इस फिल्म मे दिल्ली के आधुनिक रुप के बारे मे बहुत ज़िक्र हुआ। दिखाते हैं कि यहाँ खयाल कितने बदले हैं। पहले हिंदुस्तान मे रिश्तों के बुनियात और विश्वास पर चीज़ें चलती थी। लेकिन अभ खोसला का अंध विश्वास उसको फसाता है और सिर्फ बुधू बना कर वह काम चला सका। दिखातें हैं कि मुल्ताए-नाशानल कम्पनी मे काम करना कितनी बड़ी बात है। खोसला गर्व से कहता है कि उसका बेटा वहाँ काम करता हैं। पहनाव मे भी बहुत बदलाव आया है-- बेटी ने बाल छोटे कर रखें हैं और सलवार छोडो, जीन पहनकर घूमती है। मेघना दिल्ली मे अकेली रहती है। यह भी पहले नहीं होता था कि लड़की अकेली रहती हो। बड़ा शहर है मेरी चचेरी बहन नेहा ने बताया कि छोटे शहरों मे अगर कोई बच्चा घर से निकलता भी है तो तीन लोग माँ यह बाप को बता देंगे। दिल्ली मे मेघना अकेली रहती है और चेरी के साथ घूमती है और खोसला परिवार को पता ही नाहीं चलता। शुरुवात मे जो दिखाते हैं- जहाँ बीवी के इलावा उसके मरने पर कोई न रोता उसका भी यही मतलब है कि इतना अव्यक्तिpan फेल गया है।
मुझे लगता है कि यह फिल्म असल मे आधुनिक जीवन के अकेलेपन के बारे मे और उसको जीतने के बारे मे है। इस फिल्म मे आप देखेंगे कि हर मोड़ पर खोसला, पुराने खायालत का आदमी, जो अभ भी रिश्तों को भगवान् मानता है अपने बेटे से लड़ता है और नए खयालात से लड़ता है। पहले, हिन्दू धर्म के अनुसार, अछे लोग सत्यवादी होते थे। कभी झूट न बोलते। और इस फिल्म मे ब्रोकर लोग और सब खोसला को इतना बड़ा धोका देते हैं। इस फिल्म मे हर व्यक्ती अपने बारे मे सोचता है। चेरी बुरा आदमी नहीं है लेकिन वह अपने बारे मे सोचता रहा। उसने मेघना के जस्बातों के बारे मे नहीं सोचा जब उसने बाहर जाने का फैसला लिया । और खोसला के दोस्त ने क्या सलाह दी उसको? -- जितनी दोस्ती बना सको बेटे के साथ बनाओ। चाहे इसके लिए पुराने रस्मों को भी तोड़ना पड़े। यह नई बात है। बाप बेटे के लिए घर बना रहा है और बेटे घर छोड़ने कि सोच रहा था। यह आधुनिक जीवन कि कड़ी सचाई है और मैं भी इस मे शामिल हूँ-- सब आन्टीयां दर्तीं हैं की अकेली घर मे क्या करेगी और मुझे थोडे अकेलेपन से आनंद मिलता है । हम को अपने से और दूसरो से लड़ना पड़ता है। अपने बचाव के लिए और ताकी हम अपने को देख सकें कि हम यह गलती नहीं कर रहे।
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1 comment:
बहुत बढिया ढंग से सब कुछ बता दिया आप ने..धन्यवाद।
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