, इसके अनुभव, और ऐसे चीजों पर लिखूं क्योंकि यहाँ पर बहुत ठंड हो रही है। तो, मैं यहाँ बैठ कर ब्लोग लिख रहीं हूँ और महाभारत को राजश्री.कॉम से सुन रहीं हूँ। इस वक्त मैंने इस पर लिखने का निर्णय ले लिया।
ठंड बहुत कम लोग से बर्दाश्त होता है। खासकर जब बर्फ सड़क पर आधी पिघली हुई और आधी जमी हुई है। इससे चलने मे बहुत कठिनाए होती हैं। कल मेरे पैन्ट पूरी तरा भीग गया था। जुराब सुबह ही भीग गए थे और रात को इस के कारण बहुत तड़प हो रही थी। दिन मे एक दो बार मुझे लगा कि मैं वापस कमरे मे चली जाऊं। एक बार तो क्लास बंक करने मे तो कोई बुराई न है न? लेकिन मैंने साहस बडाकर क्लास मे कदम रखा। आज कल से भी ज़्यादा ठंडा होगा और आज बंक करना आसान होगा। एक ही क्लास है और वह मेरे लिए आसान है. लेकिन मैं नहीं करूंगी। क्यों? पहले- तीन महीनों के लिए ठंड होगी और तीन महीनों के लिए तो मैं क्लास नहीं बंक कर सकती। लेकिन सब से बड़ा कारण, मुझे लगता है कि ठंड हमारी परीक्षा है। इस से भगवान देख त है कि हमारा निश्चय कितना अटल हैं। हम क्या क्या पार करके दुनिया मे कुछ कमाएँ। हम इस दुनिया मे सिर्फ नाचने नहीं आए। हमे कुछ कमाना है कुछ कर दिखाना है।
ठंड हमे यह मौका देता है, दिखलाने के लिए कि हमारा निश्चय कितना द्रिड है।

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